रांचीः झारखंड में मुख्यत 7 विश्वविद्यालय हैं और इन विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा के लिए पठन-पाठन संचालित हो रहे हैं. लेकिन कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर शिक्षकों के भरोसे पिछले कई वर्षों से इन विश्वविद्यालयों में पढ़ाई हो रहे हैं और इन्हीं अनुबंध शिक्षकों के भरोसे ही विश्वविद्यालय संचालित हैं. शिक्षकों के अलावा पदाधिकारियों और कर्मचारियों के पद भी धीरे-धीरे खाली हो रहे हैं. जिस तेजी से शिक्षक कर्मचारी और पदाधिकारी रिटायर हो रहे हैं उस तेजी से नियुक्तियां ना के बराबर हो रही है. खानापूर्ति के नाम पर विश्वविद्यालयों को सरकार की ओर से कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर शिक्षकों की नियुक्ति को लेकर निर्देश दिए गए हैं. लेकिन स्थाई शिक्षकों के ना होने की वजह से पठन-पाठन में गुणवत्ता नहीं आ रही है.
SPECIAL REPORT: कैसे सुधरेगी उच्च शिक्षा की स्थिति हर वर्ष 45 से अधिक शिक्षक हो रहे हैं रिटायर्डएक आंकड़े के मुताबिक राज्य के सात यूनिवर्सिटी में हर साल औसतन 45 से अधिक शिक्षक रिटायर हो रहे हैं. लेकिन 2008 के बाद अब तक शिक्षकों की नियुक्ति पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है, जब भी मामले को उठाया गया है. तब जेपीएससी की ओर से रोस्टर क्लीयरेंस की बात कही जाती है. विश्वविद्यालय में कॉन्ट्रैक्ट पर शिक्षकों की बहाली होती है. लेकिन स्थाई शिक्षकों की बहाली को लेकर सरकार गंभीर नहीं है. आलम यह है कि राज्य के विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों के रेगुलर पदों से ज्यादा पद खाली है और इन्हीं पदों को भरने के लिए आवेदन मांगे गए थे. पर प्रक्रिया पूरी होने पर अभी भी समय लगेगा. इस मामले को लगातार विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की ओर से राजभवन को अवगत भी कराया जा रहा है. इसके बावजूद इस दिशा में कोई ठोस पहल होता नहीं दिख रहा है.
राज्य गठन के बाद एक बार ही हुई है नियुक्तिझारखंड गठन के बाद मात्र एक बार ही नियुक्ति हुई है. वर्ष 2008 तक के रिक्तियों के अनुसार राज्य के सात विश्वविद्यालयों में सहायक प्राध्यापकों के ही 1,118 पद खाली है. रांची विश्वविद्यालय में 270, बिनोवा भावे विश्वविद्यालय में 155 सिदो-कान्हो विश्वविद्यालय में 188, नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय में 161 और कोल्हान विश्वविद्यालय में 364 सहायक प्राध्यापक के पद अब तक खाली है. इनमें 552 पद सीधी और 556 पर बैकलॉग नियुक्ति की जानी है. इन पदों पर नियुक्ति को लेकर जेपीएससी को बार-बार विश्वविद्यालयों की ओर से अवगत कराया जा रहा है. वर्ष 2021 में नियुक्तियों को लेकर तैयारी भी हो रही है लेकिन इस दिशा में विश्वविद्यालयों को अब तक कोई ठोस जानकारी नहीं मिली है. सबसे बड़ी हैरानी की बात यह है कि यह प्रक्रिया पिछले ढाई वर्षो से चल रही है. लेकिन अब तक रिक्त पदों को भरने के लिए रोस्टर क्लीयरेंस हुआ ही नहीं है.
दो दशक में एक बार हुई नियुक्ति पठन-पाठन में काफी परेशानीरांची विश्वविद्यालय के कुलपति रमेश कुमार पांडेय कहते हैं कि शिक्षकों की कमी के कारण विश्वविद्यालय को लगातार परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. सरकार के आदेश के बाद कॉन्ट्रैक्ट पर शिक्षकों की बहाली शुरू की गई है. ताकि विद्यार्थियों के पठन-पाठन में कोई परेशानी ना आए. रांची विश्वविद्यालय से ही अलग हुए डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय में कॉलेज के समय के ही शिक्षकों के 148 पद स्वीकृत हैं. इनमें 73 शिक्षक कार्यरत हैं और 75 पद अभी भी खाली है. विश्वविद्यालय बनने के बाद प्रोफेसर के 29 एसोसिएट प्रोफेसर के 58 असिस्टेंट प्रोफेसर के 116 पद सृजित करने का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया है. लेकिन अब इस प्रस्ताव के बदले सरकार ने अनुबंध पर शिक्षकों की नियुक्ति का निर्देश विश्वविद्यालय को दिया है और विश्वविद्यालय में इन दिनों अनुबंध पर ही लगभग 35 शिक्षकों की नियुक्ति की जा रही है. यानी इस विश्वविद्यालय में स्थाई शिक्षकों की भारी टोटा है.
रांची विश्वविद्यालय में है 1,108 पद सृजितरांची विश्वविद्यालय में सिर्फ 1,108 पद सृजित हैं. इनमें 509 शिक्षक कार्यरत हैं. जबकि सेवानिवृत्ति के कारण 599 पद अब तक खाली है. इनके अलावा भी थर्ड ग्रेड के 764 में से 436 और फोर्थ ग्रेड के 731 में से 393 पद खाली है. आरयू में तो वर्ष 2020 के मार्च महीने में 48 शिक्षक सेवानिवृत्त हो गए हैं. लेकिन अब तक इन पदों को भरा नहीं जा सका है. यानी अब धीरे-धीरे स्थाई शिक्षकों की पद खाली हो रहे हैं. लेकिन इस दिशा में कोई पहल होता नहीं दिख रहा है. नीलांबर पीतांबर विश्वविद्यालय में 132 सृजित पद खाली हैं. वर्ष 2009 में रांची विश्वविद्यालय से अलग कर इस विश्वविद्यालय का गठन हुआ था. इस विश्वविद्यालय में कुल 161 पद खाली हैं. विश्वविद्यालय के गठन के समय 19 पीजी विभाग में शिक्षकों के लिए 132 पद हैं. जिसमें 22 प्रोफेसर और 44 एसोसिएट प्रोफेसर और 66 असिस्टेंट प्रोफेसर के पद रिक्त पड़े हैं और यहां पढ़ाई का जिम्मा सिर्फ 18 प्रतिनियुक्त और गेस्ट फैकल्टी के भरोसे संचालित हैं. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस विश्वविद्यालय में भी पठन-पाठन की क्या स्थिति होगी. राज्य गठन के 19 वर्ष में अब तक मात्र एक बार ही 2008 में विश्वविद्यालयों में 850 असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति की गई थी. उसके बाद आज तक किसी भी विश्वविद्यालय में स्थाई तौर पर शिक्षकों की नियुक्ति हुई ही नहीं है.
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छात्र-शिक्षक अनुपात के आंकड़े चौंकाने वाले
2008 के बाद छात्र छात्राओं की संख्या भी बढ़ी है. शिक्षकों के अनुपात में विद्यार्थियों के आंकड़े चौंकाने वाले हैं. छात्र छात्राओं की संख्या दोगुनी हो गई है. झारखंड के विश्वविद्यालय और कॉलेजों में छात्र शिक्षक का अनुपात की हालत काफी खराब है. विद्यार्थी बढ़ते गए और शिक्षक सेवानिवृत्त होते गए. हालिया आंकड़ा 2018-19 में सभी कॉलेजों में 73 छात्र छात्राओं पर एक शिक्षक उपलब्ध है. जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 29 छात्रों पर एक शिक्षक उपलब्ध है.
सभी विश्वविद्यालयों की हालत एक जैसी
राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों की हालत भी एक जैसी ही है और शिक्षकों की कमी के कारण विद्यार्थियों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. रांची विश्वविद्यालय, डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, नीलांबर-पीतांबर विश्वविद्यालय, विनोबा भावे विश्वविद्यालय, सिदो-कान्हो विश्वविद्यालय, बिनोद बिहारी महतो विश्वविद्यालय और कोल्हान विश्वविद्यालय जैसे नए विश्वविद्यालय भी शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं. विश्वविद्यालय और कॉलेजों में आवश्यकता के अनुसार शिक्षक कम है. विश्वविद्यालय प्रबंधकों ने भी इस मामले को गंभीर कहा है और उन्होंने साफ तौर पर कहा है कि असिस्टेंट प्रोफेसर के भरोसे विश्वविद्यालय संचालित हो रहे हैं. कोरोना काल के दौरान भी असिस्टेंट प्रोफेसर ही विश्वविद्यालयों में पठन-पाठन को संचालित कर रखा है और इस कमी के बावजूद विभिन्न विश्वविद्यालय अपने स्तर से पठन-पाठन के साथ-साथ परीक्षा आयोजित करना और परीक्षा परिणाम भी जारी कर रहे हैं. इस ओर जल्द से जल्द राज्य सरकार के उच्च शिक्षा विभाग को ध्यान देना होगा. नहीं तो आने वाला कल उच्च शिक्षा के क्षेत्र में झारखंड का काफी खराब होने वाला है.