रांचीः राजधानी से दस किमी के दूरी पर स्थित रातू किला में वैष्णव पद्धति से मां दुर्गा की पूजा-आराधना वर्षों से होती आ रही है. इस दौरान किले के बाहर मेला लगाया जाता है, जहां राज्य भर से लोग पहुंचते हैं.
पौराणिक वस्तुएं देखने का मौका
नवरात्र के समय श्रद्धालुओं के लिए 103 कमरे वाला रातू किला खोल दिया जाता है, जिसमें कई पौराणिक वस्तुएं देखने का मौका भी लोगों को मिलता है. वहीं, किले के मुख्य द्वार पर रखे 100 वर्ष पुराने तोप लोगों को खासा आकर्षित करता है. रातू किला में प्रथम नागवंशी महाराज फनीमुकुट राय के समय से दुर्गा पूजा का भव्य आयोजन होता आ रहा है और मेले भी लगाए जाते रहे हैं. वहीं, मां दुर्गा की प्रतिमा लगभग डेढ़ सौ साल से स्थापित की जाती रही है. इससे पहले कलश स्थापित कर पूजा की जाती थी. इस परंपरा को महाराजा चिंतामणि शरण नाथ शाहदेव और युवराज गोपाल शरण नाथ शाहदेव ने हमेशा निभाया. इसी वजह से आज भी रातू किले में पौराणिक परंपरा से पूजा अर्चना की जाती है.
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साक्षात भगवती का वास
किला में पूजा अर्चना करने वाले पुजारी ओम प्रकाश मिश्रा बताते हैं कि 4 पीढ़ियों से नागवंशी वंशज दुर्गा पूजा का आयोजन करते आए हैं. यहां साक्षात भगवती का वास है. उन्होंने बताया कि यहां वैष्णव पद्धति से पूजा की जाती है और उसका निर्वहन आज भी किया जा रहा है.
वहीं, नागवंशी महाराजा के वंशज हर वर्ष दुर्गा पूजा के दौरान रातू किला जरूर आते हैं और इस परंपरा को आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते. वंशज कल्पना कुमारी देवी बताती हैं कि देवी मां की यह कृपा है और जब तक वह चाहेगी, तब तक यहां पूजा-अर्चना होती रहेगी. वहीं, उनकी छोटी बहन मीनाक्षी देवी ने बताया कि यह भक्तों की आस्था है और देवी मां की कृपा है. यही वजह है कि आज भी रातू किला में पुरानी परंपरा को बरकरार रखा गया है.