रांचीः हर साल की इस साल भी रांची में सरस मेला में काफी चमक-धमक और धूम (Ranchi Saras Mela) है. राजधानी के मोरहाबादी मैदान में 28 दिसंबर से राष्ट्रीय खादी एवं सरस महोत्सव चल रहा है. इस बार के मेले में आकर्षण के केंद्र में हैं राज्य के अलग अलग जिलों से आईं, वो महिलाएं जिन्होंने स्वयं सहायता समूह (SHG) बनाकर ना सिर्फ अपना और अपने परिवार का जीवन सुखमय किया. बल्कि अपने गांव की अन्य महिलाओं को भी स्वयं सहायता समूह से जोड़कर उनको आर्थिक रूप से समृद्ध बनाने में मदद की.
देसी और स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों के स्टॉल से सजा सरस मेलाः स्वयं सहायता समूह द्वारा उत्पादित मजबूत, टिकाऊ, ईको-फ्रेंडली और स्वास्थ्यवर्धक उत्पादों को बाजार मिला (self help group stall at Saras Mela in Ranchi) है. इस उद्देश्य से करीब 78 स्टॉल इस सरस मेला में राज्य की स्वयं सहायता समूह की महिलाओं को दिया गया है. जहां ये आत्मनिर्भर होती महिलाओं ने अपने उत्पादों को न सिर्फ प्रदर्शित किया है बल्कि उनकी बिक्री भी कर रही हैं. देसी और तरह तरह के स्वादिष्ट अचार, तरह-तरह की दालों से बने बड़ी, पापड़, बांस से बने उत्पाद, बेकरी, हर्बल, फर्श क्लीनर, बर्तन, खादी और सूती कपड़े, कालीन समेत कई तरह के उत्पाद इस मेला में महिला स्वयं सहायता समूह की दीदियों ने प्रदर्शित की हैं.
जानिए नामकुम के शोभा की कहानीः शोभा देवी, नामकुम की कुरियातु गांव की रहने वाली हैं. कभी उसे दो वक्त की रोटी कमाना मुश्किल होता था. परिवार चलाने के लिए खुद रेजा (दैनिक महिला मजदूर) का काम करके परिवार का भरण-पोषण करने का प्रयास करती थीं. इसके बाद शोभा महिला स्वयं सहायता समूह के बारे में जाना और घर में ही अचार बनाना शुरू किया. इसके बाद मोहल्ले की 10 और महिलाओं को समूह में जोड़कर झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के सहयोग से बड़े पैमाने पर अचार, बड़ी एवं अन्य उत्पाद बना रही हैं.
आज शोभा देवी न सिर्फ खुद स्वाबलंबी बनीं है बल्कि अन्य महिलाओं को भी स्वाबलंबी बनने में मदद की है. चेहरे पर मुस्कान लिए वह ईटीवी भारत से कहती हैं कि एक समय गरीबी थी, अब खपरैल मकान पक्का का हो गया है, घर में फोर व्हीलर है. साथ ही अचार बनाने के लिए घर में बड़ी सा जगह भी बना ली हैं. कभी रेजा का करने वाली शोभा देवी की पहचान आज रोजगार दीदी के रूप में होती है. रांची के सरस मेला में स्वयं सहायता समूह का स्टॉल भी ये बताने के लिए काफी ये
स्वयं सहायता समूह से स्वावलंबी हो रही महिलाएंः शोभा अकेली नहीं है, उनकी तरह ही ओरमांझी की जीतन देवी ने गरीबी के श्राप से मुक्ति के लिए स्वयं सहायता समूह बनाया. अब वो अपने गांव की महिलाओं के साथ मिलकर बांस के एक से बढ़कर एक उत्पाद बनाने लगी हैं. जब मांग बढ़ती है तो वह 30-40 महिलाओं को भी रोजगार उपलब्ध कराती हैं, ऐसे में उनके समूह में 10 महिलाएं जुड़ी हुई हैं. स्वयं सहायता समूह अब युवा पीढ़ी को भी आकर्षित कर रहा है. जीतन देवी की बीए पास बेटी सुमित्रा पढ़-लिखकर नौकरी की चाह रखती थीं. लेकिन अपनी मां के संघर्ष और सफलता ने उसमें भी स्वयं सहायता समूह के जरिये गांव को समृद्ध बनाने की इच्छा जागी है.
स्वयं सहायता समूह के उत्पाद होते हैं बेहतरीनः राष्ट्रीय खादी एवं सरस महोत्सव (Rashtriya Khadi and Saras Mahotsav) में अचार खरीदने के लिए आईं चंद्रकला कहती हैं कि इनके उत्पाद घर जैसे होते हैं. इनके उत्पाद में शुद्धता की गारंटी भी है और कोई मिलावट भी नहीं है, इसलिए अक्सर वो SHG के उत्पाद का इस्तेमाल करती हैं. शोभा, जीतन जैसी एक दो नहीं बल्कि बड़ी लंबी कतार उन महिलाओं की हैं, जिन्होंने JSLPS के सहयोग से स्वयं सहायता समूह बनाकर सफलता का सोपान प्राप्त की है. अगर यही सिलसिला जारी रहा तो झारखंड के हर गांव में महिलाओं की स्वयं सहायता समूह अलग अलग बेहतरीन उत्पादों के लिए जाना जाएगा बल्कि हर गांव की महिलाएं आत्मनिर्भर होंगी और गांव समृद्ध होगा.