रांची: प्रकृति पर्व सरहुल को लेकर पूरे झारखंड में खुशी की लहर है. इसी कड़ी में रांची विश्वविद्यालय के दीक्षांत मंडप में सरहूल की पूर्व संध्या पर समारोह का आयोजन किया गया. जिसमें पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव, बंधु तिर्की और रांची विश्वविद्यालय के कुलपति रमेश कुमार पांडे समेत कई गणमान्य शामिल हुए.
सरना नवयुवक संघ के द्वारा इस आयोजन में झारखंड के आदिवासी और जनजातियों से जुड़े लोक नृत्य कार्यक्रम की प्रस्तुति की गई. प्रकृति संरक्षण को लेकर संकल्प भी लिया गया. इस कार्यक्रम में बंधु तिर्की ने जमकर ढोल बजाया और कलाकारों के साथ कदम से कदम मिलाकर नाचा.
इस अवसर पर झारखंड के आदिवासी और आदिम जनजातियों के रहन सहन, प्रकृति के प्रति प्रेम को दर्शाया गया. साथ ही लोक नृत्य भी प्रस्तुत किए गए. जिसमें मुंडारी, संथाली, हो भाषा से जुड़े गीत-संगीत की प्रस्तुति दी गई.
कार्यक्रम के दौरान अतिथियों ने कहा कि यह पर्व लोगों के लिए काफी महत्वपूर्ण है. इस पर्व के जरिए ही प्रकृति संरक्षण को लेकर सीख दी जाती है. वहीं इस दौरान पूर्व शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की ने कहा कि झारखंड को महानगरों की तर्ज पर छेड़ा जा रहा है, जो आदिवासियों के हित में नहीं है. इसलिए इस दिशा में सोचने की जरूरत है, जबकि आदिवासी नेता सह शिक्षाविद करमा उरांव ने कहा कि आदिवासियों के लिए सरना धर्म कोड की जरूरत है इस धर्म को अन्य धर्मों से अलग रखने की भी आवश्यकता है. तभी आदिवासियों का विकास संभव है.
सरहुल अब सिर्फ झारखंड में ही नहीं मनाया जाता है. केवल एक समुदाय द्वारा इसका आयोजन नहीं होता, बल्कि अब सरहुल देश भर में मनाया जाने लगा है. इसके जरिये लोगों को प्रकृति के प्रति प्रेम, पर्यावरण संरक्षण और जल, जंगल, जमीन को बचाने का संदेश भी दिया जाता है. .