रांची: हेमंत सरकार को राजभवन से बड़ा झटका लगा है. राज्यपाल सीपी राधाकृष्णनन ने झारखंड पदों एवं सेवा की रिक्तियों में आरक्षण संशोधन अधिनियम 2022 को वापस लौटा दिया है. राजभवन सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक मार्च के पहले सप्ताह में ही Reservation Amendment Act 2022 बिल को लौटाया गया है. राजभवन की ओर से सरकार को बिल पर फिर से समीक्षा करने का सुझाव दिया है. आपको बता दें कि राज्य सरकार ने ओबीसी, एसटी और एससी के आरक्षण प्रतिशत में बढ़ोतरी कर संशोधन बिल को पारित कराने के लिए 11 नवंबर 2022 को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया था. तब यह बिल सर्वसम्मति से पारित हुआ था.
किस तरह का हुआ था संशोधन: राज्य सरकार ने ओबीसी के आरक्षण को 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत, एसटी के आरक्षण को 26 से बढ़ाकर 28 प्रतिशत और एससी के आरक्षण को 10 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत करने की व्यवस्था की थी. साथ ही ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण को जोड़कर सरकारी नौकरी में आरक्षण की सीमा 77 प्रतिशत कर दिया गया था. इस मसले पर जमकर राजनीति हुई थी. क्रेडिट लेने की होड़ मची थी. तब सदन में समर्थन के बावजूद भाजपा नेताओं ने कहा था कि सरकार के पास अधिकार है कि वह संकल्प पारित कर इस व्यवस्था को लागू कर सकती है. लेकिन सरकार ने जानबूझकर इसे केंद्र के पाले में डालकर राजनीतिक रोटी सेंकने की कोशिश की है.
भाजपा के वरिष्ठ नेता सीपी सिंह ने इस मसले पर ईटीवी भारत को बताया कि वह जानते थे कि इस बिल का क्या हश्र होगा. उन्होंने कहा कि झारखंड की सरकार झारखंड की जनता को बराबर छलने का काम कर रही है. हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार बेरोजगार छात्र-छात्राओं को नौकरी नहीं देना चाहती है. यही वजह है कि आज छात्रों पर लाठी बरसा रही है. वादा किया था कि ओबीसी को आरक्षण 27 प्रतिशत कर दिया जाएगा. यह जानते हुए कि सुप्रीम कोर्ट ने 50 प्रतिशत की कैपिंग कर दी है.
वोट बैंक की राजनीति: ओबीसी को छलने के लिए राज्य में आरक्षण का शिगुफा छेड़ा. यह अलग बात है कि सदन में सर्वसम्मति से पास हुआ है. उसी समय कहा गया था कि केंद्र को भेजने का कोई मतलब नहीं है. जनता को गुमराह करने के लिए ऐसा किया. अब वह ढोंग करेंगे कि राजभवन ने लौटा दिया. इसी तरह 1932 वाली स्थानीयता को लेकर राजनीति की थी. वह बिल भी लौट गई. अब 60-40 का जुमला निकाला है. सीपी सिंह ने कहा कि मेरा मत है कि सरकार सभी को ठग रही है. सरकार ज्यादा दिन तक आंखों में धूल नहीं झोंक सकती. आने वाले समय में इसका खामियाजा सरकार को उठाना पड़ेगा.
किस आधार पर लौटाया गया बिल: अब सवाल है कि मार्च माह के पहले सप्ताह में इस बिल को राजभवन ने क्या कहते हुए लौटाया गया. सूत्रों से जानकारी के मुताबिक पूर्व राज्यपाल रमेश बैस ने इस बिल पर अटार्नी जनरल से कानूनी राय मांगी थी. अटार्नी जनरल का कहना था कि यह बिल आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों के मुताबिक नहीं है. इसी को आधार पर वर्तमान राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने नये सीरे से समीक्षा के लिए पिछले माह ही सरकार को भेज दिया था. आपको बता दें कि 11 नवंबर को विशेष सत्र के दौरान पारित 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति को भी पहले ही राजभवन सरकार को लौटा चुका है. गौर करने वाली बात यह है कि मार्च के पहले सप्ताह में ही राजभवन ने बिल लौटा दिया है लेकिन इसपर अभी तक न तो सत्ता पक्ष और न सरकार की तरफ से कुछ कहा गया.