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आदिवासी जन परिषद ने मनाई गई पद्मश्री रामदयाल मुंडा की जयंती, कहा- आदिवासी भाषाओं को पाठ्यक्रम में शामल करे सरकार - रांची में आदिवासी जन परिषद ने रामदयाल मुंडा की जयंती मनाई

रांची में आदिवासी जन परिषद ने पद्मश्री डॉक्टर रामदयाल मुंडा की तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित की. इस दौरान आदिवासी जन परिषद ने हेमंत सरकार से आदिवासी भाषाओं को पाठ्यक्रम में लाने की मांग की.

Ram Dayal Munda birth anniversary celebrated in Ranchi
रांची में आदिवासी जन परिषद ने मनाई पद्मश्री रामदयाल मुंडा की जयंती
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Published : Aug 23, 2020, 3:17 PM IST

रांची: आदिवासी जन परिषद की तरफ से करमटोली के केंद्रीय कार्यालय में पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा की तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया. इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आदिवासी जन परिषद के अध्यक्ष प्रेमशाही मुंडा ने कहा कि डॉ. रामदयाल मुंडा के विचारों और उनके सिद्धांतों को लक्ष्य तक पहुंचाना होगा. डॉ. मुंडा के विचारों को झारखंड ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष में आदिवासियों को एक सूत्र में जोड़ने के लिए एक जबरदस्त सांस्कृतिक जन आंदोलन की आवश्यकता है. डॉ. मुंडा ने आदिवासी दर्शन और कला संस्कृति की गहराई को समझा. राजनीतिक क्षेत्र में रहते हुए भी आदिवासी वादन कला, संस्कृति, रीझ रंग पर ही हमेशा उनका झुकाव रहा.

ये भी पढ़ें: पार्किंग की जगह दुकान लगाने के मामले पर हाई कोर्ट गंभीर, राज्य सरकार और RMC से मांगा जवाब

झारखंड के पैका नृत्य को विश्व स्तरीय पहचान दिलाने में डॉ. रामदयाल मुंडा का सबसे बड़ा श्रेय जाता है. डॉ. रामदयाल मुंडा एक ऐसे विचारक थे, जिनको सदियों-सदियों तक भुलाया नहीं जा सकता है. आदिवासी जन परिषद हेमंत सरकार से मांग करता है कि हेमंत सरकार राज्य क़े प्राथमिक विद्यालय में मुंडा, हो, संथाल, कुड़ख, नागपुरी, कुरमाली, खोरठा को बोली जाने वाली भाषा को पढ़ाई के लिए प्राथमिक विद्यालय में शामिल किया जाए. डॉ. रामदयाल मुंडा के नाम से एक आदिवासी भाषा के पुस्तकालय का निर्माण रांची में किया जाए. इस कार्यक्रम को आदिवासी जन परिषद के प्रधान महासचिव अभय भटकुंवर ने अपने संबोधन में कहा कि डॉ. रामदयाल मुंडा ने आदिवासी संस्कृति की पहचान के लिए ताउम्र लड़ते रहे. डॉ. मुंडा न होते तो आदिवासी समाज की संस्कृति कभी सम्मानित नहीं हो पाती. आदिवासियों की कला संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिका छोड़कर अपने प्रदेश में आए जो सराहनीय कदम था.

वहीं, आदिवासी जन परिषद महिला मोर्चा की अध्यक्ष शांति सवैया ने कहा कि आदिवासियों की धर्म संस्कृति की पहचान के लिए "आदि धर्म" की पुस्तक लिखना एक ऐतिहासिक कदम है और उनकी किताब हम आदिवासियों की एक धर्मग्रंथ के रूप में स्थापित है. आज आदिवासी नाच, गान, कला, संस्कृति को पहचान दिलाने के लिए डॉ. रामदयाल मुंडा को आनेवाली पीढ़ी याद रखेगी. इस कार्यक्रम में आदिवासी जन परिषद के प्रधान महासचिव अभय भटकुंवर, महिला मोर्चा की अध्यक्ष शांति सवैया, आदिवासी जन परिषद रांची जिला कार्यकारी अध्यक्ष बजरंग लोहरा, सिकंदर मुंडा, नागेश्वर लोहरा, संजीव वर्मा, कैलाश मुंडा, कृष्णा मुंडा, चंद्रशेखर सिंह मुंडा, संदीप तिर्की, जेनीता तिग्गा और पुष्पा टोप्पो उपस्थित रहे.

रांची: आदिवासी जन परिषद की तरफ से करमटोली के केंद्रीय कार्यालय में पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा की तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया. इस कार्यक्रम को संबोधित करते हुए आदिवासी जन परिषद के अध्यक्ष प्रेमशाही मुंडा ने कहा कि डॉ. रामदयाल मुंडा के विचारों और उनके सिद्धांतों को लक्ष्य तक पहुंचाना होगा. डॉ. मुंडा के विचारों को झारखंड ही नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष में आदिवासियों को एक सूत्र में जोड़ने के लिए एक जबरदस्त सांस्कृतिक जन आंदोलन की आवश्यकता है. डॉ. मुंडा ने आदिवासी दर्शन और कला संस्कृति की गहराई को समझा. राजनीतिक क्षेत्र में रहते हुए भी आदिवासी वादन कला, संस्कृति, रीझ रंग पर ही हमेशा उनका झुकाव रहा.

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झारखंड के पैका नृत्य को विश्व स्तरीय पहचान दिलाने में डॉ. रामदयाल मुंडा का सबसे बड़ा श्रेय जाता है. डॉ. रामदयाल मुंडा एक ऐसे विचारक थे, जिनको सदियों-सदियों तक भुलाया नहीं जा सकता है. आदिवासी जन परिषद हेमंत सरकार से मांग करता है कि हेमंत सरकार राज्य क़े प्राथमिक विद्यालय में मुंडा, हो, संथाल, कुड़ख, नागपुरी, कुरमाली, खोरठा को बोली जाने वाली भाषा को पढ़ाई के लिए प्राथमिक विद्यालय में शामिल किया जाए. डॉ. रामदयाल मुंडा के नाम से एक आदिवासी भाषा के पुस्तकालय का निर्माण रांची में किया जाए. इस कार्यक्रम को आदिवासी जन परिषद के प्रधान महासचिव अभय भटकुंवर ने अपने संबोधन में कहा कि डॉ. रामदयाल मुंडा ने आदिवासी संस्कृति की पहचान के लिए ताउम्र लड़ते रहे. डॉ. मुंडा न होते तो आदिवासी समाज की संस्कृति कभी सम्मानित नहीं हो पाती. आदिवासियों की कला संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए अमेरिका छोड़कर अपने प्रदेश में आए जो सराहनीय कदम था.

वहीं, आदिवासी जन परिषद महिला मोर्चा की अध्यक्ष शांति सवैया ने कहा कि आदिवासियों की धर्म संस्कृति की पहचान के लिए "आदि धर्म" की पुस्तक लिखना एक ऐतिहासिक कदम है और उनकी किताब हम आदिवासियों की एक धर्मग्रंथ के रूप में स्थापित है. आज आदिवासी नाच, गान, कला, संस्कृति को पहचान दिलाने के लिए डॉ. रामदयाल मुंडा को आनेवाली पीढ़ी याद रखेगी. इस कार्यक्रम में आदिवासी जन परिषद के प्रधान महासचिव अभय भटकुंवर, महिला मोर्चा की अध्यक्ष शांति सवैया, आदिवासी जन परिषद रांची जिला कार्यकारी अध्यक्ष बजरंग लोहरा, सिकंदर मुंडा, नागेश्वर लोहरा, संजीव वर्मा, कैलाश मुंडा, कृष्णा मुंडा, चंद्रशेखर सिंह मुंडा, संदीप तिर्की, जेनीता तिग्गा और पुष्पा टोप्पो उपस्थित रहे.

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