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अफ्रीकन स्वाइन फीवर को मात देने वाले 35 सूकरों को लेकर दुविधा में क्यों हैं झारखंड के पशु वैज्ञानिक, जानिए वजह

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Published : Nov 14, 2022, 12:34 PM IST

Updated : Nov 14, 2022, 12:47 PM IST

झारखंड में अफ्रीकन स्वाइन फीवर से सूकरों की मौत काफी संख्या में हुई है. इस बीमारी से रांची के कांके सूकर प्रक्षेत्र के 1479 सूकरों की अकाल मौत हो गयी. लेकिन इसी प्रक्षेत्र के 35 सूकरों ने अफ्रीकन स्वाइन फीवर को मात (Pigs overcome from African Swine Fever in Ranchi) दी है. लेकिन इनको लेकर झारखंड के पशु वैज्ञानिक दुविधा में हैं. वजह तलाश करती ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट.

Ranchi Kanke Pig Farm animals defeated African Swine Fever in Jharkhand
रांची

रांचीः झारखंड में इस वर्ष वायरस से होने वाली मारक बीमारी अफ्रीकन स्वाइन फीवर (African Swine Fever in Jharkhand) ने जबरदस्त तबाही मचाई. जिससे भारी संख्या में झारखंड में जानवरों की मौत हुई और राज्य के ज्यादातर प्राइवेट और सरकारी सूकर फार्म देखते ही देखते सूकर विहीन हो गए. रांची के कांके स्थित सरकारी सूकर प्रक्षेत्र (Ranchi Kanke Pig Farm) में तीन महीने में ही 1514 सूकरों में से 1479 सूकरों की अफ्रीकन स्वाइन फीवर से मौत हो गयी. लेकिन हैरानी की बात यह है कि अफ्रीकन स्वाइन फीवर के वायरस को भी यहां के 35 सूकरों ने मात दे दी और वह स्वस्थ्य हो (Pigs overcome from African Swine Fever in Ranchi) गए.

इसे भी पढ़ें- खतरे में जानवरः अफ्रीकन स्वाइन फीवर से 1341 सूकर की मौत, लंपी वायरस से दो मवेशी की गयी जान

रांची के कांके सूकर प्रक्षेत्र में 29 अक्टूबर के बाद से किसी भी सूकर की मौत नहीं हुई है. सूकर प्रक्षेत्र में सुकरों की देखभाल करने वाले रामजी राम इन बचे हुए सूकरों को भगवान की इच्छा बताते हैं. वो कहते हैं कि अलग अलग प्रजाति के ये सूकर बचे हैं, जिसको स्वस्थ देखकर मन को काफी तसल्ली होती है. इसको लेकर सूकर विकास अधिकारी डॉ. अजय कुमार यादव कहते हैं कि इन जानवरों के शरीर के अंदर अफ्रीकन स्वाइन फीवर के वायरस का एंटीबाडी बन जाने की वजह से इन 35 सूकरों का जीवन बच गया और ये पूरी तरह स्वस्थ्य हैं. अब इसके सीरम सैंपल को भोपाल स्थित अत्याधुनिक पशु लेबोरेट्री भेजा जाएगा ताकि इन 35 सूकरों के बच जाने की वजह और इनमें कितना एंटीबाडी टाइटर बना है, इसकी जानकारी मिल सके.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

वहीं झारखंड इंस्टिट्यूट ऑफ एनिमल हेल्थ एंड प्रोडक्शन (Jharkhand Institute of Animal Health Production) के निदेशक और पशु वैज्ञानिक डॉ. बिपिन महथा कहते हैं कि यह निश्चित रूप से अनुसंधान यानी रिसर्च का विषय है. आखिर इन 35 सूकरों की मौत किस वजह से नहीं हुई और अगर ये स्वस्थ्य हो गए है तो क्या भविष्य में ये सूकर खुद को स्वस्थ रहकर दूसरे सूकरों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर फैलाने के वाहक नहीं बनेंगे. इन तमाम तथ्यों का पता लगाने के लिए अफ्रीकन स्वाइन फीवर को मात देने वाले सूकरों का ब्लड सैंपल भोपाल के लैब भेजा जाएगा और वहां के रिपोर्ट आने के बाद ही यह निश्चित रूप से कुछ कहा जा सकेगा.

ऐसे में अफ्रीकन स्वाइन फीवर को मात देने वाले इन 35 अलग अलग प्रजाति के सूकरों को लेकर राज्य के सूकर विकास पदाधिकारी और वैज्ञानिक दोनों दुविधा में हैं. क्योंकि मारक वायरस को मात देने वाले सूकरों को लेकर हर्ष व्यक्त करें या इस बात की चिंता है कि अगर ये सूकर अफ्रीकन स्वाइन फीवर के वाहक बन गए तब क्या होगा, इसकी चिंता व्यक्त करें.

रांचीः झारखंड में इस वर्ष वायरस से होने वाली मारक बीमारी अफ्रीकन स्वाइन फीवर (African Swine Fever in Jharkhand) ने जबरदस्त तबाही मचाई. जिससे भारी संख्या में झारखंड में जानवरों की मौत हुई और राज्य के ज्यादातर प्राइवेट और सरकारी सूकर फार्म देखते ही देखते सूकर विहीन हो गए. रांची के कांके स्थित सरकारी सूकर प्रक्षेत्र (Ranchi Kanke Pig Farm) में तीन महीने में ही 1514 सूकरों में से 1479 सूकरों की अफ्रीकन स्वाइन फीवर से मौत हो गयी. लेकिन हैरानी की बात यह है कि अफ्रीकन स्वाइन फीवर के वायरस को भी यहां के 35 सूकरों ने मात दे दी और वह स्वस्थ्य हो (Pigs overcome from African Swine Fever in Ranchi) गए.

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रांची के कांके सूकर प्रक्षेत्र में 29 अक्टूबर के बाद से किसी भी सूकर की मौत नहीं हुई है. सूकर प्रक्षेत्र में सुकरों की देखभाल करने वाले रामजी राम इन बचे हुए सूकरों को भगवान की इच्छा बताते हैं. वो कहते हैं कि अलग अलग प्रजाति के ये सूकर बचे हैं, जिसको स्वस्थ देखकर मन को काफी तसल्ली होती है. इसको लेकर सूकर विकास अधिकारी डॉ. अजय कुमार यादव कहते हैं कि इन जानवरों के शरीर के अंदर अफ्रीकन स्वाइन फीवर के वायरस का एंटीबाडी बन जाने की वजह से इन 35 सूकरों का जीवन बच गया और ये पूरी तरह स्वस्थ्य हैं. अब इसके सीरम सैंपल को भोपाल स्थित अत्याधुनिक पशु लेबोरेट्री भेजा जाएगा ताकि इन 35 सूकरों के बच जाने की वजह और इनमें कितना एंटीबाडी टाइटर बना है, इसकी जानकारी मिल सके.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

वहीं झारखंड इंस्टिट्यूट ऑफ एनिमल हेल्थ एंड प्रोडक्शन (Jharkhand Institute of Animal Health Production) के निदेशक और पशु वैज्ञानिक डॉ. बिपिन महथा कहते हैं कि यह निश्चित रूप से अनुसंधान यानी रिसर्च का विषय है. आखिर इन 35 सूकरों की मौत किस वजह से नहीं हुई और अगर ये स्वस्थ्य हो गए है तो क्या भविष्य में ये सूकर खुद को स्वस्थ रहकर दूसरे सूकरों में अफ्रीकन स्वाइन फीवर फैलाने के वाहक नहीं बनेंगे. इन तमाम तथ्यों का पता लगाने के लिए अफ्रीकन स्वाइन फीवर को मात देने वाले सूकरों का ब्लड सैंपल भोपाल के लैब भेजा जाएगा और वहां के रिपोर्ट आने के बाद ही यह निश्चित रूप से कुछ कहा जा सकेगा.

ऐसे में अफ्रीकन स्वाइन फीवर को मात देने वाले इन 35 अलग अलग प्रजाति के सूकरों को लेकर राज्य के सूकर विकास पदाधिकारी और वैज्ञानिक दोनों दुविधा में हैं. क्योंकि मारक वायरस को मात देने वाले सूकरों को लेकर हर्ष व्यक्त करें या इस बात की चिंता है कि अगर ये सूकर अफ्रीकन स्वाइन फीवर के वाहक बन गए तब क्या होगा, इसकी चिंता व्यक्त करें.

Last Updated : Nov 14, 2022, 12:47 PM IST
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