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चार फेज में चांद पर उतारा गया था लैंडर विक्रम, चंद्रयान 3 के लिए बनी थी खास रणनीति, प्रो. राधाकांत पाढ़ी ने छात्रों से साझा किए अपने अनुभव

23 अगस्त को भारत ने अंतरिक्ष में इतिहास रच दिया. इस दिन भारत के चंद्रयान 3 ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग की थी. इस सॉफ्ट लैंडिग में प्रोफेसर राधाकांत पाढ़ी की भी अहम भूमिका थी. उन्होंने रांची के सरला बिरला विश्वविद्यालय सभागार में आयोजित कार्यक्रम में छात्रों के साथ अपने अनुभव साझा किए. Prof Radhakant Explained His Participation In Chandrayan 3.

Prof Radhakant Explained His Participation In Chandrayan 3
Chandrayan 3
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Oct 20, 2023, 4:10 PM IST

Updated : Oct 20, 2023, 6:26 PM IST

प्रोफेसर राधाकांत पाढ़ी का बयान

रांची: 23 अगस्त 2023 की शाम इसरो ने स्पेस रिसर्च में जो मुकाम हासिल किया, उसको कभी नहीं भुलाया जा सकता. इसका हिस्सा रहे प्रोफेसर राधाकांत पाढ़ी ने कहा कि चंद्रयान-2 की लैंडिंग के वक्त हुई गलतियों से सबक लेते हुए चार फेज में लैंडर को उतारा गया. कैसे कैमरे की मदद ली गई, कैसे नेविगेशन, मास, एस्कलेशन और वेलोसिटी का कैल्कुलेशन किया गया. उन्होंने मीडिया से बात करते हुए बताया कि चंद्रयान पर कई तरह के मिनरल्स के साक्ष्य मिले हैं. जहां तक इंसान को चांद पर भेजने की बात है तो इसके जानकारी इसरो ही दे सकता है. हमारे देश के हिसाब से गगनयान मिशन बहुत इंपोर्टेंट है.

ये भी पढ़ें: DURGA PUJA CHANDRAYAAN: दुर्गा पूजा पंडाल में नजर आएगा चंद्रयान3, रोवर 'प्रज्ञान' की भी दिखेगी झलक

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर 'विक्रम' की सॉफ्ट लैंडिंग सबसे बड़ी चुनौती थी. काउंट डाउन शुरू होने पर पूरे देश की धड़कन थम सी गई थी. दुआओं का दौर चल रहा था. लेकिन इसरो की टीम कांफिडेंट थी. हुआ भी वैसा ही. चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग के साथ ही इसरो का हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. उसकी आवाज पूरी दुनिया तक पहुंची. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग करने वाला भारत न सिर्फ दुनिया का पहला देश बना बल्कि अमेरिका, रूस और चीन के बाद चांद पर पहुंचने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया. गौरव के इस लम्हे को इसरो के चीफ डॉ एस.सोमनाथ ने अपने सभी टीम हेड के साथ साझा किया.

इस मिशन में कई ऐसे लोग भी जुड़े थे, जिनसे शायद आप वाकिफ न हों. उस लिस्ट में एक नाम है प्रो. राधाकांत पाढ़ी का. इन्होंने विक्रम के सॉफ्ट लैंडिंग में अहम भूमिका निभाई थी. वह जब रांची के सरला बिरला विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में पहुंचे तो उनका गर्मजोशी से स्वागत हुआ. उन्होंने ग्राफिक्स के जरिए बारीकी से बताया कि सॉफ्ट लैंडिंग में उनकी क्या भूमिका थी.

बेंगलुरू में मौजूद इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ साइंस के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर हैं राधाकांत पाढ़ी. उन्होंने इस काम में लगी पूरी टीम की तस्वीर भी साझा की. उन्होंने बताया कि लैंडिंग के वक्त अंतिम समय का 15 मिनट बेहद खास था. उसी समय यह तय होना था कि मिशन सफल होगा या नहीं.

14 जुलाई 2023 को श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम को चांद पर पहुंचने के लिए 40 दिन का सफर तय करना पड़ा. अंतिम लम्हें में विक्रम को लैंड कराना आसान नहीं था. डिऑर्बिट कर जब उसे चांद की सतह की ओर भेजा गया, तब उसकी रफ्तार 6 हजार किमी प्रति घंटा से ज्यादा थी. स्पीड कंट्रोल करने में चार इंजन ने अहम भूमिका निभाई. बाद में दो इंजन की मदद से दस किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार में लाकर विक्रम की लैंडिंग हुई. लैंडर को यह नाम भारत में स्पेस टेक्नोलॉजी के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर दिया गया.

लैंडर विक्रम से निकले रोवर प्रज्ञान ने भी खूब कमाल दिखाया. इसरो ने प्रज्ञान से मिली सूचना पर बताया कि चांद पर सल्फर के अलावा दक्षिणी ध्रुव पर ऑक्सीजन, एल्युमिनियम, कैल्सियम, आयरन, टाइटेनियम और क्रोमियम भी मौजूद है. लेकिन दस दिनों तक लगातार सूचना भेजने के बाद प्रज्ञान अचानक सो गया. उससे संपर्क टूट गया. कई दिन निकलने पर इसरो चीफ एस.सोमनाथ ने मीडिया से कहा कि प्रज्ञान ने वो काम पूरा कर दिया है, जिसकी हमलोगों ने उम्मीद की थी.

आपको बता दें कि चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद 2 सितंबर को इसरो ने भारत के पहले सौर मिशन आदित्य एल-1 को लॉन्च किया. इसके स्टेप्स उपकरण के सेंसर ने धरती से 50 हजार किमी से अधिक दूरी पर सुपर थर्मल और ऊर्जावान आयनों और इलेक्ट्रॉन्स को मापना शुरू कर दिया. इसके डाटा से पृथ्वी के आसपास के कणों के व्यवहार के आकलन में मदद मिलेगी.

प्रोफेसर राधाकांत पाढ़ी का बयान

रांची: 23 अगस्त 2023 की शाम इसरो ने स्पेस रिसर्च में जो मुकाम हासिल किया, उसको कभी नहीं भुलाया जा सकता. इसका हिस्सा रहे प्रोफेसर राधाकांत पाढ़ी ने कहा कि चंद्रयान-2 की लैंडिंग के वक्त हुई गलतियों से सबक लेते हुए चार फेज में लैंडर को उतारा गया. कैसे कैमरे की मदद ली गई, कैसे नेविगेशन, मास, एस्कलेशन और वेलोसिटी का कैल्कुलेशन किया गया. उन्होंने मीडिया से बात करते हुए बताया कि चंद्रयान पर कई तरह के मिनरल्स के साक्ष्य मिले हैं. जहां तक इंसान को चांद पर भेजने की बात है तो इसके जानकारी इसरो ही दे सकता है. हमारे देश के हिसाब से गगनयान मिशन बहुत इंपोर्टेंट है.

ये भी पढ़ें: DURGA PUJA CHANDRAYAAN: दुर्गा पूजा पंडाल में नजर आएगा चंद्रयान3, रोवर 'प्रज्ञान' की भी दिखेगी झलक

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडर 'विक्रम' की सॉफ्ट लैंडिंग सबसे बड़ी चुनौती थी. काउंट डाउन शुरू होने पर पूरे देश की धड़कन थम सी गई थी. दुआओं का दौर चल रहा था. लेकिन इसरो की टीम कांफिडेंट थी. हुआ भी वैसा ही. चंद्रयान 3 की सफल लैंडिंग के साथ ही इसरो का हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. उसकी आवाज पूरी दुनिया तक पहुंची. चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग करने वाला भारत न सिर्फ दुनिया का पहला देश बना बल्कि अमेरिका, रूस और चीन के बाद चांद पर पहुंचने वाला दुनिया का चौथा देश बन गया. गौरव के इस लम्हे को इसरो के चीफ डॉ एस.सोमनाथ ने अपने सभी टीम हेड के साथ साझा किया.

इस मिशन में कई ऐसे लोग भी जुड़े थे, जिनसे शायद आप वाकिफ न हों. उस लिस्ट में एक नाम है प्रो. राधाकांत पाढ़ी का. इन्होंने विक्रम के सॉफ्ट लैंडिंग में अहम भूमिका निभाई थी. वह जब रांची के सरला बिरला विश्वविद्यालय के कार्यक्रम में पहुंचे तो उनका गर्मजोशी से स्वागत हुआ. उन्होंने ग्राफिक्स के जरिए बारीकी से बताया कि सॉफ्ट लैंडिंग में उनकी क्या भूमिका थी.

बेंगलुरू में मौजूद इंडियन इस्टीट्यूट ऑफ साइंस के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर हैं राधाकांत पाढ़ी. उन्होंने इस काम में लगी पूरी टीम की तस्वीर भी साझा की. उन्होंने बताया कि लैंडिंग के वक्त अंतिम समय का 15 मिनट बेहद खास था. उसी समय यह तय होना था कि मिशन सफल होगा या नहीं.

14 जुलाई 2023 को श्रीहरिकोटा से चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम को चांद पर पहुंचने के लिए 40 दिन का सफर तय करना पड़ा. अंतिम लम्हें में विक्रम को लैंड कराना आसान नहीं था. डिऑर्बिट कर जब उसे चांद की सतह की ओर भेजा गया, तब उसकी रफ्तार 6 हजार किमी प्रति घंटा से ज्यादा थी. स्पीड कंट्रोल करने में चार इंजन ने अहम भूमिका निभाई. बाद में दो इंजन की मदद से दस किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार में लाकर विक्रम की लैंडिंग हुई. लैंडर को यह नाम भारत में स्पेस टेक्नोलॉजी के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर दिया गया.

लैंडर विक्रम से निकले रोवर प्रज्ञान ने भी खूब कमाल दिखाया. इसरो ने प्रज्ञान से मिली सूचना पर बताया कि चांद पर सल्फर के अलावा दक्षिणी ध्रुव पर ऑक्सीजन, एल्युमिनियम, कैल्सियम, आयरन, टाइटेनियम और क्रोमियम भी मौजूद है. लेकिन दस दिनों तक लगातार सूचना भेजने के बाद प्रज्ञान अचानक सो गया. उससे संपर्क टूट गया. कई दिन निकलने पर इसरो चीफ एस.सोमनाथ ने मीडिया से कहा कि प्रज्ञान ने वो काम पूरा कर दिया है, जिसकी हमलोगों ने उम्मीद की थी.

आपको बता दें कि चंद्रयान-3 मिशन की सफलता के बाद 2 सितंबर को इसरो ने भारत के पहले सौर मिशन आदित्य एल-1 को लॉन्च किया. इसके स्टेप्स उपकरण के सेंसर ने धरती से 50 हजार किमी से अधिक दूरी पर सुपर थर्मल और ऊर्जावान आयनों और इलेक्ट्रॉन्स को मापना शुरू कर दिया. इसके डाटा से पृथ्वी के आसपास के कणों के व्यवहार के आकलन में मदद मिलेगी.

Last Updated : Oct 20, 2023, 6:26 PM IST
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