रांची: राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स से सिर्फ राजधानी के लोगों को ही नहीं बल्कि राज्य भर के गरीब और लाचार मरीजों को काफी उम्मीद होती है, क्योंकि यहां पर सरकारी संसाधन में बेहतर इलाज और अत्याधुनिक तकनीक के साथ जांच की सुविधा उपलब्ध है, लेकिन दूसरी ओर रिम्स अस्पताल में ही एक ऐसी तस्वीर देखने को मिलती है जो कहीं ना कहीं लोगों को परेशान और विचलित कर सकती है.
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ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि यदि ठंड के मौसम में किसी भी व्यक्ति को सीमेंट की जमीन पर सुलाया जाए तो निश्चित रूप से वह ठंड के कारण बीमार हो जाएगा. खासकर अगर वह किसी बीमारी से ग्रसित व्यक्ति हो तो उसके लिए तो यह और भी विचलित करने वाली बात है, लेकिन इस तरह की तस्वीर रिम्स में आए दिन देखने को मिलती है. अस्पताल के न्यूरो विभाग में ऐसी तस्वीर सबसे ज्यादा दिखाई देती है, क्योंकि रिम्स के न्यूरो विभाग में मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा है. इसिलिए न्यूरो विभाग के प्रबंधन को सभी मरीजों के लिए बेड उपलब्ध कराना एक चुनौती बन जाती है.
नये साल पर फिर एक कोशिश: ईटीवी भारत ने भी रिम्स की इस कुव्यवस्था को सुधारने के लिए कई बार अपने कैमरे के माध्यम से रिम्स प्रबंधन के कान तक आवाज पहुंचाने की कोशिश की, ताकि गरीब और शारीरिक रूप से लाचार मरीज को बेड उपलब्ध हो सके. बार-बार मीडिया में खबरें प्रकाशित होने के बाद न्यूरो विभाग में जमीन पर लेट कर इलाज कराने वाले मरीजों को बेड उपलब्ध कराने के लिए रिम्स प्रबंधन ने कई कदम उठाए, लेकिन उसका परिणाम ना के बराबर दिखा. हालांकि, नये साल के मौके पर रिम्स प्रबंधन ने फिर से एक बार न्यूरो विभाग में जमीन पर लेट कर इलाज कराने वाले मरीजों को बेड उपलब्ध कराने का प्रयास किया है, जो शुरुआती दौर में मरीजों को थोड़ी राहत जरूर पहुंचा रही है.
वर्षों से खाली पड़ी बिल्डिंग में शिफ्ट हुआ न्यूरो विभाग: दरअसल, इस बार रिम्स प्रबंधन ने न्यूरो विभाग के वैसे मरीज को अस्पताल में वर्षों से खाली पड़ी मल्टी स्टोरेज पार्किंग की बिल्डिंग में शिफ्ट कर दिया है (RIMS Neuro department shifted to new building). नई जगह पर शिफ्ट होने के बाद ईटीवी भारत के संवाददाता हितेश कुमार चौधरी ने जब मरीजों से बात की तो कुछ मरीजों ने बताया कि यह व्यवस्था जमीन पर लेट कर इलाज कराने से तो जरूर बेहतर है. वहीं कुछ मरीजों ने बताया कि बेड तो उपलब्ध हो गए हैं, लेकिन डॉक्टरों और नर्सिंग स्टाफ की कमी यहां पर देखने को मिल रही है. नई बिल्डिंग में शिफ्ट होने के बाद मरीज के परिजन बताते हैं कि पुरानी जगह पर जमीन पर लेटा कर इलाज जरूर होता था, लेकिन डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ हर वक्त मौजूद रहते थे. वहीं नई बिल्डिंग में बेड तो उपलब्ध हो गए हैं, लेकिन यहां पर डॉक्टर तुरंत नहीं मिल पाते. हालांकि, नई बिल्डिंग में दो नर्सिंग स्टाफ की तैनाती की गई है, जो काफी नहीं है.
नई व्यावस्था में नई समस्या: मरीज के परिजनों ने बताया कि न्यूरो विभाग की पुरानी बिल्डिंग और नई बिल्डिंग के बीच लगभग एक किलोमीटर की दूरी है. ऐसे में कई बार डॉक्टरों को बुलाने में वक्त लग जाता है. अगर कोई आपात स्थिति हो जाए तो पुराने बिल्डिंग से नई बिल्डिंग आने में नर्सिंग स्टाफ या स्वास्थ्य कर्मचारियों को भी समय लगता है, जो कई बार परेशानी का कारण बन जाता है.
क्या कहते हैं रिम्स के वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट: वहीं, हमने जब नई व्यवस्था को लेकर रिम्स के वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ सुरेंद्र कुमार से बात कि तो उन्होंने बताया कि रिम्स प्रबंधन की तरफ से शुरू की गई यह नई व्यवस्था निश्चित ही आने वाले समय में मरीजों को लाभ पहुंचाएगा. शुरुआती दौर में थोड़ी बहुत दिक्कत जरूर हो रही है क्योंकि वर्षों से पुराने न्यूरोलॉजी विभाग में सभी मशीनें और सुविधाएं मौजूद है, लेकिन जल्द ही नए बिल्डिंग में भी न्यूरो से जुड़ी सभी मशीनें और सुविधाएं उपलब्ध करा दी जाएगी. उन्होंने बताया कि न्यूरो के जो अति गंभीर मरीज नहीं हैं. फिलहाल वैसे ही मरीज को नए बिल्डिंग में शिफ्ट किया गया है और डॉक्टरों के द्वारा दिन में दो बार से तीन बार राउंड लगाकर सभी मरीजों की निगरानी और निरीक्षण किया जाता है. यदि किसी मरीज को ज्यादा परेशानी होती है तो उन्हें तुरंत ही पुरानी बिल्डिंग में बुला लिया जाता है, ताकि जरूरत पड़ने पर नर्सिंग स्टाफ और डॉक्टर पहुंच सके.
नया प्रयास कितना लाभदायक? अब सवाल यह उठता है कि रिम्स के न्यूरोलॉजी विभाग की परेशानी वर्षों से है, जिसे दूर करने के लिए काफी प्रयास किया गया, लेकिन थोड़े दिन में सारे प्रयास धराशायी होते नजर आए. अब देखने वाली बात होगी कि नए वर्ष में शुरू की गई, यह नई व्यवस्था रिम्स के न्यूरो विभाग में आने वाले गरीब और लाचार मरीजों को कितना लाभ पहुंचाता है.