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झारखंड में बीएड कॉलेजों की अधिकांश सीटें खाली, आखिर क्यों नहीं छात्र करा रहे एडमिशन, जानिए वजह

झारखंड में बीएड कॉलेजों की सीट खाली जा रही हैं. एडमिशन के लिए छात्र कॉलेज नहीं जा रहे हैं. इसके पीछे कई कारण माने जा रहे हैं. सरकार के उदासीन रवैया के साथ ही बीएड के लिए फीस को भी बड़ा कारण माना जा रहा है.

seats vacant in BEd colleges in Jharkhand
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 16, 2023, 7:58 PM IST

बीएड कॉलेजों की अधिकांश सीटें खाली

रांची: सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों में शिक्षक बनकर शिक्षा का अलख जगाने के लिए युवाओं में चाहत अब कम होने लगी है. इसके पीछे सरकार के द्वारा शिक्षक योग्यता को लेकर हो रहे लगातार बदलाव और अनियमित अवसर को माना जा रहा है. एक सरकारी स्कूल में शिक्षक बनने के लिए अभ्यर्थियों को कई परीक्षा पास करनी होती है. उसके बाद वो स्कूल तक पहुंच पाते हैं. हाल के दिनों में प्राइमरी शिक्षक के लिए बीएड की मान्यता के बजाय डीएलएड को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनिवार्य किया जाना और लंबे समय से शिक्षक पात्रता परीक्षा राज्य में नहीं होने से बीएड करने की चाहत रखने वाले युवाओं में भारी कमी है.

यह भी पढ़ें: खुशखबरी! झारखंड को जल्द मिलेंगे 3120 शिक्षक, रिकॉर्ड बनाने की तैयारी में कर्मचारी चयन आयोग, पढ़िए पूरी खबर

हालात यह हैं कि झारखंड संयुक्त प्रवेश प्रतियोगिता परीक्षा परिषद के द्वारा नामांकन के लिए आयोजित परीक्षा के बाद दूसरे राउंड की काउंसलिंग समाप्त होने पर भी राज्य के 133 बीएड कॉलेज में इस सत्र में कुल 13,300 सीटों में से 6,598 सीटें खाली रह गई हैं. सबसे ज्यादा गंभीर स्थिति सरकारी कॉलेज की तुलना में निजी कॉलेजों की हैं. जहां अधिकांश सीटें खाली हैं.

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ETV BHARAT GFX

शिक्षक बनने की चाहत रख रहे नवीन कुमार कहते हैं कि बीएड करना आज के समय में आसान नहीं है. सरकारी कॉलेज की बात छोड़िए निजी कॉलेज में 2 वर्ष का बीएड पूरा करने में दो से ढाई लाख रुपए लग जाते हैं. इसके बाद भी आपको शिक्षक पात्रता परीक्षा पास करनी होगी. शिक्षक पात्रता परीक्षा झारखंड में अनियमित है. ऐसे में सरकारी शिक्षक बनने का अवसर कम होने की वजह से अब विद्यार्थी बीएड करना उचित नहीं समझते. शिक्षाविद द्वारिका महतो का मानना है कि सरकार की उदासीन रवैया की वजह से बीएड के प्रति लोगों की रुचि कम हुई है.

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निजी कॉलेज में लगता है भारी भरकम फीस: सरकारी बीएड कॉलेज की तुलना में निजी कॉलेज में बीएड की भारी भरकम फीस विद्यार्थियों को देनी होती है. एक सरकारी राजकीय कॉलेज में बीएड के लिए 18000 रुपए 2 साल की फीस है. जबकि निजी बीएड कॉलेज में इसी कोर्स के लिए डेढ़ लाख फीस देनी होती है. इसके अलावा अन्य चार्ज भी विद्यार्थी को देना होता है. आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो सरकारी कॉलेज की तुलना में निजी कॉलेजों में सीट ज्यादा खाली हैं. इसके पीछे भारी भरकम फीस भी माना जा रहा है. राजकीय महिला प्रशिक्षण कॉलेज बरियातू की प्रभारी प्राचार्य प्रीति पांडे कहती हैं कि उनके कॉलेज में इस सत्र के लिए दूसरे राउंड की काउंसलिंग के बाद अब तक 12 सीटें खाली हैं. 20 सितंबर से नए सत्र की पढ़ाई शुरू होगी. जो सीटें खाली रह गई हैं, उसे तीसरे और चौथे राउंड की काउंसलिंग में यदि नामांकन हो पाता है तो लिया जाएगा.

बीएड कॉलेजों की अधिकांश सीटें खाली

रांची: सरकारी और गैर-सरकारी स्कूलों में शिक्षक बनकर शिक्षा का अलख जगाने के लिए युवाओं में चाहत अब कम होने लगी है. इसके पीछे सरकार के द्वारा शिक्षक योग्यता को लेकर हो रहे लगातार बदलाव और अनियमित अवसर को माना जा रहा है. एक सरकारी स्कूल में शिक्षक बनने के लिए अभ्यर्थियों को कई परीक्षा पास करनी होती है. उसके बाद वो स्कूल तक पहुंच पाते हैं. हाल के दिनों में प्राइमरी शिक्षक के लिए बीएड की मान्यता के बजाय डीएलएड को सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनिवार्य किया जाना और लंबे समय से शिक्षक पात्रता परीक्षा राज्य में नहीं होने से बीएड करने की चाहत रखने वाले युवाओं में भारी कमी है.

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हालात यह हैं कि झारखंड संयुक्त प्रवेश प्रतियोगिता परीक्षा परिषद के द्वारा नामांकन के लिए आयोजित परीक्षा के बाद दूसरे राउंड की काउंसलिंग समाप्त होने पर भी राज्य के 133 बीएड कॉलेज में इस सत्र में कुल 13,300 सीटों में से 6,598 सीटें खाली रह गई हैं. सबसे ज्यादा गंभीर स्थिति सरकारी कॉलेज की तुलना में निजी कॉलेजों की हैं. जहां अधिकांश सीटें खाली हैं.

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शिक्षक बनने की चाहत रख रहे नवीन कुमार कहते हैं कि बीएड करना आज के समय में आसान नहीं है. सरकारी कॉलेज की बात छोड़िए निजी कॉलेज में 2 वर्ष का बीएड पूरा करने में दो से ढाई लाख रुपए लग जाते हैं. इसके बाद भी आपको शिक्षक पात्रता परीक्षा पास करनी होगी. शिक्षक पात्रता परीक्षा झारखंड में अनियमित है. ऐसे में सरकारी शिक्षक बनने का अवसर कम होने की वजह से अब विद्यार्थी बीएड करना उचित नहीं समझते. शिक्षाविद द्वारिका महतो का मानना है कि सरकार की उदासीन रवैया की वजह से बीएड के प्रति लोगों की रुचि कम हुई है.

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निजी कॉलेज में लगता है भारी भरकम फीस: सरकारी बीएड कॉलेज की तुलना में निजी कॉलेज में बीएड की भारी भरकम फीस विद्यार्थियों को देनी होती है. एक सरकारी राजकीय कॉलेज में बीएड के लिए 18000 रुपए 2 साल की फीस है. जबकि निजी बीएड कॉलेज में इसी कोर्स के लिए डेढ़ लाख फीस देनी होती है. इसके अलावा अन्य चार्ज भी विद्यार्थी को देना होता है. आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो सरकारी कॉलेज की तुलना में निजी कॉलेजों में सीट ज्यादा खाली हैं. इसके पीछे भारी भरकम फीस भी माना जा रहा है. राजकीय महिला प्रशिक्षण कॉलेज बरियातू की प्रभारी प्राचार्य प्रीति पांडे कहती हैं कि उनके कॉलेज में इस सत्र के लिए दूसरे राउंड की काउंसलिंग के बाद अब तक 12 सीटें खाली हैं. 20 सितंबर से नए सत्र की पढ़ाई शुरू होगी. जो सीटें खाली रह गई हैं, उसे तीसरे और चौथे राउंड की काउंसलिंग में यदि नामांकन हो पाता है तो लिया जाएगा.

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