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भव्य और महंगा हो रहा 'रावण', जलाने के लिए बड़ी हिम्मत की दरकार - रांची में रामलीला

विजयदशमी पर रावण का पुतला जलाने (Ravana effigy burning) की परंपरा है. लेकिन इन दिनों 'रावण' महंगाई के रूप में अट्टहास कर रहा है. इसके पुतले इतने महंगे हो गए हैं कि विजयदशमी पर इसको जलाने की परंपरा (Tradition of Vijayadashami) निभाने के लिए बड़ी हिम्मत जुटानी पड़ रही है. पुतले पर महंगाई की मार 'रावण' जलाने की परंपरा में भी बाधक बन रही है. नतीजतन कई लोगों ने इस साल जुलूस के आयोजन का इरादा ही बदल दिया है. शायद वो मन के रावण को जलाकर नई परंपरा बना पाएं.

ravana effigy burning expensive Obstacles in tradition of Vijayadashami
रावण का पुतला महंगा
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Published : Oct 3, 2022, 8:32 PM IST

Updated : Oct 4, 2022, 11:09 AM IST

रांचीः धार्मिक मान्यता में यह बातें कही जाती हैं कि अपने लोगों के लिए भगवान कुछ भी करने को तैयार रहते हैं और कलियुग में उसकी बानगी इस रूप में देखने को मिलती है कि मिट्टी के रूप में भगवान बाजार में आ जाते हैं ताकि जो बेचने वाला है वह बेचकर के अपना घर चला ले और जो खरीदने वाले हैं वह अपने मन की शांति कर ले. यह भगवान का वही स्वरूप है जिसमें गरीबों के लिए भगवान बिकते भी हैं और खरीदे भी जाते हैं.

ये भी पढ़ें-नवरात्रि पर घर-घर पूजी जाने वाली कन्याओं का हाल झारखंड में नहीं है अच्छा, देखें आंकड़े

शायद यह संस्कृति और यह धरोहर सिर्फ और सिर्फ आर्यवर्त की धरती पर ही है. बात नवरात्रि की चल रही है तो कहा जाता है कि मां दुर्गा से जुड़ीं तमाम शक्तियां असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत तय करती हैं. लेकिन नवरात्रि 2022 में बहुत कुछ बदल गया है. पहले विजयदशमी पर रावण का पुतला जला कर (Ravana effigy burning) हम लोग यह बताते थे कि असत्य पर सत्य जीत गया लेकिन इस बार एक सच्चाई और सामने आ गई है कि रावण का पुतला जलने के लिए तो तैयार है लेकिन महंगाई ज्यादा होने के कारण इस बार रावण का पुतला महंगा हो गया है. सब की हिम्मत भी नहीं हो पा रही है कि वे इस महंगे रावण को जला पाए.

महंगाई बन रही परंपरा में बाधकः धार्मिक मान्यता की बात अगर की जाए तो यह कहा जाता है कि रावण जिस तरह के भवन में रहता था, वह बहुत भव्य आलीशान और सोने का था. धार्मिक मान्यता और कही जाने वाली कहानियों में इसे 'रावण' का वैभव बताया गया है. लेकिन जब राम ने उसे मारा था तो सारा वैभव उसका मिट गया था. लेकिन 2022 की अगर पसंद की बात करें तो यह बात एक बार फिर से उठ खड़ी हुई है कि महंगाई किस तरीके से आम जनता के सामने खड़ी है, उसमें 'रावण' इतना महंगा हो गया है कि उसे जला पाना अब आसान नहीं रहा. वे लोग जो रावण के पुतले को जलाते चले आ रहे हैं और वे लोग जो 'रावण' को जलाने के लिए इसे बनाते चले आ रहे हैं, जब उनसे बात की गई तो उन्होंने भी यही कहा कि पहले 'रावण' को जलाने के लिए मन और आस्था की बात होती थी लेकिन अब सबसे पहले पैसे की बात हो रही है कि इस बार का 'रावण' ज्यादा पैसे में आएगा.

कानपुर और अयोध्या के साथ ही बिहार में रामलीला करने वाले मंडली के लोग जो पूरे देश में घूम-घूम कर रामलीला करते हैं, उन लोगों ने भी इस बात को बताया है कि 2 साल तक रामलीला हुई नहीं, रावण का पुतला जलाया नहीं गया. अब 2 साल बाद जब कोरोनावायरस का प्रकोप थोड़ा कम हुआ है तो लोगों ने एक बार फिर रावण का पुतला जलाने का मन तो बना लिया है लेकिन इस बार 'रावण' काफी महंगा हो गया है.

महंगाई से रामलीला मंडली टूटीः ब्रज से आकर रामलीला करने वाले लोग इसे अपने जीविकोपार्जन का साधन मानते हैं लेकिन करोना के बाद जो हालात बने हैं और महंगाई ने जिस स्थिति में लाकर लोगों को छोड़ा है. रामलीला मंडली भी टूट गई है, लोग रामलीला मंचन करने के बजाय अब दूसरे धंधे में जा रहे हैं. यह तो बात रामलीला मंचन की है. इसके बाद विजयदशमी के दिन 'रावण' जलाया जाता था. लेकिन इस बरा रावण का पुतला इतना महंगा है कि कई जगहों पर इस कार्यक्रम को किया ही नहीं गया.

दरअसल, हर विजयदशमी के दिन जब रावण का पुतला जलाया जाता था तो कहा जाता था कि भय, भूख, भ्रष्टाचार, जलन, द्वेष महंगाई जैसे तमाम दानव 'रावण' के साथ जल कर भस्म हो जाए ताकि आज के लोग सुकून से रहें. लेकिन इस बार 'रावण' की स्थिति थोड़ी अलग है, 'रावण' के साथ जलाने के लिए जिन पुतलों को बनाया जाता है उसमें तीन पुतले मुख्य रूप से होते हैं रावण कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले. इनको जलाने के पीछे कामना यही होती है कि हमारे समाज और देश की हर बुराई और कमी का हमसे पीछा छूट जाए.

इतनी बढ़ी महंगाईः पिछले 20 सालों से रावण का पुतला बनाने वाले विनोद कुमार की कंपनी जो यूपी से बिहार तक काम करती है ने ईटीवी भारत से कहा कि पहले 2000 रुपये में तीनों पुतले बन जाया करते थे लेकिन जहां पर भव्यता के आधार पर पुतले बनते थे वहां पर 50000 रुपये तक का खर्चा आता था. लेकिन 2019 के बाद जो हालात बने हैं जो पुतले 2018 में 50000 तक बन जाते थे आज उन्हीं को बनाने में एक सवा लाख से ज्यादा का खर्चा आ रहा है.

कहा जा रहा है कि 2 साल तक 'रावण' जला नहीं तो 'रावण' ने खुद को महंगा कर लिया है अब जो 'रावण' 50000 में बनकर चलने को तैयार रहता था, आज वह रावण डेढ़ लाख रुपये तक में तैयार हो रहा है. बहुत सारे आयोजक जो सिर्फ विजयदशमी का जुलूस निकालते थे रावण के पुतलों के महंगे होने से कार्यक्रम ही रद्द कर दिए हैं.

जले मन का "रावण": पहले देश में विजयदशमी के दिन 'रावण' को जलाकर यह संकल्प लिया जाता था कि समाज आपसी प्रेम भाईचारे और सौहार्द्र के साथ चलेगा और भारत आगे बढ़ेगा. इस पर महंगाई ने थोड़ा असर जरूर डाला है लेकिन उसके बाद भी पूजा पंडालों में तैयारी खूब है. जरूरत इस बात की है कि यह धन से बनने वाला 'रावण' भले जले या ना जले. लेकिन मन में पलने वाले भय, भूख, भ्रष्टाचार, जलन और द्वेष वाला 'रावण' हर हाल में चलना चाहिए. ताकि एक बेहतर समाज बन सके. हालांकि सोचना यह सभी लोगों को है कि महंगाई की मार कुछ इस कदर है कि 'रावण' भी महंगा हो गया है और अगर यही हाल रहा तो महंगे रावण के पुतले को जलाने की स्थिति भी नहीं रहेगी. इस पर विचार करना होगा और यह स्थिति बेहतर कैसे हो. इस पर काम भी करना होगा. ईटीवी भारत के तरफ से आप सभी लोगों को विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं.

रांचीः धार्मिक मान्यता में यह बातें कही जाती हैं कि अपने लोगों के लिए भगवान कुछ भी करने को तैयार रहते हैं और कलियुग में उसकी बानगी इस रूप में देखने को मिलती है कि मिट्टी के रूप में भगवान बाजार में आ जाते हैं ताकि जो बेचने वाला है वह बेचकर के अपना घर चला ले और जो खरीदने वाले हैं वह अपने मन की शांति कर ले. यह भगवान का वही स्वरूप है जिसमें गरीबों के लिए भगवान बिकते भी हैं और खरीदे भी जाते हैं.

ये भी पढ़ें-नवरात्रि पर घर-घर पूजी जाने वाली कन्याओं का हाल झारखंड में नहीं है अच्छा, देखें आंकड़े

शायद यह संस्कृति और यह धरोहर सिर्फ और सिर्फ आर्यवर्त की धरती पर ही है. बात नवरात्रि की चल रही है तो कहा जाता है कि मां दुर्गा से जुड़ीं तमाम शक्तियां असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई की जीत तय करती हैं. लेकिन नवरात्रि 2022 में बहुत कुछ बदल गया है. पहले विजयदशमी पर रावण का पुतला जला कर (Ravana effigy burning) हम लोग यह बताते थे कि असत्य पर सत्य जीत गया लेकिन इस बार एक सच्चाई और सामने आ गई है कि रावण का पुतला जलने के लिए तो तैयार है लेकिन महंगाई ज्यादा होने के कारण इस बार रावण का पुतला महंगा हो गया है. सब की हिम्मत भी नहीं हो पा रही है कि वे इस महंगे रावण को जला पाए.

महंगाई बन रही परंपरा में बाधकः धार्मिक मान्यता की बात अगर की जाए तो यह कहा जाता है कि रावण जिस तरह के भवन में रहता था, वह बहुत भव्य आलीशान और सोने का था. धार्मिक मान्यता और कही जाने वाली कहानियों में इसे 'रावण' का वैभव बताया गया है. लेकिन जब राम ने उसे मारा था तो सारा वैभव उसका मिट गया था. लेकिन 2022 की अगर पसंद की बात करें तो यह बात एक बार फिर से उठ खड़ी हुई है कि महंगाई किस तरीके से आम जनता के सामने खड़ी है, उसमें 'रावण' इतना महंगा हो गया है कि उसे जला पाना अब आसान नहीं रहा. वे लोग जो रावण के पुतले को जलाते चले आ रहे हैं और वे लोग जो 'रावण' को जलाने के लिए इसे बनाते चले आ रहे हैं, जब उनसे बात की गई तो उन्होंने भी यही कहा कि पहले 'रावण' को जलाने के लिए मन और आस्था की बात होती थी लेकिन अब सबसे पहले पैसे की बात हो रही है कि इस बार का 'रावण' ज्यादा पैसे में आएगा.

कानपुर और अयोध्या के साथ ही बिहार में रामलीला करने वाले मंडली के लोग जो पूरे देश में घूम-घूम कर रामलीला करते हैं, उन लोगों ने भी इस बात को बताया है कि 2 साल तक रामलीला हुई नहीं, रावण का पुतला जलाया नहीं गया. अब 2 साल बाद जब कोरोनावायरस का प्रकोप थोड़ा कम हुआ है तो लोगों ने एक बार फिर रावण का पुतला जलाने का मन तो बना लिया है लेकिन इस बार 'रावण' काफी महंगा हो गया है.

महंगाई से रामलीला मंडली टूटीः ब्रज से आकर रामलीला करने वाले लोग इसे अपने जीविकोपार्जन का साधन मानते हैं लेकिन करोना के बाद जो हालात बने हैं और महंगाई ने जिस स्थिति में लाकर लोगों को छोड़ा है. रामलीला मंडली भी टूट गई है, लोग रामलीला मंचन करने के बजाय अब दूसरे धंधे में जा रहे हैं. यह तो बात रामलीला मंचन की है. इसके बाद विजयदशमी के दिन 'रावण' जलाया जाता था. लेकिन इस बरा रावण का पुतला इतना महंगा है कि कई जगहों पर इस कार्यक्रम को किया ही नहीं गया.

दरअसल, हर विजयदशमी के दिन जब रावण का पुतला जलाया जाता था तो कहा जाता था कि भय, भूख, भ्रष्टाचार, जलन, द्वेष महंगाई जैसे तमाम दानव 'रावण' के साथ जल कर भस्म हो जाए ताकि आज के लोग सुकून से रहें. लेकिन इस बार 'रावण' की स्थिति थोड़ी अलग है, 'रावण' के साथ जलाने के लिए जिन पुतलों को बनाया जाता है उसमें तीन पुतले मुख्य रूप से होते हैं रावण कुंभकरण और मेघनाथ के पुतले. इनको जलाने के पीछे कामना यही होती है कि हमारे समाज और देश की हर बुराई और कमी का हमसे पीछा छूट जाए.

इतनी बढ़ी महंगाईः पिछले 20 सालों से रावण का पुतला बनाने वाले विनोद कुमार की कंपनी जो यूपी से बिहार तक काम करती है ने ईटीवी भारत से कहा कि पहले 2000 रुपये में तीनों पुतले बन जाया करते थे लेकिन जहां पर भव्यता के आधार पर पुतले बनते थे वहां पर 50000 रुपये तक का खर्चा आता था. लेकिन 2019 के बाद जो हालात बने हैं जो पुतले 2018 में 50000 तक बन जाते थे आज उन्हीं को बनाने में एक सवा लाख से ज्यादा का खर्चा आ रहा है.

कहा जा रहा है कि 2 साल तक 'रावण' जला नहीं तो 'रावण' ने खुद को महंगा कर लिया है अब जो 'रावण' 50000 में बनकर चलने को तैयार रहता था, आज वह रावण डेढ़ लाख रुपये तक में तैयार हो रहा है. बहुत सारे आयोजक जो सिर्फ विजयदशमी का जुलूस निकालते थे रावण के पुतलों के महंगे होने से कार्यक्रम ही रद्द कर दिए हैं.

जले मन का "रावण": पहले देश में विजयदशमी के दिन 'रावण' को जलाकर यह संकल्प लिया जाता था कि समाज आपसी प्रेम भाईचारे और सौहार्द्र के साथ चलेगा और भारत आगे बढ़ेगा. इस पर महंगाई ने थोड़ा असर जरूर डाला है लेकिन उसके बाद भी पूजा पंडालों में तैयारी खूब है. जरूरत इस बात की है कि यह धन से बनने वाला 'रावण' भले जले या ना जले. लेकिन मन में पलने वाले भय, भूख, भ्रष्टाचार, जलन और द्वेष वाला 'रावण' हर हाल में चलना चाहिए. ताकि एक बेहतर समाज बन सके. हालांकि सोचना यह सभी लोगों को है कि महंगाई की मार कुछ इस कदर है कि 'रावण' भी महंगा हो गया है और अगर यही हाल रहा तो महंगे रावण के पुतले को जलाने की स्थिति भी नहीं रहेगी. इस पर विचार करना होगा और यह स्थिति बेहतर कैसे हो. इस पर काम भी करना होगा. ईटीवी भारत के तरफ से आप सभी लोगों को विजयदशमी की हार्दिक शुभकामनाएं.

Last Updated : Oct 4, 2022, 11:09 AM IST
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