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राजभवन ने मॉब लिंचिंग प्रीवेंशन बिल सरकार को लौटाया, दो बिंदुओं पर जताई आपत्ति - झारखंड खबर

राजभवन ने मॉब लिंचिंग प्रीवेंशन बिल सरकार को लौटा दिया है. राजभवन ने द झारखंड प्रिवेंशन ऑफ मॉब वायलेंस एंड मॉब लिंचिंग बिल में दो बिंदुओं पर आपत्ति जताई है.

Raj Bhavan returned Mob Lynching Prevention Bill to Jharkhand government
Raj Bhavan returned Mob Lynching Prevention Bill to Jharkhand government
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Published : Mar 17, 2022, 10:24 PM IST

रांची: झारखंड में मॉब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए पिछले साल शीतकालीन सत्र के दौरान विधानसभा में पारित "द झारखंड प्रिवेंशन ऑफ मॉब वायलेंस एंड मॉब लिंचिंग बिल" 2021 को राजभवन ने सरकार को लौटा दिया है. इस विधेयक में 2 बिंदुओं पर आपत्ति जताई गई है. राजभवन का सुझाव है कि विधेयक की धारा 2 (vi) में भीड़ की जो परिभाषा दी गई है, वह कानूनी शब्दावली के अनुरूप नहीं है. दो या दो से अधिक व्यक्तियों के भीड़ को अशांत भीड़ नहीं कहा जा सकता है. राजभवन की दूसरी आपत्ति गवाह संरक्षण योजना को लेकर है. इसका जिक्र विधेयक के अंग्रेजी संस्करण में किया गया है लेकिन हिंदी संस्करण में नहीं है. लिहाजा दोनों संस्करण में समानता का हवाला देते हुए इसमें सुधार की आवश्यकता बताई गई है.

ये भी पढ़ें- Jharkhand Mob Lynching Bill: विधानसभा से पारित मॉब लिंचिंग बिल पहुंचा राजभवन

दो बिंदुओं पर राजभवन की आपत्ति के बाद इस विधेयक को कानूनी स्वरूप लेने में अब थोड़ा और वक्त लगेगा. हालांकि इस विधेयक पर भाजपा लगातार सवाल खड़े करती रही है. लेकिन पिछले साल शीतकालीन सत्र के दौरान भाजपा विधायक अमित मंडल ने कुछ संशोधन प्रस्ताव जरूर लाए थे. लेकिन इस बिल का खुलकर विरोध नहीं किया गया था. पिछले साल विधानसभा से इस बिल की मंजूरी के बाद संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने कहा था कि झारखंड में साल 2016 से 2021 के बीच मॉब लिंचिंग की 56 घटनाएं हो चुकी हैं. इसमें कई लोगों की जान भी जा चुकी है. हालांकि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का हवाला देते हुए कहा था कि झारखंड चौथा राज्य है, जहां मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बनने जा रहा है.

मॉब लिंचिंग प्रीवेंशन बिल की मुख्य बातें

  • मॉब लिंचिंग पर कानून बनाने वाल चौथा राज्य बना झारखंड
  • आईजी स्तर के अधिकारी करेंगे मॉनिटरिंग
  • जिले के एसपी करेंगे कोऑर्डिनेट
  • गैर जमानती अपराध माना गया
  • आजीवन कारावास तक की सजा
  • विपक्ष ने फांसी की सजा की मांग की
  • सामान्य हिंसा में तीन साल तक की सजा
  • 2 या 2 से आधिक लोगों को मॉब माना गया
  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में इस बिल को लाया गया
  • एक संशोधन के साथ बिल विधानसभा से पास
  • संशोधन में निर्बल की जगह आम नागरिक शब्द जोड़ा गया

रांची: झारखंड में मॉब लिंचिंग की घटनाओं को रोकने के लिए पिछले साल शीतकालीन सत्र के दौरान विधानसभा में पारित "द झारखंड प्रिवेंशन ऑफ मॉब वायलेंस एंड मॉब लिंचिंग बिल" 2021 को राजभवन ने सरकार को लौटा दिया है. इस विधेयक में 2 बिंदुओं पर आपत्ति जताई गई है. राजभवन का सुझाव है कि विधेयक की धारा 2 (vi) में भीड़ की जो परिभाषा दी गई है, वह कानूनी शब्दावली के अनुरूप नहीं है. दो या दो से अधिक व्यक्तियों के भीड़ को अशांत भीड़ नहीं कहा जा सकता है. राजभवन की दूसरी आपत्ति गवाह संरक्षण योजना को लेकर है. इसका जिक्र विधेयक के अंग्रेजी संस्करण में किया गया है लेकिन हिंदी संस्करण में नहीं है. लिहाजा दोनों संस्करण में समानता का हवाला देते हुए इसमें सुधार की आवश्यकता बताई गई है.

ये भी पढ़ें- Jharkhand Mob Lynching Bill: विधानसभा से पारित मॉब लिंचिंग बिल पहुंचा राजभवन

दो बिंदुओं पर राजभवन की आपत्ति के बाद इस विधेयक को कानूनी स्वरूप लेने में अब थोड़ा और वक्त लगेगा. हालांकि इस विधेयक पर भाजपा लगातार सवाल खड़े करती रही है. लेकिन पिछले साल शीतकालीन सत्र के दौरान भाजपा विधायक अमित मंडल ने कुछ संशोधन प्रस्ताव जरूर लाए थे. लेकिन इस बिल का खुलकर विरोध नहीं किया गया था. पिछले साल विधानसभा से इस बिल की मंजूरी के बाद संसदीय कार्य मंत्री आलमगीर आलम ने कहा था कि झारखंड में साल 2016 से 2021 के बीच मॉब लिंचिंग की 56 घटनाएं हो चुकी हैं. इसमें कई लोगों की जान भी जा चुकी है. हालांकि उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का हवाला देते हुए कहा था कि झारखंड चौथा राज्य है, जहां मॉब लिंचिंग के खिलाफ कानून बनने जा रहा है.

मॉब लिंचिंग प्रीवेंशन बिल की मुख्य बातें

  • मॉब लिंचिंग पर कानून बनाने वाल चौथा राज्य बना झारखंड
  • आईजी स्तर के अधिकारी करेंगे मॉनिटरिंग
  • जिले के एसपी करेंगे कोऑर्डिनेट
  • गैर जमानती अपराध माना गया
  • आजीवन कारावास तक की सजा
  • विपक्ष ने फांसी की सजा की मांग की
  • सामान्य हिंसा में तीन साल तक की सजा
  • 2 या 2 से आधिक लोगों को मॉब माना गया
  • सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में इस बिल को लाया गया
  • एक संशोधन के साथ बिल विधानसभा से पास
  • संशोधन में निर्बल की जगह आम नागरिक शब्द जोड़ा गया
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