रांची: राज्य में पिछले कुछ दिनों में अच्छी बारिश हो रही है. मौसम विभाग ने आगे भी अच्छी बारिश की संभावना जताया है. बरसात के इस मौसम में सब्जी और फसलों का बढ़िया उत्पादन किसानों को मिला है, लेकिन अधिक वर्षा से खेतों में लगी फसलों में कीट और रोग का प्रकोप बढ़ गया है.
खेतों में लगे फूलगोभी, बंदगोभी, ब्रोकली, नेनुआ, कद्दू और शिमला मिर्च आदि की फसलों में कीट और रोग का प्रकोप बढ़ गया है. कीट लगने के कारण सब्जी की खेती को नुकसान भी हो रहा है. तैयार फसलों में कीट लगने से किसानों को फसल की उचित कीमत नहीं मिल पा रही है. इसे लेकर बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कीट वैज्ञानिक डॉ पीके सिंह ने बताया कि बरसात के मौसम में खड़ी फसलों पर कीट एवं रोग का प्रकोप अधिक देखने को मिलता है, इस समय में अपने आप रोग बढ़ जाता है. इस समय खेत से सब्जियां निकल कर मार्किट में आ रही हैं. ऐसे में किसानों को सब्जी की फसलों पर रासायनिक कीटनाशक के प्रयोग से परहेज करने की जरूरत है. मानव स्वास्थ्य और फसलों की बेहतर गुणवत्ता के लिए जैविक कीटनाशी का प्रयोग सबसे बेहतर होगा.
डॉ पीके सिंह ने बताया कि किसानों को जैविक कीटनाशक के छिड़काव के बाद कम से कम चार घंटे तक बारिश नहीं होने की संभावना पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है. इस समय नेनुआ, कद्दु और शिमला मिर्च पर उड़ने वाले कीट का प्रकोप देखने को मिल रहा है. ये कीट फसल के फूल का रस चूस लेते है, जिससे फूल टूटकर गिर जाते है. बीएयू वैज्ञानिकों ने बरसात के इस मौसम में विभिन्न सब्जियों और फसलों के खेतों में जल जमाव से बचाव करने की सलाह दी है. इन दिनों किसी भी दवा के छिड़काव कार्य को स्थगित रखना ही उचित होगा. अतिआवश्यक होने पर दवा के घोल में टीपोल या सैंडोविट (5 मिलीलीटर प्रति 10 लीटर की घोल में) मिलाकर अथवा दवा के घोल को साबुन के पानी में तैयार कर साफ मौसम देखते हुए छिड़काव करना चाहिए.
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वैज्ञानिकों ने बताया कि फसल में किसी भी कीड़ों का अधिक प्रकोप दिखने पर दानेदार कीटनाशी दवा कार्बोफ्यूरान 3 जी (12 किलोग्राम प्रति एकड़ ) या फोरेट 10 जी (4 किलोग्राम प्रति एकड़) का भुरकाव करें. इन दानेदार कीटनाशी दवा के भुरकाव के समय खेत में कम से कम 2 सेंटीमीटर पानी स्थिर होना चाहिए. इस समय से बोयी गई कम अवधि की फसल पुष्पावस्था में है या पुष्पावस्था में आने को है.
इस अवस्था में गंधीबग कीट के आक्रमण की संभावना रहती है, जो फूलों के रस को चूस लेता है. जिससे दाने नहीं बन पाते हैं. इस स्थिति में फसल की विशेष देखभाल और कीटों का आक्रमण होने पर कीटनाशी दवा क्लोरपाइरीफास, क्वीनालफास, मिथाइल पाराथियान धूल का भुरकाव 10 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से साफ मौसम देखते हुए करना चाहिए. कीटनाशी दवा के भुरकाव के बाद ये कीड़े बगल वाले खेतों में चले जाते है. इसलिए एक साथ अलग-अलग खेतों में दवा का भुरकाव करनी चाहिए. कीटनाशी दवा के अभाव में राख में मिट्टी (किरासन) तेल मिलाकर खड़ी फसल में भुरकाव की जा सकती है.