रांची: 15 नवंबर 2000 को विकास का सपना लिए बिहार से अलग होकर झारखंड अस्तित्व में आया. राज्य को अलग हुए लगभग 22 साल हो गए हैं, जहां यह स्वास्थ्य के क्षेत्र में काफी पिछड़ा रह गया है. करीब साढ़े तीन करोड़ की आबादी वाले झारखंड में डॉक्टरों की घोर कमी है (Shortage of Doctors in Jharkhand). वहीं नर्सों से लेकर पारा मेडिकल स्टाफ तक की कमी को राज्य पूरा नहीं कर पाया है.
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डॉक्टरों की संख्या जरूरत से 80 फीसदी तक कम: विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानक के अनुसार तो राज्य में डॉक्टरों की संख्या जरूरत से 80 फीसदी तक कम है. वहीं, इंडियन पब्लिक हेल्थ स्टैंडर्ड (IPHS) के मानक के अनुसार भी देखें तो राज्य में डॉक्टर्स काफी कम हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रति 1000 की आबादी पर 1 डॉक्टर होने चाहिए. जबकि IPHS के अनुसार 10 हजार की आबादी पर एक डॉक्टर जरूर होने चाहिए.
शॉर्टकट तरीके ने स्वास्थ्य व्यवस्था को बनाया बदतर: राज्य में करीब 19-20 हजार की आबादी पर 1 डॉक्टर हैं. राज्य में आयुष डॉक्टरों की भी काफी कमी है. इसके बावजूद अभी तक सृजित पदों को भरने की कवायद नहीं की गयी. हां, स्वास्थ्य व्यवस्था को दुरुस्त करने का शॉर्टकट तरीका जरूर अपनाया जा रहा है. जैसे अनुबंध पर डॉक्टरों को बहाल करने, सेवा निवृति की उम्रसीमा बढ़ा कर डॉक्टर्स की कमी दूर करने, नर्सो और पारा मेडिकल स्टाफ की थर्ड पार्टी बहाली करने का काम राज्य करता रहा है. नतीजा यह हुआ कि दिन पर दिन व्यवस्था सुधरने की जगह बिगड़ते चली गयी और राज्य स्वास्थ्य के क्षेत्र में बद से बदतर स्थिति में चला गया.
डॉक्टरों के सृजित पदों का लगभग एक तिहाई पद खाली: राज्य में एलोपैथिक सरकारी डॉक्टरों के सृजित पद पहले से ही जनसंख्या के अनुपात में काफी कम हैं. उस पर भी सृजित पदों का लगभग एक तिहाई पद खाली होना, स्वास्थ्य सेवा की बदहाली की ओर ही इशारा करता है. राज्य में मेडिकल अफसर के 2,099 पद, डेंटल चिकित्सक के 190 और विशेषज्ञ डॉक्टरों के 1,012 पद यानि कुल मिलाकर 3,301 पद सृजित हैं. जिसमें से मेडिकल अफसर के 234 पद, डेंटल चिकित्सक के 61 पद और विशेषज्ञ डॉक्टरों के 878 पद खाली पड़े हैं. वहीं राज्य में मोतियाबिंद के हजारों मरीज ऑपरेशन के इंतजार में हैं लेकिन, अस्पतालों में नेत्र सर्जन की कमी की वजह से कतारें लंबी होती जा रही है.
रिम्स में बेड की कमी के कारण फर्श पर होता है मरीजों का इलाज: राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स में स्थिति यह है कि आज भी मेडिसीन, सर्जरी, न्यूरो सर्जरी जैसे विभाग में मरीजों को एक बेड तक नहीं मिल पाता. बारिश के दिनों में बरामदे में पड़े मरीज और उनके परिजनों को तो बारिश के झटास की वजह से रतजगा ही करना पड़ता है.
- 2022 में राज्य की अनुमानित आबादी 4 करोड़
- IPHS के अनुसार 10 हजार की आबादी पर चाहिए 1 डॉक्टर
- WHO के अनुसार 1 हजार की आबादी पर होने चाहिए 1 डॉक्टर
- WHO के अनुसार राज्य को चाहिए 40 हजार डॉक्टर्स
- IPHS के अनुसार राज्य को चाहिए 4000 डॉक्टर
- अभी सिर्फ 2128 डॉक्टरों के भरोसे राज्य की करीब 4 करोड़ की आबादी
- करीब 18844 लोगों पर हैं 01 डॉक्टर्स
- राज्य में आयुष डॉक्टरों की भी है घोर कमी
राज्य में सरकारी डॉक्टरों के कितने पद खाली: 2022 की अनुमानित जनसंख्या करीब 4 करोड़ है. ऐसे में झारखंड में IPHS के अनुसार ही 4 हजार से अधिक डॉक्टर की जरूरत है जबकि, अभी 2128 सरकारी डॉक्टर ही उपलब्ध है यानि 18844 लोगों पर एक डॉक्टर है. सरकारी डॉक्टरों के संगठन झारखंड स्टेट हेल्थ सर्विसेस एसोसिएशन (झासा) के संरक्षक डॉ बिमलेश सिंह स्वीकारते हैं कि सोच में कमी की वजह से राज्य स्वास्थ्य मामले में पिछड़ गया है.
दवाओं और कई तरह के जांच का भी आभाव: रिम्स जैसे बड़े मेडिकल संस्थान में ही जहां अल्ट्रा साउंड से लेकर डायलिसिस के कई मशीनें खराब पड़े हैं तो राज्य के ज्यादातर जिलों में बर्न वार्ड तक नहीं है. लोकल स्तर पर ही सामान्य बीमारियों का इलाज हो जाये इसलिए पिछली सरकार में खोला गया अटल मोहल्ला क्लिनिक से लेकर सस्ती दवाओं के जेनेरिक दवाओं की दुकानों में जरूरी दवाओं की कमी को दूर करने वाला कोई नहीं. राज्य सरकार भले ही स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार और व्यवस्था दुरुस्त करने के दावे करती रही है लेकिन, यह एक सच्चाई है कि राज्य में मरीज डॉक्टर की कम, लोग भगवान भरोसे ज्यादा हैं.