रांची: झारखंड एक आदिवासी बहुल राज्य है. जल, जंगल और जमीन के संघर्ष ने इस राज्य की नींव रखी. सत्ता पर भी इसका असर दिखा. राज्य बनने के बाद रघुवर दास के पांच साल को छोड़ दें तो यहां की सत्ता की चाबी हमेशा आदिवासी के पास ही रही. लेकिन एसटी के लिए रिजर्व 28 सीटों पर सरना आदिवासी की तुलना में दबदबा ईसाई आदिवासियों का रहा है.
राज्य में 26.2 प्रतिशत से थोड़ा ज्यादा आदिवासी समाज के लोग हैं. जबकि ईसाई समाज की आबादी महज 4.1 प्रतिशत है. इसके बावजूद सदन में 9 विधायक ऐसे हैं जो ईसाई आदिवासी हैं. अब लोकसभा के पूर्व उपाध्यक्ष सह भाजपा के दिग्गज नेता कड़िया मुंडा ने खुलकर इस बात को उठा दिया है कि दूसरा धर्म अपनाने वालों को एसटी का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मुंबई में आरएसएस से जुड़े जनजाति सुरक्षा मंच से उन्होंने कहा है कि जनजातियों का धर्म बदलने की साजिश चल रही है. जिन आदिवासियों ने इस्लाम या ईसाई धर्म अपना लिया है, उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलना चाहिए. दलील है कि जिस तरह धर्म बदलने पर एससी समाज को आरक्षण का लाभ नहीं मिलता, वही कानून एसटी समाज पर भी लागू होना चाहिए. लिहाजा, उनके बयान से झारखंड में नये सीरे से बहस छिड़ गई है. क्या यह भाजपा का नया गेम प्लान है?
सरना धर्म गुरु बंधन तिग्गा का कहना है कि किसी भी हाल में आदिवासियों का धर्मांतरण नहीं होना चाहिए. हमारी व्यवस्था कस्टमरी लॉ पर आधारित होती है. धर्म बदलने से हमारी संस्कृति प्रभावित हो रही है. साथ ही उन्होंने कड़िया मुंडा से पूछा कि पहले उन्हें बताना चाहिए कि वह किस धर्म को मानते हैं. साथ ही उनसे सवाल किया कि जब वह लोकसभा के उपाध्यक्ष थे, तब इस मसले को क्यों नहीं उठाया. वर्तमान में तो केंद्र में भाजपा की ही सरकार है. सिर्फ बोलने से कुछ नहीं होगा. खुद पावरफुल व्यक्ति है. आदिवासियों को धारा 342 में एसटी का दर्जा प्राप्त है.
अब सवाल है कि आदिवासी किस धर्म में आते हैं. हम तो खुद अपनी पहचान की लड़ाई लड़ रहे हैं. इसलिए सरना धर्म कोड की मांग हो रही है. आरक्षण तो रीति रिवाज से होती है. कार्तिक बाबा ने संसद में इस मामले को उठाया था. भारत के छह धर्मों को एसटी मानते हैं. कड़िया मुंडा जी को प्रधानमंत्री जी से बात करके संशोधन बिल लाना चाहिए. फिलहाल, उन्होंने जो बात कही है वह सिर्फ राजनीतिक स्टंट है. लोगों को बेवकूफ बना रहे हैं. उन्हें हमारे आंदोलन के साथ खड़ा होना चाहिए.
टीएसी के पूर्व सदस्य सह संविधान जागर यात्रा के को-ऑर्डिनेटर रतन तिर्की का कहना है कड़िया मुंडा आदरणीय व्यक्ति हैं. लेकिन 2024 के चुनाव के पहले इस तरह का बयान देना शोभा नहीं देता. रघुवर सरकार ने जब एंटी कंवर्सन बिल लाया था. तब कहा गया था कि अगर कोई धर्म परिवर्तन करता है तो इसकी जानकारी डीसी को देनी होगी. उन्हें बताना चाहिए जबरन धर्म परिवर्तन के कितने मामले थानों में दर्ज हैं. तीसरा सवाल है कि 2011 की जनगणना के हिसाब से 2.3 प्रतिशत क्रिश्चियन हैं. कहां जनसंख्या बढ़ी है. आखिर डर किससे हैं. वह लोकसभा के उपाध्यक्ष रहे हैं. उन्हें संविधान की पूरी जानकारी है. कोई भी व्यक्ति कोई भी धर्म अपना सकता है. धर्म परिवर्तन के बाद भी वह ट्राइबल ही रहेगा. ऐसे में उनकी बुद्धिमता पर सवाल उठना लाजमी है. लिहाजा, चुनाव से पहले यह उनका राजनीतिक स्टैंड है. अगर कहीं कानून के खिलाफ जाकर धर्म परिवर्तन हो रहा है, तब बात समझ आती. हेमंत सरकार ने सरना धर्म कोड बिल पास करके राज्यपाल को भेजा है. कायदे से कड़िया मुंडा जी को उसपर पहल करना चाहिए.
तत्कालीन रघुवर सरकार कर चुकी है पहल: तत्कालीन रघुवर सरकार ने इस दिशा में पहल शुरु की थी. तब बात उठी थी कि जो आदिवासी धर्म परिवर्तन कर चुके हैं, अपनी परंपरा और रीति-रिवाज छोड़ चुके हैं. स्थान बदल चुके हैं, उन्हें आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए. तब विधि विभाग ने तत्कालीन महाधिवक्ता से राय भी मांगी थी. संविधान (एससी) आदेश 1950 के मुताबिक हिन्दू, सिख या बौद्ध धर्म के अलावा दूसरा धर्म अपनाने वाले को एससी समुदाय का हिस्सा नहीं माना जा सकता. यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. यही व्यवस्था आदिवासियों के धर्म परिवर्तन पर भी लागू करने की मांग होती रही है. लेकिन कानूनी रुप से कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया है.
झारखंड सदन में इसाई आदिवासी का दबदबा: झारखंड विधानसभा में एसटी के लिए 28 सीटें रिजर्व हैं. यहां की राजनीति में संथाल, उरांव, मुंडा और हो जनजाति का दबदबा रहा है. बावजूद इसके, सरना आबादी की तुलना में इसाई आदिवासी का सदन में मजबूत पकड़ है. वर्तमान में 4 प्रतिशत आबादी वाले इसाई समाज के कुल 9 विधायक हैं. इनमें लिट्टीपाड़ा विधायक दिनेश विलियम मरांडी, महेशपुर विधायक स्टीफन मरांडी, शिकारीपाड़ा विधायक नलीन सोरेन, मंझगांव विधायक निरल पूर्ति, मांडर विधायक नेहा शिल्पी तिर्की, सिसई विधायक जीगा सुसारन होरो, गुमला विधायक भूषण तिर्की, कोलेबिरा विधायक नमन विक्सल कोंगाड़ी और सिमडेगा विधायक भूषण बाड़ा के नाम हैं. ये सभी इसाई धर्म अपना चुके हैं. प्रार्थना के लिए चर्च जाते हैं.
भाजपा इस फैक्टर को हमेशा भुनाने की कोशिश करती है. सरना की बात करती है. इसके बावजूद 28 रिजर्व सीटों पर भाजपा पिछड़ती जा रही है. 2014 के चुनाव में भाजपा को 11 एसटी सीटों पर जीत मिली थी. इसकी वजह रहा भाजपा को संथाल, मुंडा, हो और उरांव जनजाति का समर्थन. लेकिन 2019 में सिर्फ मुंडा समाज के नीलकंठ सिंह मुंडा और कोचे मुंडा ही भाजपा की टिकट पर चुनाव जीत पाए. शेष एसटी सीटों का बंटवारा झामुमो और कांग्रेस में हो गया. अब कड़िया मुंडा जैसे भाजपा के दिग्गज नेता के बयान से साफ हो गया है कि भाजपा सरना कार्ड के जरिए आगे बढ़ना चाह रही है. क्योंकि भाजपा को मालूम है कि उसको ईसाई आदिवासी समाज का समर्थन मिलना मुश्किल है.
सरना आदिवासियों की जनसंख्या में गिरावट: झारखंड में सरना और ईसाई आदिवासी को लेकर समय-समय पर राजनीति होती रही है. झारखंड में ईसाई समाज की आबादी बढ़ी है तो सरना की घटी है. 1951 की जनगणना के वक्त एकीकृत बिहार के झारखंड वाले दक्षिणी हिस्से में आदिवासियों की आबादी 35.8 प्रतिशत थी जो 2011 की जनगणना में 26.1 प्रतिशत पर आ गयी. आरएसएस का दावा है कि कनवर्जन की वजह से झारखंड में पिछले 60 वर्षों में आदिवासियों की संख्या करीब 10 प्रतिशत घटी है.
एसटी सीटों पर पार्टियों का हालिया समीकरण: 2014 के चुनाव में भाजपा को 28 एसटी सीटों में से 11 सीटें मिली थी. जबकि झामुमो ने 13 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन 2019 के चुनाव में एसटी की सिर्फ दो सीटों पर भाजपा सिमट गई. वहीं झामुमो ने 19 सीटों पर (संथाल में 7 सीट, कोल्हान में 8 सीट, दक्षिणी छोटानागपुर में 4 सीट) रिकॉर्ड जीत दर्ज की. शेष सात एसटी सीटों में से छह पर कांग्रेस और मांडर सीट पर जेवीएम ने कब्जा जमाया. उपचुनाव के बाद जेवीएम की सीट कांग्रेस के खाते में आते ही कुल 7 एसटी सीटों पर कांग्रेस का कब्जा हो चुका है. जबकि झारखंड बनने से पहले एकीकृत बिहार में साल 2000 में हुए चुनाव के वक्त यहां की 28 एसटी में से 14 सीटों पर भाजपा काबिज थी.
सबसे खास बात है कि कड़िया मुंडा झारखंड के एक सम्मानित नेता हैं. उनका सभी आदर करते हैं. वह विवादों से दूर रहते हैं. लेकिन उनके इस बयान को राजनीतिक स्टंट करार दिया जा रहा है. अब देखना है कि इस मसले को लेकर भाजपा आगे बढ़ती है या उनका बयान सिर्फ जुमला बनकर रह जाता है.
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