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नई नियमावली रक्तदाता को रूला रही खून के आंसू, बदलाव से रक्तदाताओं में नाराजगी - change in rules for getting blood

झारखंड में ब्लड बैंक से रक्त पाने की नई नियमावली इन दिनों रक्तदाताओं को खून के आंसू रूला रही है. नई नियमावली के कारण डोनर को अपने परिचितों के लिए भी रक्त हासिल करने में दिक्कत हो रही है.

Problem with change in rules for getting blood from blood bank in Jharkhand
नई नियमावली रक्तदाता को रूला रही खून के आंसू
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Published : Mar 19, 2022, 10:28 PM IST

रांची: रक्त संग्रह सिर्फ रक्तदान से ही संभव है क्योंकि कृत्रिम रूप से इसका उत्पादन असंभव है. इसीलिए राज्य में रक्तदान को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाता है, ताकि राज्य के ब्लड बैंकों में ज्यादा से ज्यादा रक्त संग्रहित हो सके और जरूरतमंदों को इमरजेंसी में ब्लड मिल सके. लेकिन झारखंड में ब्लड बैंक से रक्त पाने के नियम में बदलाव कर दिया गया है. साथ ही डोनर कार्ड की व्यवस्था खत्म कर दी गई है. इसका ब्लड बैंक से रक्त पाने में कठिनाई बढ़ गई है. इस व्यवस्था को लेकर रक्तदाताओं में भी नाराजगी है.

ये भी पढ़ें-पलामू के सुखाड़ वाले क्षेत्रों में ब्रोकली की खेती, किसानों के जीवन में आ रहा बदलाव

क्या है नई नियमावलीः नई नियमावली के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी रक्तदान शिविर में रक्तदान करता है तो वह सिर्फ अपने लिए ही रक्त प्राप्त कर सकता है. वह अपने परिजनों या जरूरतमंद परिचितों के लिए अपने द्वारा किए गए रक्तदान के आधार पर रक्त नहीं ले सकता. जबकि पहले झारखंड में डोनर कार्ड के माध्यम से एक व्यक्ति सीमित दिनों तक अपने किसी भी परिचित की जान बचाने के लिए ब्लड बैंक से रक्त लेने का अधिकार रखता था. इस नियम से शिविर आयोजक असंतुष्ट हैं.

देखें पूरी खबर

38 महीने से नहीं है डोनर कार्डः रक्तदान शिविर लगाने वाली संस्था लहू बोलेगा के संस्थापक नदीम खान बताते हैं कि सरकार की नई नियमावली की वजह से लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. नदीम ने बताया कि झारखंड में 38 महीने से डोनर कार्ड की व्यवस्था नहीं है. इससे लोग पहले ही परेशान थे. अब नई नियमावली ने लोगों की परेशानी बढ़ा दी है. नदीम खान और कई रक्त दाताओं ने बताया कि डोनर कार्ड नहीं होने से लोग रक्तदान करने से परहेज कर रहे हैं. क्योंकि लोगों को लग रहा है कि जब सही समय पर उन्हें अपनों के लिए ब्लड नहीं मिलेगा तो फिर लगातार रक्तदान करने से क्या लाभ?

डिजिटल कार्ड से ब्लडः डोनर कार्ड को लेकर हमने जब रिम्स ब्लड बैंक के अधिकारियों से बात की तो उन्होंने बताया कि फिलहाल ब्लड बैंक में रक्त उन्हीं को मिल रहा है, जिनके पास रक्त देने के लिए डोनर है. वहीं ब्लड बैंक के अधिकारियों ने बताया कि राज्य सरकार के नए निर्देश के अनुसार डिजिटल कार्ड के आधार पर ब्लड मुहैया कराया जाता है, जिसमें यह शर्त होती है कि व्यक्ति स्वयं के लिए ब्लड ले रहा हो न कि किसी रिश्तेदार या परिचित के लिए.

रक्तदान करने वाले लोगों का कहना है कि डोनर कार्ड बंद करने के बाद यह देखा जा रहा है कि रक्तदान शिविर में रक्तदाताओं की संख्या कम हो गई है. राज्य में रक्तदान शिविर लगाने वाले लोगों ने कहा कि सरकार को इसका ऑडिट कराने के लिए भी कहा गया है कि वह आकलन करें कि डोनर कार्ड जब चल रहे थे तो उस वक्त राज्य में हर महीने कितने यूनिट रक्त संग्रहित हो रहा था और डोनर कार्ड बंद होने के बाद कितना यूनिट रक्त संग्रहित हो रहा है?

क्या कहना है सिविल सर्जन काः रांची के सिविल सर्जन विनोद प्रसाद ने बताया कि डोनर कार्ड को इसलिए बंद करा दिया गया ताकि डोनर कार्ड के नाम पर रक्त की कालाबाजारी ना हो सके. लेकिन समाज के लिए रक्त संग्रहित करने वाले संगठन के कार्यकर्ताओं का कहना है कि डोनर कार्ड से रक्त की कालाबाजारी नहीं हो रही थी बल्कि स्वास्थ्य विभाग में काम करने वाले अधिकारियों की लापरवाही की वजह से कालाबाजारी के मामले देखने को मिल रहे थे. इधर सिविल सर्जन डॉक्टर विनोद प्रसाद ने कहा कि डोनर कार्ड को फिर से लागू करने के लिए राज्य सरकार के पास प्रस्ताव भेजा गया है.

गौरतलब है कि एक आंकड़े के अनुसार झारखंड में हर वर्ष 3.15 लाख यूनिट रक्त की जरूरत पड़ती है. करीब 2.15 लाख यूनिट तक ही रक्तदान के मध्यम से संग्रहित हो रहा है जो कि आवश्यकता के हिसाब से काफी कम है.

रांची: रक्त संग्रह सिर्फ रक्तदान से ही संभव है क्योंकि कृत्रिम रूप से इसका उत्पादन असंभव है. इसीलिए राज्य में रक्तदान को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाता है, ताकि राज्य के ब्लड बैंकों में ज्यादा से ज्यादा रक्त संग्रहित हो सके और जरूरतमंदों को इमरजेंसी में ब्लड मिल सके. लेकिन झारखंड में ब्लड बैंक से रक्त पाने के नियम में बदलाव कर दिया गया है. साथ ही डोनर कार्ड की व्यवस्था खत्म कर दी गई है. इसका ब्लड बैंक से रक्त पाने में कठिनाई बढ़ गई है. इस व्यवस्था को लेकर रक्तदाताओं में भी नाराजगी है.

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क्या है नई नियमावलीः नई नियमावली के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी रक्तदान शिविर में रक्तदान करता है तो वह सिर्फ अपने लिए ही रक्त प्राप्त कर सकता है. वह अपने परिजनों या जरूरतमंद परिचितों के लिए अपने द्वारा किए गए रक्तदान के आधार पर रक्त नहीं ले सकता. जबकि पहले झारखंड में डोनर कार्ड के माध्यम से एक व्यक्ति सीमित दिनों तक अपने किसी भी परिचित की जान बचाने के लिए ब्लड बैंक से रक्त लेने का अधिकार रखता था. इस नियम से शिविर आयोजक असंतुष्ट हैं.

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38 महीने से नहीं है डोनर कार्डः रक्तदान शिविर लगाने वाली संस्था लहू बोलेगा के संस्थापक नदीम खान बताते हैं कि सरकार की नई नियमावली की वजह से लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. नदीम ने बताया कि झारखंड में 38 महीने से डोनर कार्ड की व्यवस्था नहीं है. इससे लोग पहले ही परेशान थे. अब नई नियमावली ने लोगों की परेशानी बढ़ा दी है. नदीम खान और कई रक्त दाताओं ने बताया कि डोनर कार्ड नहीं होने से लोग रक्तदान करने से परहेज कर रहे हैं. क्योंकि लोगों को लग रहा है कि जब सही समय पर उन्हें अपनों के लिए ब्लड नहीं मिलेगा तो फिर लगातार रक्तदान करने से क्या लाभ?

डिजिटल कार्ड से ब्लडः डोनर कार्ड को लेकर हमने जब रिम्स ब्लड बैंक के अधिकारियों से बात की तो उन्होंने बताया कि फिलहाल ब्लड बैंक में रक्त उन्हीं को मिल रहा है, जिनके पास रक्त देने के लिए डोनर है. वहीं ब्लड बैंक के अधिकारियों ने बताया कि राज्य सरकार के नए निर्देश के अनुसार डिजिटल कार्ड के आधार पर ब्लड मुहैया कराया जाता है, जिसमें यह शर्त होती है कि व्यक्ति स्वयं के लिए ब्लड ले रहा हो न कि किसी रिश्तेदार या परिचित के लिए.

रक्तदान करने वाले लोगों का कहना है कि डोनर कार्ड बंद करने के बाद यह देखा जा रहा है कि रक्तदान शिविर में रक्तदाताओं की संख्या कम हो गई है. राज्य में रक्तदान शिविर लगाने वाले लोगों ने कहा कि सरकार को इसका ऑडिट कराने के लिए भी कहा गया है कि वह आकलन करें कि डोनर कार्ड जब चल रहे थे तो उस वक्त राज्य में हर महीने कितने यूनिट रक्त संग्रहित हो रहा था और डोनर कार्ड बंद होने के बाद कितना यूनिट रक्त संग्रहित हो रहा है?

क्या कहना है सिविल सर्जन काः रांची के सिविल सर्जन विनोद प्रसाद ने बताया कि डोनर कार्ड को इसलिए बंद करा दिया गया ताकि डोनर कार्ड के नाम पर रक्त की कालाबाजारी ना हो सके. लेकिन समाज के लिए रक्त संग्रहित करने वाले संगठन के कार्यकर्ताओं का कहना है कि डोनर कार्ड से रक्त की कालाबाजारी नहीं हो रही थी बल्कि स्वास्थ्य विभाग में काम करने वाले अधिकारियों की लापरवाही की वजह से कालाबाजारी के मामले देखने को मिल रहे थे. इधर सिविल सर्जन डॉक्टर विनोद प्रसाद ने कहा कि डोनर कार्ड को फिर से लागू करने के लिए राज्य सरकार के पास प्रस्ताव भेजा गया है.

गौरतलब है कि एक आंकड़े के अनुसार झारखंड में हर वर्ष 3.15 लाख यूनिट रक्त की जरूरत पड़ती है. करीब 2.15 लाख यूनिट तक ही रक्तदान के मध्यम से संग्रहित हो रहा है जो कि आवश्यकता के हिसाब से काफी कम है.

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