रांची: झारखंड में इन दिनों लगातार अच्छी वर्षा हो रही है. इसके कारण मानसून के आगमन से लेकर जून, जुलाई और अगस्त के शुरुआती 15-20 दिनों तक राज्य में वर्षापात औसत से 45-46% तक कम हुआ था, जो अब घट कर 27 % के करीब रह गया है. मानसूनी वर्षा के पैटर्न में बदलाव, राज्य में हर 10 वर्षों में औसत वर्षापात में कमी और उच्चतम तापमान में बढ़ोतरी को लेकर मौसम केंद्र रांची की रिसर्च रिपोर्ट इस ओर इशारा करती है कि अब हमें सचेत हो जाने की जरूरत है.
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मानसून के पैटर्न में भी बदलाव: मौसम केंद्र रांची के निदेशक और वरिष्ठ मौसम वैज्ञानिक अभिषेक आनंद कहते हैं कि न सिर्फ साल दर साल औसत वर्षापात कम होता जा रहा है बल्कि मानसून का पैटर्न भी बदल रहा है. अभिषेक आनंद के अनुसार एक ओर जहां ग्लोबल वार्मिंग का असर झारखंड के ऊपर पड़ा है. वहीं राज्य बनने के बाद विकास के नाम पर कम होते घने जंगल, बढ़ता शहरीकरण, प्रदूषण और स्थानीय कारक भी इसके लिए जिम्मेदार हैं.
अभिषेक आनंद ने कहा कि अब मानसून का 05 से 07 दिन देर से आना और जून, जुलाई और अगस्त महीने में के शुरुआती दिनों में कम वर्षापात की घटना लगातार देखी जा रही है. उन्होंने कहा कि एक और तथ्य रिसर्च के दौरान यह सामने आया है कि मानसून के समय में राज्य में ज्यादातर वर्षा बंगाल की खाड़ी में बने सिस्टम से हो रहा है, न कि मानसून की वजह से. उन्होंने कहा कि इस वजह से राज्य में एक जैसी बारिश सभी जिलों में नहीं होती. जिस क्षेत्र में बंगाल की खाड़ी में बने सिस्टम का असर होता है वहां अच्छी वर्षा हो जाती है और बाकी का इलाका सूखा रह जाता है. जबकि मानसूनी सिस्टम से वर्षा पूरे राज्य में होती थी. तब राज्य भर में वर्षा का डिस्ट्रीब्यूशन एक समान होता था.
जलवायु परिवर्तन के वैश्विक कारणों को रोकना मुश्किल: मौसम वैज्ञानिक अभिषेक आनंद कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के वैश्विक कारणों को भले ही प्रदेश स्तर पर नहीं रोका जा सकता. परंतु मौसम में बदलाव करने वाले जो स्थानीय कारक हैं उसको जरूर काम किया जा सकता है. इसके लिए वनो का विस्तार और प्रदूषण फैलाने वाले कारकों को रोकना सबसे अधिक महत्वपूर्ण है.