रांची: झारखंड के फिल्म निर्माता नंदलाल नायक की फिल्म "दंतेवाड़ा" की स्क्रीनिंग रांची के आईलेक्स सिनेमा हॉल में सोमवार को की गई. इस मौके पर सीआरपीएफ के डीआईजी वीरेंद्र टोप्पो समेत फिल्म निर्माता, कलाकार और फिल्म के तमाम क्रू मेंबर मौजूद थे. जैसा कि फिल्म के नाम से ही प्रतीत होता है कि दंतेवाड़ा नक्सल समस्या से जुड़ी फिल्म है. बताते चलें कि दंतेवाड़ा में वर्ष 1990 से वर्ष 2005 में कई नक्सली हिंसक घटनाएं हुई थीं. इसके विरोध में स्थानीय ग्रामीणों ने वर्ष 2005 में सलवा जुडुम अभियान चलाया था. पूरी फिल्म की कहानी इसी पर केंद्रित है. वहीं फिल्म का ट्रेलर इसी साल नवंबर महीने में रिलीज होगा और अगले वर्ष 2024 जनवरी महीने में इस फिल्म को रिलीज किया जाएगा.
पुलिस और नक्सलियों के बीच संघर्ष की है कहानीः पूरी फिल्म की कहानी में सीआरपीएफ का रोल दिखाया गया है. पुलिस और नक्सलियों के बीच का संघर्ष दिखाया गया है. फिल्म में यह दर्शाने की कोशिश की गई है कि किस प्रकार से दंतेवाड़ा और झारखंड के नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में युवा उस वक्त संघर्ष करते थे और पुलिस को किस तरह की परेशानियों से जूझना पड़ता था. फिल्म में यह भी बताया गया है कि किस प्रकार से वर्ष 2005 में तत्कालीन कमांडेंट वीरेंद्र टोप्पो और उनकी टीम वहां के स्थानीय लोगों और नक्सलियों से संघर्ष कर रहे थे. फिल्म की स्क्रीनिंग देखने के बाद सीआरपीएफ के डीआईजी वीरेंद्र टोप्पो ने कहा कि फिल्म बनाने के दौरान फिल्म के निर्माता और कलाकार उनसे घंटों मिलकर सारी जानकारी एकत्रित करते थे.
सीआरपीएफ के डीआईजी ने साझा किया अनुभवः सीआरपीएफ के डीआईजी वीरेंद्र टोप्पो ने बताया कि वर्ष 2000 से 2005 के दौरान विभाग की तरफ से प्रमोशन मिला था. प्रमोशन के बाद उनकी पहली पोस्टिंग दंतेवाड़ा में हुई थी. दंतेवाड़ा के घोर नक्सल प्रभावित इलाके में ड्यूटी ज्वाइन करने के बाद कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ा था. नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में नक्सलियों द्वारा सड़क को तोड़ दिया जाता था, ताकि पुलिस ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवेश ना कर सके. भीषण जंगल में कई अच्छे लोग भी रहते थे. नक्सलियों की वजह से उन्हें भी कई परेशानियों का सामना करना पड़ता था. उन्होंने अपना अनुभव साझा करते हुए बताया कि जंगल में अच्छे लोगों से समन्वय बनाकर सीआरपीएफ नक्सलियों पर दबाव बनाने बनाने का काम करती थी.
फिल्म में नक्सली बनने की कहानी और ग्रामीणों का संघर्षः वहीं इस मौके पर झारखंड के फिल्म निर्माता नंद लाल नायक ने बताया कि इस फिल्म में बताया गया है कि कैसे भोले-भाले ग्रामीण नक्सली बनने के लिए बाध्य हो जाते हैं और नक्सलियों की वजह से पुलिस और मासूम ग्रामीणों को किन-किन दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. झारखंड भी एक जंगल प्रधान प्रदेश है और यहां के जंगल क्षेत्र में ज्यादातर आबादी बसती है. इसलिए जंगलों की कहानी को दिखाने का प्रयास इस फिल्म के माध्यम से किया गया है,ताकि जंगलों में रहने वालें लोगों के संघर्ष को देश के आम लोग जान सकें. वहीं फिल्म बनाने के दौरान आई समस्या को लेकर भी फिल्म के क्रू मेंबर ने अपनी परेशानी साझा किया.