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साइबर क्राइम का बढ़ता दायराः जानिए, क्या है साइबर अपराधियों का ये तिलिस्म?

साइबर क्राइम का दायरा बढ़ रहा है. साइबर अपराध के लिए बदनाम झारखंड के साइबर क्रिमनल्स का दायरा अब झारखंड से बढ़कर ओड़िशा, पश्चिम बंगाल, असम और दिल्ली जैसे राज्यों तक फैल गया है. ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट से जानिए कैसा है साइबर क्रिमिनल्स का तिलिस्म?

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साइबर क्राइम
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Published : Jan 11, 2022, 8:58 PM IST

रांचीः हर इंसान के जीवन का अभिन्न अंग बना इंटरनेट, साइबर अपराधियों के लिए ऐशगाह बन गया है. साइबर अपराधियों ने एक इंटरनेट की दुनिया मे एक ऐसा तिलिस्म बना लिया है, जहां शिकारी पलक झपकते ही शिकार कर लेते हैं और सामने वाले को संभलने का मौका भी नहीं मिलता है. मासूम और अनपढ़ लोगों को अपना चारा बनाकर साइबर अपराधी लगातार लोगों के खातों में हाथ साफ कर रहे है.

इसे भी पढ़ें- साइबर फ्रॉड इंडस्ट्री में हायर किए जा रहे टेक्निकल एक्सपर्ट! 3 से लेकर 10 लाख रुपए मिल रही सैलरी


नदी-पहाड़ पार कर साइबर अपराधियों को तलाश रही पुलिसः साइबर अपराध के लिए बदनाम झारखंड के साइबर क्रिमनल्स का दायरा अब झारखंड से बढ़कर ओड़िशा, पश्चिम बंगाल, असम और दिल्ली जैसे राज्यों तक फैल गया है. साइबर अपराधियों की तलाश में रांची पुलिस की टीम कई राज्यों की खाक छान रही है. लेकिन जब पुलिस अंतिम मुकाम तक पहुंचती है और उन्हें ये लगता है कि अब साइबर अपराधी पकड़ा जाएगा, तब उन्हें वहां वैसे लोग मिल रहे हैं जिन्हें किसी अज्ञात ने ठगकर साइबर अपराधी बना डाला है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

साइबर अपराधियों की तलाश में निकली स्पेशल टीम को आए दिन ऐसे मामलों से दो चार होना पड़ रहा है. ये स्पेशल टीम नदी-पहाड़ों तक को पार कर साइबर अपराधियों तक पहुंचने का प्रयास कर रही है. ऐसे ही एक मामले की जांच करने के लिए जब नदी पार कर रांची पुलिस की टीम ओड़िशा के एक सुदूर गांव में पहुंची तो वहां उन्हें बुजुर्ग मिले, जिनके खाते में ठगी के पैसे ट्रांसफर हुए थे. जांच के दौरान पुलिस को यह पता चला कि बुजुर्ग को यह पता भी नहीं है कि बैंक में उनका खाता भी है.

दूरदराज के लोग बने साइबर अपराधियों के चाराः ऑनलाइन बैंक में खाता खोलने के अलावा ठगी की वारदात को अंजाम देने के लिए साइबर अपराधी गरीबों के बैंक खातों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके लिए साइबर अपराधी झारखंड से दूर वैसे राज्यों के लोगों को अपना निशाना बना रहे हैं जिन तक पुलिस का पहुंचना काफी मुश्किल हो. चंद रुपयों का लालच देकर या फिर किसी सरकारी लाभ मिलने का झांसा देकर साइबर अपराधी उन्हें अपने जाल में फंसा लेते हैं. खाताधारक को मालूम ही नहीं होता है कि वो किसी आपराधिक वारदात का हिस्सा बनने जा रहे हैं. साइबर ठगी के अस्सी फीसदी मामले में पुलिस के सामने यही तथ्य सामने आए हैं.

एटीएम कार्ड का नंबर, पिन नंबर और अन्य जानकारियां हासिल कर खाते से रकम उड़ाना आम बात हो गयी है. इसके अलावा कभी नौकरी के नाम पर युवाओं को ठगा जाता है तो कभी फेसबुक आईडी हैक कर साइबर ठगी कर (Cyber Fraud by Hacking Facebook ID) अपराधी रकम समेट लेते हैं. इन सब घटनाओं को अंजाम तक पहुंचाने के लिए बैंक खाते का इस्तेमाल किया जाता है. पकड़े जाने से बचने के लिए साइबर अपराधी अपने बैंक खाते का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि गरीबों को झांसा देकर वो उन्हें अपने जाल में फंसा लेते हैं. उनसे बैंक खाते का पूरा ब्योरा और एटीएम कार्ड हासिल कर लेते हैं. इसके आधार पर नेट बैंकिंग की सुविधा भी वो ले लेते हैं. जबकि खाताधारक को इसकी जानकारी नहीं होती है, उसे केवल इतना बताया जाता है कि कुछ रकम उसके खाते में आएगी, जिसे वो निकाल लेंगे. इसके बदले में खाताधारक को तीन-चार हजार रुपये थमा दिए जाते हैं. ये धनराशि भी उनके खाते में छोड़ दी जाती है.

इसे भी पढ़ें- 'O' की जगह जीरो लगाने से बन जाते हैं असली नाम के से डुप्लीकेट वेबसाइट्स, फिर शुरू होता है ऑनलाइन ठगी का खेल

मेहनत कर रही पुलिसः रांची के सिटी एसपी एक ऐसे आईपीएस अफसर हैं जो साइबर अपराधियों के पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हैं. रांची सिटी एसपी सौरभ ने स्पेशल 26 नाम की एक टीम बनाई है जो सिर्फ साइबर अपराधियों को पकड़ने के लिए दिनरात मेहनत कर रही है. वर्तमान में रांची पुलिस की स्पेशल 26 टीम के कई सदस्य दिल्ली, असम, बिहार, पश्चिम बंगाल और ओड़िशा जैसे राज्यों में साइबर अपराधियों की तलाश में जुटे हुए हैं.

गिरफ्तारी से भी नही पड़ता कोई प्रभावः झारखंड में मार्च 2016 से 2021 तक करीब 2600 साइबर अपराधी गिरफ्तार किए जा चुके हैं. इस दरम्यान कुल 1480 कांड दर्ज हुए हैं, जिसमें केवल 430 कांडों का ही निष्पादन हो सका है. साल 2021 में केवल देवघर से ही 700 साइबर अपराधी जेल भेजे जा चुके हैं. पुलिस के सामने समस्या यह है कि वो चार अपराधी को पकड़कर सलाखों तक भेजती नहीं कि 10 और सक्रिय हो जाते हैं. ऐसे में साइबर अपराध का आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. पहले साइबर अपराधी झारखंड के जामताड़ा से ही अपने गिरोह को ऑपरेट करते थे. लेकिन अब उनका दायरा बहुत बड़ा हो गया है. यही वजह है कि पुलिस उन्हें दबोच ने के लिए अलग-अलग राज्यों के दुरूह क्षेत्रों की खाक छान रही है.

रांचीः हर इंसान के जीवन का अभिन्न अंग बना इंटरनेट, साइबर अपराधियों के लिए ऐशगाह बन गया है. साइबर अपराधियों ने एक इंटरनेट की दुनिया मे एक ऐसा तिलिस्म बना लिया है, जहां शिकारी पलक झपकते ही शिकार कर लेते हैं और सामने वाले को संभलने का मौका भी नहीं मिलता है. मासूम और अनपढ़ लोगों को अपना चारा बनाकर साइबर अपराधी लगातार लोगों के खातों में हाथ साफ कर रहे है.

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नदी-पहाड़ पार कर साइबर अपराधियों को तलाश रही पुलिसः साइबर अपराध के लिए बदनाम झारखंड के साइबर क्रिमनल्स का दायरा अब झारखंड से बढ़कर ओड़िशा, पश्चिम बंगाल, असम और दिल्ली जैसे राज्यों तक फैल गया है. साइबर अपराधियों की तलाश में रांची पुलिस की टीम कई राज्यों की खाक छान रही है. लेकिन जब पुलिस अंतिम मुकाम तक पहुंचती है और उन्हें ये लगता है कि अब साइबर अपराधी पकड़ा जाएगा, तब उन्हें वहां वैसे लोग मिल रहे हैं जिन्हें किसी अज्ञात ने ठगकर साइबर अपराधी बना डाला है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

साइबर अपराधियों की तलाश में निकली स्पेशल टीम को आए दिन ऐसे मामलों से दो चार होना पड़ रहा है. ये स्पेशल टीम नदी-पहाड़ों तक को पार कर साइबर अपराधियों तक पहुंचने का प्रयास कर रही है. ऐसे ही एक मामले की जांच करने के लिए जब नदी पार कर रांची पुलिस की टीम ओड़िशा के एक सुदूर गांव में पहुंची तो वहां उन्हें बुजुर्ग मिले, जिनके खाते में ठगी के पैसे ट्रांसफर हुए थे. जांच के दौरान पुलिस को यह पता चला कि बुजुर्ग को यह पता भी नहीं है कि बैंक में उनका खाता भी है.

दूरदराज के लोग बने साइबर अपराधियों के चाराः ऑनलाइन बैंक में खाता खोलने के अलावा ठगी की वारदात को अंजाम देने के लिए साइबर अपराधी गरीबों के बैंक खातों का इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके लिए साइबर अपराधी झारखंड से दूर वैसे राज्यों के लोगों को अपना निशाना बना रहे हैं जिन तक पुलिस का पहुंचना काफी मुश्किल हो. चंद रुपयों का लालच देकर या फिर किसी सरकारी लाभ मिलने का झांसा देकर साइबर अपराधी उन्हें अपने जाल में फंसा लेते हैं. खाताधारक को मालूम ही नहीं होता है कि वो किसी आपराधिक वारदात का हिस्सा बनने जा रहे हैं. साइबर ठगी के अस्सी फीसदी मामले में पुलिस के सामने यही तथ्य सामने आए हैं.

एटीएम कार्ड का नंबर, पिन नंबर और अन्य जानकारियां हासिल कर खाते से रकम उड़ाना आम बात हो गयी है. इसके अलावा कभी नौकरी के नाम पर युवाओं को ठगा जाता है तो कभी फेसबुक आईडी हैक कर साइबर ठगी कर (Cyber Fraud by Hacking Facebook ID) अपराधी रकम समेट लेते हैं. इन सब घटनाओं को अंजाम तक पहुंचाने के लिए बैंक खाते का इस्तेमाल किया जाता है. पकड़े जाने से बचने के लिए साइबर अपराधी अपने बैंक खाते का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि गरीबों को झांसा देकर वो उन्हें अपने जाल में फंसा लेते हैं. उनसे बैंक खाते का पूरा ब्योरा और एटीएम कार्ड हासिल कर लेते हैं. इसके आधार पर नेट बैंकिंग की सुविधा भी वो ले लेते हैं. जबकि खाताधारक को इसकी जानकारी नहीं होती है, उसे केवल इतना बताया जाता है कि कुछ रकम उसके खाते में आएगी, जिसे वो निकाल लेंगे. इसके बदले में खाताधारक को तीन-चार हजार रुपये थमा दिए जाते हैं. ये धनराशि भी उनके खाते में छोड़ दी जाती है.

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मेहनत कर रही पुलिसः रांची के सिटी एसपी एक ऐसे आईपीएस अफसर हैं जो साइबर अपराधियों के पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हैं. रांची सिटी एसपी सौरभ ने स्पेशल 26 नाम की एक टीम बनाई है जो सिर्फ साइबर अपराधियों को पकड़ने के लिए दिनरात मेहनत कर रही है. वर्तमान में रांची पुलिस की स्पेशल 26 टीम के कई सदस्य दिल्ली, असम, बिहार, पश्चिम बंगाल और ओड़िशा जैसे राज्यों में साइबर अपराधियों की तलाश में जुटे हुए हैं.

गिरफ्तारी से भी नही पड़ता कोई प्रभावः झारखंड में मार्च 2016 से 2021 तक करीब 2600 साइबर अपराधी गिरफ्तार किए जा चुके हैं. इस दरम्यान कुल 1480 कांड दर्ज हुए हैं, जिसमें केवल 430 कांडों का ही निष्पादन हो सका है. साल 2021 में केवल देवघर से ही 700 साइबर अपराधी जेल भेजे जा चुके हैं. पुलिस के सामने समस्या यह है कि वो चार अपराधी को पकड़कर सलाखों तक भेजती नहीं कि 10 और सक्रिय हो जाते हैं. ऐसे में साइबर अपराध का आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. पहले साइबर अपराधी झारखंड के जामताड़ा से ही अपने गिरोह को ऑपरेट करते थे. लेकिन अब उनका दायरा बहुत बड़ा हो गया है. यही वजह है कि पुलिस उन्हें दबोच ने के लिए अलग-अलग राज्यों के दुरूह क्षेत्रों की खाक छान रही है.

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