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झारखंड जनजातीय महोत्सव में सजा विद्वानों का मंच, ट्राइबल कल्चर पर रखी राय

जनजातीय जीवन दर्शन पर आधारित सेमिनार, महोत्सव के दौरान बुधवार को दूसरे दिन भी जारी रहा. Jharkhand Tribal Festival के दौरान टीआरआई में आयोजित सेमिनार में विद्वानों ने जनजातीयों के जीवन शैली से लेकर इनके इतिहास पर प्रकाश डाला.

Jharkhand Tribal Festival
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Published : Aug 10, 2022, 9:10 PM IST

Updated : Aug 10, 2022, 10:24 PM IST

रांचीः जनजातीय महोत्सव(Jharkhand Tribal Festival) के दूसरे दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावे आदिवासियों के जीवन दर्शन पर खुलकर चर्चा हुई. मोरहाबादी स्थित टीआरआई में आये देश विदेश के विद्वानों ने इस आयोजन को अद्भुत बताते हुए कहा कि झारखंड ने जनजातीय महोत्सव (Jharkhand Tribal Festival) के जरिए देश को एक बड़ा मैसेज देने का काम किया है. जनजातीयों के इतिहास पर आयोजित सेमिनार ने आदिवासियों के वैसे अनुछुए पहलुओं की जानकारी देने की कोशिश की है जो आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं हो सका है.

जनजातीयों के जीवन दर्शन (tribal philosophy)से युवा पीढी को अवगत कराने के साथ साथ इन पर आगे भी रिसर्च जारी रहने की आवश्यकता विद्वानों ने जताया. आदिवासी साहित्य पर व्याख्यान देने आये जाने माने हिंदी साहित्य के विद्वान अशोक प्रियदर्शी ने इस सेमिनार को अद्भुत बताया. वहीं टीआरआई निदेशक रणेंद्र कुमार देश विदेश से आये विद्वानों की उपस्थिति से खासे खुश दिखे. उन्होंने कहा कि सेमिनार के माध्यम से आदिवासियों की संस्कृति, सभ्यता और ऐतिहासिक पहलुओं पर प्रकाश डाला गया, जो वाकई में अद्भुत है.

देखें पूरी खबर

मध्य प्रदेश से आये ट्राइबल साहित्य के जाने माने विद्वान अमर कंटक ने कहा कि जनजातीयों को समझने जानने की दिशा में झारखंड सरकार द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम बेहतरीन है. बीएचयू से आई विद्वान वंदना चौबे बताती हैं कि जनजातीयों के बारे में आज भी बहुत सारी बातें हैं जो समाज के बीच नहीं आ पाई हैं. उनकी जीवनचर्या में साहित्य, कला, संस्कृति छिपी हुई है. प्रकृति सेवक ही नहीं उन्हें मानव जीवन के अग्रणी पीढ़ी के रुप में माना जाना चाहिए.


सेमिनार में ये लोग हुए शामिलः जनजातीय शोध संस्थान में विभिन्न विषयों पर आयोजित सेमिनार में जनजाति परंपरा, साहित्यिक पक्ष, जीवन शैली, कला संस्कृति आदि के जानकारों ने विभिन्न मंचों से अलग-अलग विषयों पर अपना व्याख्यान दिया. अलग अलग सत्रों में दो दिनों चले इस सेमिनार में प्रयागराज से प्रो. जनार्दन गोण्ड, कविता करमाकर (असम), संतोष कुमार सोनकर, बिनोद कुमार (कल्याण, मुम्बई), दिनकर कुमार (गुवाहाटी), अरूण कुमार उरंव (जेएनयू, नई दिल्ली), हेमंत दलपती (ओडिशा), सानता नायक (कर्नाटक), रूद्र चरण मांझी (बिहार), डॉ. देवमेत मिंझ (छत्तीसगढ़), कुसुम माधुरी टोप्पो, महादेव टोप्पो और प्रो. पार्वती तिर्की (रांची), प्रो. सुभद्रा चन्ना, प्रो.एच सी बहेरा, डॉ मीनाक्षी मुंडा, डॉ. आइसा गौतम, डॉ. संतोष किंडो, प्रो. मृणाल मिरी,प्रो. सुजाता मिरी आदि ने भी अपने विचार साझा किए.

रांचीः जनजातीय महोत्सव(Jharkhand Tribal Festival) के दूसरे दिन सांस्कृतिक कार्यक्रमों के अलावे आदिवासियों के जीवन दर्शन पर खुलकर चर्चा हुई. मोरहाबादी स्थित टीआरआई में आये देश विदेश के विद्वानों ने इस आयोजन को अद्भुत बताते हुए कहा कि झारखंड ने जनजातीय महोत्सव (Jharkhand Tribal Festival) के जरिए देश को एक बड़ा मैसेज देने का काम किया है. जनजातीयों के इतिहास पर आयोजित सेमिनार ने आदिवासियों के वैसे अनुछुए पहलुओं की जानकारी देने की कोशिश की है जो आज भी इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं हो सका है.

जनजातीयों के जीवन दर्शन (tribal philosophy)से युवा पीढी को अवगत कराने के साथ साथ इन पर आगे भी रिसर्च जारी रहने की आवश्यकता विद्वानों ने जताया. आदिवासी साहित्य पर व्याख्यान देने आये जाने माने हिंदी साहित्य के विद्वान अशोक प्रियदर्शी ने इस सेमिनार को अद्भुत बताया. वहीं टीआरआई निदेशक रणेंद्र कुमार देश विदेश से आये विद्वानों की उपस्थिति से खासे खुश दिखे. उन्होंने कहा कि सेमिनार के माध्यम से आदिवासियों की संस्कृति, सभ्यता और ऐतिहासिक पहलुओं पर प्रकाश डाला गया, जो वाकई में अद्भुत है.

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मध्य प्रदेश से आये ट्राइबल साहित्य के जाने माने विद्वान अमर कंटक ने कहा कि जनजातीयों को समझने जानने की दिशा में झारखंड सरकार द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम बेहतरीन है. बीएचयू से आई विद्वान वंदना चौबे बताती हैं कि जनजातीयों के बारे में आज भी बहुत सारी बातें हैं जो समाज के बीच नहीं आ पाई हैं. उनकी जीवनचर्या में साहित्य, कला, संस्कृति छिपी हुई है. प्रकृति सेवक ही नहीं उन्हें मानव जीवन के अग्रणी पीढ़ी के रुप में माना जाना चाहिए.


सेमिनार में ये लोग हुए शामिलः जनजातीय शोध संस्थान में विभिन्न विषयों पर आयोजित सेमिनार में जनजाति परंपरा, साहित्यिक पक्ष, जीवन शैली, कला संस्कृति आदि के जानकारों ने विभिन्न मंचों से अलग-अलग विषयों पर अपना व्याख्यान दिया. अलग अलग सत्रों में दो दिनों चले इस सेमिनार में प्रयागराज से प्रो. जनार्दन गोण्ड, कविता करमाकर (असम), संतोष कुमार सोनकर, बिनोद कुमार (कल्याण, मुम्बई), दिनकर कुमार (गुवाहाटी), अरूण कुमार उरंव (जेएनयू, नई दिल्ली), हेमंत दलपती (ओडिशा), सानता नायक (कर्नाटक), रूद्र चरण मांझी (बिहार), डॉ. देवमेत मिंझ (छत्तीसगढ़), कुसुम माधुरी टोप्पो, महादेव टोप्पो और प्रो. पार्वती तिर्की (रांची), प्रो. सुभद्रा चन्ना, प्रो.एच सी बहेरा, डॉ मीनाक्षी मुंडा, डॉ. आइसा गौतम, डॉ. संतोष किंडो, प्रो. मृणाल मिरी,प्रो. सुजाता मिरी आदि ने भी अपने विचार साझा किए.

Last Updated : Aug 10, 2022, 10:24 PM IST
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