रांची: पूर्वी सिंहभूम से निर्दलीय विधायक सरयू राय (Saryu Rai) ने मैनहर्ट घोटाला (Manhart scam) मामले में आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं किए जाने का आरोप लगाते हुए हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की है. उनका कहना है कि मैनहर्ट घोटाला की जांच में आरोप सिद्ध हो जाने और मुख्य अभियुक्त सहित कई अन्य अभियुक्तों का जवाब आने के बावजूद राज्य सरकार आगे की कार्रवाई नहीं कर रही है. इस वजह से झारखंड हाई कोर्ट में रिट याचिका दायर की गई है. उन्होंने इस मामले में राज्य सरकार, डीजीपी, एसीबी के एडीजी और एसीबी के एसपी को पार्टी बनाया है. उनका कहना है कि साल 2005 में मैनहर्ट घोटाला हुआ था.
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रांची में सिवरेज-ड्रेनेज प्रोजेक्ट के लिए नियम को ताक पर रखकर मैनहर्ट सिंगपुर प्राइवेट लिमिटेड को कंसल्टेंट बनाया गया था. एसीबी ने इस मामले की जांच की थी लेकिन इसको ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. याचिका में कहा गया है कि साल 2003 में हाई कोर्ट ने एक पीआईएल पर सुनवाई करते हुए रांची में सिवरेज-ड्रेनेज की मुकम्मल व्यवस्था करने का आदेश दिया था. इसपर जुलाई 2003 में सरकार ने निर्माण कार्य के लिए परामर्शी के चयन को लेकर टेंडर निकाला था. इसमें ऑपरेशन रिसर्च ग्रुप, स्पैन ट्रेवर्स मॉर्गन के साथ नगर निगम के बीच एमओयू हुआ था. दोनों कंपनियों को डीपीआर तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई थी. लेकिन 2005 के विधानसभा चुनाव के बाद तत्कालीन नगर विकास मंत्री रघुवर दास (Raghuvar Das) ने पूर्व के एमओयू को रद्द कर दिया था. इसके बाद 21.40 करोड़ देकर मैनहर्ट को जिम्मेवारी दी गई.
यह मामला विधानसभा में भी उठा. तब स्पीकर ने एक समिति बनाई. इसपर नगर विकास विभाग ने अपने ही विभाग के चीफ इंजीनियर के नेतृत्व में एक टेक्निकल कमेटी बना दी. तब विधानसभा की समिति ने मैनहर्ट पर सवाल खड़े किए थे. लेकिन सरकार ने विधानसभा के इंप्लिमेंटेशन कमेटी की रिपोर्ट पर कोई कार्रवाई नहीं की गई. इन सबके बीच पूर्व में एमओयू करने वाली कंपनी ओआरजी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. जिसपर हाई कोर्ट ने केरल के एक सेवानिवृत्त जज को आरबीट्रेटर नियुक्त कर दिया. बाद में ओआरजी को हटाने के फैसले को गलत बताते हुए संबंधित कंपनी को 3 करोड़ 61 लाख रुपए मुआवजा के तौर पर देने का निर्देश जारी किया गया. फिर एसीबी ने भी अपनी जांच में मैनहर्ट के चयन की प्रक्रिया को गलत ठहराया. एसीबी ने जब आरोपियों पर कोई एक्शन नहीं लिया तो इसके खिलाफ 2016 में एक और पीआईएल दायर हुआ. इसपर सुनवाई चली और साल 2018 में हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को इस मामले में निर्णय लेने का आदेश जारी किया. सरयू राय का कहना है कि इतना गंभीर मामला अभी तक अटका पड़ा है इसलिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है.