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सरना धर्म कोड की मांग को लेकर सड़क पर उतरा आदिवासी समाज, बनाई मानव श्रृंखला

रांची में आदिवासी समुदाय सरना धर्म कोड की मांग को लेकर सड़क पर उतरे और मानव श्रृंखला बनाई. इस दौरान आदिवासी समुदाय के लोगों ने विधानसभा के मानसून सत्र में सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पास कर केंद्र सरकार को भेजने की मांग की.

आदिवासी समाज ने बनाई मानव श्रृंखला
आदिवासी समाज ने बनाई मानव श्रृंखला
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Published : Sep 20, 2020, 4:54 PM IST

रांची: आदिवासी बाहुल्य राज्य झारखंड में सरना धर्म कोड की मांग एक लंबे अरसे से चली आ रही है. जो एक बार फिर जोर पकड़ता दिख रहा है. सरना धर्म कोड को लेकर राज्य के तमाम आदिवासियों ने सड़क पर उतर कर मानव श्रृंखला बनाई और विधानसभा के मानसून सत्र में सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पास कर केंद्र सरकार को भेजने की मांग की.

देखें पूरी खबर

मानव श्रृंखला बनाकर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया

आदिवासी समुदाय के लोगों ने सड़क के विभिन्न चौक-चौराहों पर विशाल मानव श्रृंखला बनाकर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराने का काम किया. वहीं आदिवासियों की इस मांग के समर्थन में कई दूसरे समुदाय के लोग भी सड़क पर उतरे, जो इस लड़ाई में हमेशा साथ देने की बात कह रहे हैं. आदिवासी सामाजिक धार्मिक संगठनों के मुताबिक सरना समाज के लोग राजनीति का शिकार होते रहे हैं. तमाम राजनीतिक दल ने सरना धर्म कोड को चुनावी मुद्दा बनाकर सत्ता में काबिज होते हैं. लेकिन बाद में यह मुद्दा गायब हो जाता है.

इस बार आर पार की लड़ाई

आदिवासी समाज के लोग प्रकृति के पूजक होते हैं. जिनका पहचान इनके सभ्यता संस्कृति और परंपरा से होती है. जो इनके धार्मिक अनुष्ठान में देखने को मिलती है. जिसे आदिवासी समाज के लोग आदि काल से ही बचाए रखा है. लेकिन बड़ी दुर्भाग्य है कि आजादी के 73 साल बीत जाने के बाद भी इन्हें अपना धार्मिक पहचान नहीं मिल पाया है अब अपनी धार्मिक पहचान को पाने के लिए समाज के लोग जागरूक हो चुके हैं. आगामी 2021 में होने वाले जनगणना में सरना धर्म कॉलम अंकित किया जाए. इसको लेकर आर पार की लड़ाई लड़ने के मूड में है.

खतरे में आदिवासियों का अस्तित्व

आदिवासी सरना समाज को अपना धर्म कोड नहीं मिलने की वजह है कि इनके धार्मिक अस्तित्व दिनों दिन खतरे में पड़ती जा रही है. इन्हें सनातन धर्म से जोड़ा जा रहा है. वहीं इस समुदाय का धर्मांतरण भी बड़े पैमाने पर हो रहा है. यही वजह है कि सरना समाज के लोग अपने धार्मिक पहचान को बचाने के लिए धर्म कोड की मांग कर रहे हैं. समाज के लोगों का मानना है कि सदियों पुरानी मांगे इस बार पूरी नहीं हो पायी तो आगे कभी नहीं हो पाएगा. यह इसलिए कि राज्य के मुख्यमंत्री, राज्यपाल और विपक्ष के नेता प्रतिपक्ष सभी आदिवासी समाज के हैं.

इसे भी पढ़ें- सरकार और सहायक पुलिसकर्मियों की वार्ता विफल, आंदोलन जारी

देश के आदिवासी समाज को आब्जर्वर ट्राईब का दर्जा ब्रिटिश शासन काल में मिला था, जिसे 1951 के बाद से हटा दिया गया. तब से आदिवासी सरना समाज के लोग अपनी धार्मिक पहचान को लेकर संघर्ष कर रहे हैं. जो एक बार फिर जोर पकड़ता दिख रहा है.

क्या है सरना धर्म कोड

झारखंड में जनगणना में सरना कोड लागू करने की मांग काफी समय से चली आ रही है. सरना एक धर्म है जो प्रकृतिवाद पर आधारित है और सरना धर्मावलंबी प्रकृति के उपासक होते हैं. झारखंड में 32 जनजाति हैं, जिनमें से आठ पीवीटीजी (परटिकुलरली वनरेबल ट्राइबल ग्रुप) हैं. यह सभी जनजाति हिंदू की ही कैटेगरी में आते हैं, लेकिन इनमें से जो ईसाई धर्म स्वीकार कर चुके हैं वे अपने धर्म के कोड में ईसाई लिखते हैं.

रांची: आदिवासी बाहुल्य राज्य झारखंड में सरना धर्म कोड की मांग एक लंबे अरसे से चली आ रही है. जो एक बार फिर जोर पकड़ता दिख रहा है. सरना धर्म कोड को लेकर राज्य के तमाम आदिवासियों ने सड़क पर उतर कर मानव श्रृंखला बनाई और विधानसभा के मानसून सत्र में सरना धर्म कोड का प्रस्ताव पास कर केंद्र सरकार को भेजने की मांग की.

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मानव श्रृंखला बनाकर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया

आदिवासी समुदाय के लोगों ने सड़क के विभिन्न चौक-चौराहों पर विशाल मानव श्रृंखला बनाकर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराने का काम किया. वहीं आदिवासियों की इस मांग के समर्थन में कई दूसरे समुदाय के लोग भी सड़क पर उतरे, जो इस लड़ाई में हमेशा साथ देने की बात कह रहे हैं. आदिवासी सामाजिक धार्मिक संगठनों के मुताबिक सरना समाज के लोग राजनीति का शिकार होते रहे हैं. तमाम राजनीतिक दल ने सरना धर्म कोड को चुनावी मुद्दा बनाकर सत्ता में काबिज होते हैं. लेकिन बाद में यह मुद्दा गायब हो जाता है.

इस बार आर पार की लड़ाई

आदिवासी समाज के लोग प्रकृति के पूजक होते हैं. जिनका पहचान इनके सभ्यता संस्कृति और परंपरा से होती है. जो इनके धार्मिक अनुष्ठान में देखने को मिलती है. जिसे आदिवासी समाज के लोग आदि काल से ही बचाए रखा है. लेकिन बड़ी दुर्भाग्य है कि आजादी के 73 साल बीत जाने के बाद भी इन्हें अपना धार्मिक पहचान नहीं मिल पाया है अब अपनी धार्मिक पहचान को पाने के लिए समाज के लोग जागरूक हो चुके हैं. आगामी 2021 में होने वाले जनगणना में सरना धर्म कॉलम अंकित किया जाए. इसको लेकर आर पार की लड़ाई लड़ने के मूड में है.

खतरे में आदिवासियों का अस्तित्व

आदिवासी सरना समाज को अपना धर्म कोड नहीं मिलने की वजह है कि इनके धार्मिक अस्तित्व दिनों दिन खतरे में पड़ती जा रही है. इन्हें सनातन धर्म से जोड़ा जा रहा है. वहीं इस समुदाय का धर्मांतरण भी बड़े पैमाने पर हो रहा है. यही वजह है कि सरना समाज के लोग अपने धार्मिक पहचान को बचाने के लिए धर्म कोड की मांग कर रहे हैं. समाज के लोगों का मानना है कि सदियों पुरानी मांगे इस बार पूरी नहीं हो पायी तो आगे कभी नहीं हो पाएगा. यह इसलिए कि राज्य के मुख्यमंत्री, राज्यपाल और विपक्ष के नेता प्रतिपक्ष सभी आदिवासी समाज के हैं.

इसे भी पढ़ें- सरकार और सहायक पुलिसकर्मियों की वार्ता विफल, आंदोलन जारी

देश के आदिवासी समाज को आब्जर्वर ट्राईब का दर्जा ब्रिटिश शासन काल में मिला था, जिसे 1951 के बाद से हटा दिया गया. तब से आदिवासी सरना समाज के लोग अपनी धार्मिक पहचान को लेकर संघर्ष कर रहे हैं. जो एक बार फिर जोर पकड़ता दिख रहा है.

क्या है सरना धर्म कोड

झारखंड में जनगणना में सरना कोड लागू करने की मांग काफी समय से चली आ रही है. सरना एक धर्म है जो प्रकृतिवाद पर आधारित है और सरना धर्मावलंबी प्रकृति के उपासक होते हैं. झारखंड में 32 जनजाति हैं, जिनमें से आठ पीवीटीजी (परटिकुलरली वनरेबल ट्राइबल ग्रुप) हैं. यह सभी जनजाति हिंदू की ही कैटेगरी में आते हैं, लेकिन इनमें से जो ईसाई धर्म स्वीकार कर चुके हैं वे अपने धर्म के कोड में ईसाई लिखते हैं.

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