रांची: राज्य में निजी स्कूल की तर्ज पर सरकारी स्कूलों को संसाधन युक्त बनाने का दावा किया जा रहा है. वहीं दूसरी ओर हकीकत यह है कि इन विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों को अब तक कई विषयों की किताबें नहीं मिल पाईं हैं. मुफ्त में सरकार द्वारा बच्चों को मुहैया कराने वाली किताबों का आलम यह है कि अप्रैल से शैक्षणिक सत्र शुरू होने के पांच महीने बाद भी विद्यालय तक पूरी किताबें नहीं पहुंच पाईं हैं.
मध्य विद्यालय के प्रभारी प्राचार्य ने क्या कहा: राजधानी के किशोरगंज स्थित मध्य विद्यालय के प्रभारी प्राचार्य घनश्याम ओझा कहते हैं कि किताबें हर बार की तरह इस बार भी देर से मिली हैं. सीमित मात्रा में होने की वजह से नये नामांकन वाले छात्रों को पुरानी किताब देकर समायोजित की जा रही है. पश्चिम सिंहभूम के सहायक अध्यापक लोकेश नाथ साधु कहते हैं कि यह दूसरा साल है जब बंगला विषय की किताबें नहीं मिली है. एक तो कई किश्त में किताबें मिलती हैं, वह भी रांची से छपने में देरी होने की वजह से शैक्षणिक सत्र के कई महीने बीत जाने के बाद यह किताब स्कूल तक नहीं पहुंचती हैं. लोकेश नाथ कहते हैं कि ऐसे में विद्यार्थी या तो खुद पढ़ते हैं या उन्हें शिक्षक द्वारा ट्रांसलेट कर पढ़ाया जाता है.
मुसाबनी मध्य विद्यालय के शिवचरण सारंगी किताब वितरण में हो रही गड़बड़ी से खासे नाराज हैं. ईटीवी भारत के समक्ष अपनी बात रखते हुए उन्होंने कहा कि एक तो बच्चों की संख्या के अनुरूप किताबें नहीं मिलतीं हैं. वहीं दूसरी ओर स्कूल में अब तक हिन्दी और एफएलएल की किताब ही नहीं मिली है. ऐसे में किताबें ही नहीं रहेंगी तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा बच्चों को कैसे मिलेगी.
किताब वितरण की इनकी है जिम्मेदारी: राज्य के सरकारी स्कूलों में बच्चों को मुफ्त किताब मुहैया कराने की जिम्मेदारी झारखंड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद की है. इस साल पाठ्य पुस्तकों के प्रकाशन की जिम्मेदारी 12 प्रकाशकों को दी गई थी. जिला पदाधिकारी को पत्र भेजकर किताबों के वितरण को लेकर दिशा निर्देश झारखंड शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के द्वारा दिया गया था. जिसमें कक्षा एक से आठ की पुस्तक को सर्वप्रथम वितरित करने को कहा गया था.
शिक्षा सचिव के रवि ने क्या कहा: शिक्षा सचिव के रवि कुमार के अनुसार विद्यालय में तकनीकी कारणों से देर से जरूर किताबें पहुंची हैं. कहा कि जिला स्तर पर स्कूल प्रबंधन संपर्क कर किताब ले सकते हैं. राज्य में पर्याप्त मात्रा में किताबें उपलब्ध हैं. बहरहाल हर साल सरकारी स्कूलों में किताब वितरण में देरी होती है. इस वजह से पठन-पाठन प्रभावित होता है. ऐसे में आवश्यकता यह है कि सरकारी प्रक्रिया को सरल बनाने की. जिससे समय पर बच्चों को किताब मिल सके.