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रांची हिंसा जांच मामले पर हाईकोर्ट की तल्ख टिप्पणी, कहा- सरकार की मंशा सही नहीं, क्यों न सीबीआई जांच करायी जाए - झारखंड न्यूज

झारखंड हाई कोर्ट में 10 जून को रांची में हुई हिंसा मामले की जांच को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई (Ranchi Violence Case Hearing In High Court) हुई. जिसमें अदालत ने सरकार की जांच प्रक्रिया पर सवाल उठाया और कड़ी नाराजगी व्यक्त की.

Ranchi Violence Case Hearing In High Court
Ranchi Violence Case Hearing In High Court
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Published : Dec 9, 2022, 8:36 PM IST

रांची: झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत में 10 जून को रांची में हुई हिंसा मामले की जांच को लेकर दायर याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई हुई. मामले की जांच की प्रगति को देखने के बाद अदालत ने कड़ी नाराजगी व्यक्त (Court Expressed Strong Displeasure)की. अदालत ने गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार की मंशा मामले की सही तरह से जांच कराने की प्रतीत नहीं होती है. अदालत ने पूछा कि क्यों नहीं मामले की सीबीआई जांच करायी जाए.

ये भी पढे़ं-रांची हिंसा मामला: 48 में से 20 FIR सोशल मीडिया ग्रुप पर, रिमांड पर लिए गए आरोपियों ने दी अहम जानकारी

सीआईडी और पुलिस में केस बंटवारे के लेकर आपत्तिः अदालत ने राज्य सरकार की जांच की स्थिति पर कहा कि रांची हिंसा को लेकर दर्ज कुछ केस सीआईडी और कुछ केस पुलिस अनुसंधान कर रही है. ऐसा कर अनुसंधान को खत्म करने की कोशिश की जा रही है, ताकि सीआईडी और पुलिस की रिपोर्ट में कुछ अंतर आ जाए और फिर जांच खत्म हो जाए. या तो पूरी केस की जांच सीआईडी से करायी जानी चाहिए थी या पूरे केस की पुलिस से जांच करानी चाहिए थी, ताकि जांच में कोई विरोधाभास न आए. ऐसे में सरकार के रवैये को देखते हुए कोर्ट किसी दूसरी स्वतंत्र एजेंसी से जांच करा सकती है.


डीजीपी और गृह सचिव को 15 दिसंबर को कोर्ट में सशरीर जवाब देने का आदेशः कोर्ट ने राज्य के डीजीपी और गृह सचिव को 15 दिसंबर को कोर्ट में सशरीर उपस्थित होकर जवाब देने का आदेश दिया है. कोर्ट ने उनसे पूछा है कि घटना के बाद रांची के तत्कालीन एसएसपी का ट्रांसफर करने से संबंधित जो फाइल कोर्ट ने मंगायी थी, उसमें यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि एसएसपी का ट्रांसफर क्यों किया गया है. डीजीपी और गृह सचिव को इसे स्पष्ट करने को कहा गया है.



रांची के तत्कालीन एसएसपी के ट्रांसफर पर सवालः खंडपीठ ने कहा कि सरकार की ओर से जांच के लिए पहले एसआइटी गठित की गई (SIT Constituted For Investigation), फिर जांच सीआइडी को दी गई. लेकिन सीआइडी भी कुछ नहीं कर पायी है. सरकार की ओर से कहा गया है कि ह्यूमन राइट कमीशन द्वारा यह निर्देशित है कि जहां कहीं भी घटना में पुलिस की करवाई में कोई घायल या मर जाता है तो उस घटना की जांच सीआइडी के द्वारा करायी जा सकती है. इसी के तहत डेली मार्केट थाना केस सीआइडी को दिया गया. कोर्ट ने मौखिक कहा कि यह कौन सी प्रशासनिक अनिवार्यता थी, जिसके तहत घटना के समय वहां मौजूद रांची के तत्कालीन एसएसपी को स्थानांतरित कर वेटिंग फॉर पोस्टिंग में रखा गया था.



मामले में पंकज यादव ने दायर की है जनहित याचिकाः बता दें कि रांची हिंसा मामले में दायर पंकज यादव की जनहित याचिका (Public Interest Litigation)में हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के महासचिव यास्मीन फारूकी समेत रांची डीसी, एसएसपी, मुख्य सचिव, एनआइए, ईडी को प्रतिवादी बनाया गया है. अदालत से मामले की एनआइए जांच करा कर झारखंड संपत्ति विनाश और क्षति निवारण विधेयक 2016 के अनुसार आरोपियों के घर को तोड़ने का आदेश देने का आग्रह किया गया है. याचिका में रांची की घटना को प्रायोजित बताते हुए एनआइए से जांच करके यह पता लगाने का आग्रह किया है कि किस संगठन ने फंडिंग कर घटना को अंजाम दिया. नुपुर शर्मा के बयान पर जिस तरह से रांची पुलिस पर पत्थरबाजी हुई, प्रतिबंधित अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग हुआ, धार्मिक स्थल पर पत्थरबाजी की गई, यह प्रायोजित प्रतीत होती है.

रांची: झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत में 10 जून को रांची में हुई हिंसा मामले की जांच को लेकर दायर याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई हुई. मामले की जांच की प्रगति को देखने के बाद अदालत ने कड़ी नाराजगी व्यक्त (Court Expressed Strong Displeasure)की. अदालत ने गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा कि सरकार की मंशा मामले की सही तरह से जांच कराने की प्रतीत नहीं होती है. अदालत ने पूछा कि क्यों नहीं मामले की सीबीआई जांच करायी जाए.

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सीआईडी और पुलिस में केस बंटवारे के लेकर आपत्तिः अदालत ने राज्य सरकार की जांच की स्थिति पर कहा कि रांची हिंसा को लेकर दर्ज कुछ केस सीआईडी और कुछ केस पुलिस अनुसंधान कर रही है. ऐसा कर अनुसंधान को खत्म करने की कोशिश की जा रही है, ताकि सीआईडी और पुलिस की रिपोर्ट में कुछ अंतर आ जाए और फिर जांच खत्म हो जाए. या तो पूरी केस की जांच सीआईडी से करायी जानी चाहिए थी या पूरे केस की पुलिस से जांच करानी चाहिए थी, ताकि जांच में कोई विरोधाभास न आए. ऐसे में सरकार के रवैये को देखते हुए कोर्ट किसी दूसरी स्वतंत्र एजेंसी से जांच करा सकती है.


डीजीपी और गृह सचिव को 15 दिसंबर को कोर्ट में सशरीर जवाब देने का आदेशः कोर्ट ने राज्य के डीजीपी और गृह सचिव को 15 दिसंबर को कोर्ट में सशरीर उपस्थित होकर जवाब देने का आदेश दिया है. कोर्ट ने उनसे पूछा है कि घटना के बाद रांची के तत्कालीन एसएसपी का ट्रांसफर करने से संबंधित जो फाइल कोर्ट ने मंगायी थी, उसमें यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि एसएसपी का ट्रांसफर क्यों किया गया है. डीजीपी और गृह सचिव को इसे स्पष्ट करने को कहा गया है.



रांची के तत्कालीन एसएसपी के ट्रांसफर पर सवालः खंडपीठ ने कहा कि सरकार की ओर से जांच के लिए पहले एसआइटी गठित की गई (SIT Constituted For Investigation), फिर जांच सीआइडी को दी गई. लेकिन सीआइडी भी कुछ नहीं कर पायी है. सरकार की ओर से कहा गया है कि ह्यूमन राइट कमीशन द्वारा यह निर्देशित है कि जहां कहीं भी घटना में पुलिस की करवाई में कोई घायल या मर जाता है तो उस घटना की जांच सीआइडी के द्वारा करायी जा सकती है. इसी के तहत डेली मार्केट थाना केस सीआइडी को दिया गया. कोर्ट ने मौखिक कहा कि यह कौन सी प्रशासनिक अनिवार्यता थी, जिसके तहत घटना के समय वहां मौजूद रांची के तत्कालीन एसएसपी को स्थानांतरित कर वेटिंग फॉर पोस्टिंग में रखा गया था.



मामले में पंकज यादव ने दायर की है जनहित याचिकाः बता दें कि रांची हिंसा मामले में दायर पंकज यादव की जनहित याचिका (Public Interest Litigation)में हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया के महासचिव यास्मीन फारूकी समेत रांची डीसी, एसएसपी, मुख्य सचिव, एनआइए, ईडी को प्रतिवादी बनाया गया है. अदालत से मामले की एनआइए जांच करा कर झारखंड संपत्ति विनाश और क्षति निवारण विधेयक 2016 के अनुसार आरोपियों के घर को तोड़ने का आदेश देने का आग्रह किया गया है. याचिका में रांची की घटना को प्रायोजित बताते हुए एनआइए से जांच करके यह पता लगाने का आग्रह किया है कि किस संगठन ने फंडिंग कर घटना को अंजाम दिया. नुपुर शर्मा के बयान पर जिस तरह से रांची पुलिस पर पत्थरबाजी हुई, प्रतिबंधित अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग हुआ, धार्मिक स्थल पर पत्थरबाजी की गई, यह प्रायोजित प्रतीत होती है.

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