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चार पीढ़ियों से रातू किले में वैष्णो पद्धति से हो रही दुर्गा पूजा, पहले नागवंशी महाराज से चल रही परंपरा - रातू किला लोगों के लिए खोल दिया गया

शारदीय नवरात्र को लेकर रांची में भक्तिमय माहौल है. राजधानी का ऐतिहासिक रातू किला भी लोगों के लिए खोल दिया गया है जो मंगलवार दशमी को प्रतिमा विसर्जन के साथ ही बंद कर दिया जाएगा. यहां वैष्णो पद्धति से सैकड़ों वर्षों से पूजा की जा रही है. ऐसे में इस वर्ष भी रातू किला में आने वाले श्रद्धालुओं में खासा उत्साह का माहौल है.

रातू किला
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Published : Oct 6, 2019, 8:47 PM IST

रांचीः राजधानी से दस किमी के दूरी पर स्थित रातू किला में वैष्णव पद्धति से मां दुर्गा की पूजा-आराधना वर्षों से होती आ रही है. इस दौरान किले के बाहर मेला लगाया जाता है, जहां राज्य भर से लोग पहुंचते हैं.

देखं पूरी खबर


पौराणिक वस्तुएं देखने का मौका

नवरात्र के समय श्रद्धालुओं के लिए 103 कमरे वाला रातू किला खोल दिया जाता है, जिसमें कई पौराणिक वस्तुएं देखने का मौका भी लोगों को मिलता है. वहीं, किले के मुख्य द्वार पर रखे 100 वर्ष पुराने तोप लोगों को खासा आकर्षित करता है. रातू किला में प्रथम नागवंशी महाराज फनीमुकुट राय के समय से दुर्गा पूजा का भव्य आयोजन होता आ रहा है और मेले भी लगाए जाते रहे हैं. वहीं, मां दुर्गा की प्रतिमा लगभग डेढ़ सौ साल से स्थापित की जाती रही है. इससे पहले कलश स्थापित कर पूजा की जाती थी. इस परंपरा को महाराजा चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव और युवराज गोपाल शरण नाथ शाहदेव ने हमेशा निभाया. इसी वजह से आज भी रातू किले में पौराणिक परंपरा से पूजा अर्चना की जाती है.

यह भी पढ़ें- रांची में यहां 187 साल से की जाती है दुर्गा पूजा, आज भी कायम है पुरानी परंपरा

साक्षात भगवती का वास

किला में पूजा अर्चना करने वाले पुजारी ओम प्रकाश मिश्रा बताते हैं कि 4 पीढ़ियों से नागवंशी वंशज दुर्गा पूजा का आयोजन करते आए हैं. यहां साक्षात भगवती का वास है. उन्होंने बताया कि यहां वैष्णव पद्धति से पूजा की जाती है और उसका निर्वहन आज भी किया जा रहा है.

वहीं, नागवंशी महाराजा के वंशज हर वर्ष दुर्गा पूजा के दौरान रातू किला जरूर आते हैं और इस परंपरा को आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते. वंशज कल्पना कुमारी देवी बताती हैं कि देवी मां की यह कृपा है और जब तक वह चाहेगी, तब तक यहां पूजा-अर्चना होती रहेगी. वहीं, उनकी छोटी बहन मीनाक्षी देवी ने बताया कि यह भक्तों की आस्था है और देवी मां की कृपा है. यही वजह है कि आज भी रातू किला में पुरानी परंपरा को बरकरार रखा गया है.

रांचीः राजधानी से दस किमी के दूरी पर स्थित रातू किला में वैष्णव पद्धति से मां दुर्गा की पूजा-आराधना वर्षों से होती आ रही है. इस दौरान किले के बाहर मेला लगाया जाता है, जहां राज्य भर से लोग पहुंचते हैं.

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पौराणिक वस्तुएं देखने का मौका

नवरात्र के समय श्रद्धालुओं के लिए 103 कमरे वाला रातू किला खोल दिया जाता है, जिसमें कई पौराणिक वस्तुएं देखने का मौका भी लोगों को मिलता है. वहीं, किले के मुख्य द्वार पर रखे 100 वर्ष पुराने तोप लोगों को खासा आकर्षित करता है. रातू किला में प्रथम नागवंशी महाराज फनीमुकुट राय के समय से दुर्गा पूजा का भव्य आयोजन होता आ रहा है और मेले भी लगाए जाते रहे हैं. वहीं, मां दुर्गा की प्रतिमा लगभग डेढ़ सौ साल से स्थापित की जाती रही है. इससे पहले कलश स्थापित कर पूजा की जाती थी. इस परंपरा को महाराजा चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव और युवराज गोपाल शरण नाथ शाहदेव ने हमेशा निभाया. इसी वजह से आज भी रातू किले में पौराणिक परंपरा से पूजा अर्चना की जाती है.

यह भी पढ़ें- रांची में यहां 187 साल से की जाती है दुर्गा पूजा, आज भी कायम है पुरानी परंपरा

साक्षात भगवती का वास

किला में पूजा अर्चना करने वाले पुजारी ओम प्रकाश मिश्रा बताते हैं कि 4 पीढ़ियों से नागवंशी वंशज दुर्गा पूजा का आयोजन करते आए हैं. यहां साक्षात भगवती का वास है. उन्होंने बताया कि यहां वैष्णव पद्धति से पूजा की जाती है और उसका निर्वहन आज भी किया जा रहा है.

वहीं, नागवंशी महाराजा के वंशज हर वर्ष दुर्गा पूजा के दौरान रातू किला जरूर आते हैं और इस परंपरा को आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते. वंशज कल्पना कुमारी देवी बताती हैं कि देवी मां की यह कृपा है और जब तक वह चाहेगी, तब तक यहां पूजा-अर्चना होती रहेगी. वहीं, उनकी छोटी बहन मीनाक्षी देवी ने बताया कि यह भक्तों की आस्था है और देवी मां की कृपा है. यही वजह है कि आज भी रातू किला में पुरानी परंपरा को बरकरार रखा गया है.

Intro:रांची.शारदीय नवरात्र को लेकर जहां राजधानी में भक्तिमय माहौल है। तो वही ऐतिहासिक रातू किला भी लोगों के लिए खोला गया है। जो मंगलवार दशमी को प्रतिमा विसर्जन के साथ ही बंद कर दिया जाएगा । यहां वैष्णो पद्धति से सैकड़ों वर्षों से पूजा की जाती रही है। ऐसे में इस वर्ष भी रातू किला में आने वाले श्रद्धालुओं में खासा उत्साह का माहौल है।


Body:रातू किला में वैष्णव पद्धति से मां दुर्गा की पूजा आराधना होती आ रही है। इस दौरान किले के बाहर मेला लगाया जाता है। जहां राज्य भर से लोग पहुंचते हैं। वही नवरात्र के समय श्रद्धालुओं के लिए 103 कमरे वाला किला खोला जाता है। जिसमें कई पौराणिक वस्तुएं देखने का मौका भी लोगों को मिलता है। वही किले के मुख्य द्वार पर रखें 100 वर्ष पुराने तोप लोगों को खासा आकर्षित करता है।

रातू किला में प्रथम नागवंशी महाराज फनीमुकुट राय के समय से दुर्गा पूजा का भव्य आयोजन होता रहा है और मेले भी लगाए जाते रहे है। वही मां दुर्गा की प्रतिमा लगभग डेढ़ सौ साल से स्थापित की जाती रही है।इससे पहले कलश स्थापित कर पूजा की जाती थी।वही इस परंपरा को महाराजा चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव और युवराज गोपाल शरण नाथ शाहदेव ने हमेशा निभाया। यही वजह है कि आज भी रातू किले में पौराणिक परंपरा से पूजा अर्चना की जाती है।




Conclusion:पूजा अर्चना करने वाले पुजारी ओम प्रकाश मिश्रा बताते हैं कि 4 पीढ़ियों से नागवंशी वंशज दुर्गा पूजा का आयोजन करती आई है और यहां साक्षात भगवती का वास है। उन्होंने बताया कि यहां वैष्णव पद्धति से पूजा की जाती रही है और उसका निर्वहन आज भी किया जा रहा है।

वही नागवंशी महाराजा के वंशज हर वर्ष दुर्गा पूजा के दौरान रातू किला जरूर आते हैं और इस परंपरा को आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। वंशज कल्पना कुमारी देवी बताती है कि देवी मां की यह कृपा है और जब तक वह चाहेगी। तब तक यहां पूजा-अर्चना होती रहेगी। वही उनकी छोटी बहन मीनाक्षी देवी का कहना है कि यह भक्तों की आस्था है और देवी मां की कृपा है। यही वजह है कि आज भी रातू किला में पुरानी परंपरा को बरकरार रखा गया है।
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