रांचीः झारखंड देश के उन राज्यों में से एक है, जहां डॉक्टरों की घोर कमी है. जनसंख्या के अनुपात में चिकित्सा पदाधिकारियों के पहले से ही कम पद सृजित हैं और वह भी खाली रहे तो समझना मुश्किल नहीं कि राज्य में सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था डॉक्टर्स के नहीं भगवान भरोसे ही है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने जेपीएससी से अनुशंसित 173 MBBS पास डॉक्टर्स को स्वास्थ्य विभाग में चिकित्सा पदाधिकारी पद के लिए नियुक्ति पत्र दिया. बावजूद इसके अभी भी सृजित 2099 में से 71 पद खाली रह गए हैं.
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सबसे खराब स्थिति तो विशेषज्ञ डॉक्टरों की है. झारखंड में 1012 स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स के पद हैं. जिसमें से 226 पर विशेषज्ञ डॉक्टर्स कार्यरत हैं. करीब 75 % विशेषज्ञ डॉक्टरों के सृजित पद खाली पड़े हैं. इसी तरह दंत चिकित्सक के सृजित पद 254 हैं जिसका 50% पद खाली है. राज्य में 254 सृजित पदों की तुलना के 129 दंत चिकित्सक ही कार्यरत हैं. कुल मिलाकर देखें तो राज्य में डॉक्टरों के लगभग एक तिहाई पद खाली हैं. कुल 3365 की तुलना में 1022 पद खाली हैं.
वर्ष 2023 में झारखंड की आबादी 04 करोड़ होने का अनुमान है. आईपीएचएस के अनुसार 10 हजार की आबादी पर 01 डॉक्टर होना अनिवार्य है. ऐसे में राज्य में डॉक्टरों के सृजित पद पहले से ही जनसंख्या के अनुपात में काफी कम हैं. अगर इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्स को ही आधार मान लें तो कम से कम 04 हजार डॉक्टर्स होने चाहिए लेकिन पोस्ट ही सिर्फ 3365 सृजित हैं और वह भी नहीं भरा है.
अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन के स्टैंडर्ड की बात करें तो 1 हजार की आबादी पर होने 1 डॉक्टर होना चाहिए. इस तरह WHO के अनुसार राज्य में 40 हजार डॉक्टर्स चाहिए. ऐसे में अभी सिर्फ 2383 डॉक्टरों के भरोसे राज्य की 4 करोड़ की आबादी के स्वास्थ्य को दुरुस्त रखने की जवाबदेही है. यानि 16 हजार 785 लोगों पर एक डॉक्टर उपलब्ध है.
झारखंड की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है. उसी अनुपात में डॉक्टर्स की जरूरत भी बढ़ती जा रही है. अभी राज्य में चिकित्सकों के जो सृजित पद हैं वह काफी पहले की आबादी के अनुरूप तय किये गए थे. आज सृजित पदों से अधिक डॉक्टर्स की राज्य को जरूरत है. लेकिन चाहे अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य हों या फिर स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता, हर कोई जल्द ही चिकित्सकों के सृजित पदों में से खाली पदों को भरने की बात तो करते हैं लेकिन आबादी के अनुरूप डॉक्टर्स के सृजित पद बढ़ाने को लेकर पूछे गए सवाल पर मौन हो जाते हैं. इस परिस्थिति में डॉक्टर्स की कमी की भरपाई करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने CHO के कॉन्सेप्ट को अपनाया है. CHO डॉक्टर्स नहीं होते, लेकिन जहां डॉक्टर्स नहीं पहुंचते वहां उनकी सेवा ली जाती है और वह टेली मेडिसीन के साथ डॉक्टर्स और मरीज के बीच ब्रिज का काम करते हैं.