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शिक्षा के नाम पर आर्थिक शोषणः फीस के नाम पर निजी स्कूल वसूल रहे मनमानी रकम - झारखंड शिक्षा विभाग

महामारी का दौर है, लोग डरे-सहमे हैं. सरकार और संगठन लोगों को राहत देने की कोशिश में है. ऐसे में कुछ ऐसे संस्थान है, जो इस दौर में भी व्यवसाय कर रहा है और इसपर नकेल लगाने वाला कोई नहीं है. बात रांची के निजी स्कूलों की है, जो फीस के नाम पर अभिभावकों का खून चूस रहे हैं. इस विकट परिस्थिति के दौर में भी निजी स्कूल मनमानी कर रहे हैं. इससे अभिभावक परेशान है और सरकार मौन है.

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स्कूल
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Published : Apr 13, 2021, 3:39 PM IST

Updated : Apr 13, 2021, 7:07 PM IST

रांचीः कोरोना महामारी का दौर है. एक बार फिर हर कोई डरे और सहमे हुए हैं. स्कूली बच्चे भी कोरोना संक्रमित हो रहे हैं. लेकिन निजी स्कूलों का रवैया अब तक नहीं बदला है. शिक्षा व्यवस्था का इतना व्यवसायीकरण होना यह कहीं ना कहीं चिंतित करने वाला है. इस विकट परिस्थिति के दौर में भी निजी स्कूल मनमानी कर रहे हैं. इससे अभिभावक परेशान है और सरकार मौन है.

देखें पूरी खबर

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राजधानी रांची में कई बड़े और नामचीन स्कूल हैं, जो किसी की भी नहीं सुनते हैं. सरकार की ओर से नियम-कानून बनाए जाने के बावजूद ऐसे निजी स्कूल ऐसे सरकारी आदेशों को ताक में रखता है. यह स्कूल अपने हिसाब से फीस वसूलता है. इन स्कूलों में अभिभावक बच्चों का नामांकन तो एनकेन-प्रकारेण करा लेते हैं. बाद में उन्हें कई परेशानियों का सामना आर्थिक रूप से करना पड़ता है.

ऐसे स्कूलों में फीस इतनी हाई होती है कि मध्यम वर्गीय परिवार का कमाई का एक हिस्सा स्कूल में फीस भरने में ही चला जाता है. जूनियर बच्चों के पठन-पाठन में ऐसे स्कूलों में सालाना डेढ़ लाख रुपए तक खर्च करने पड़ते हैं. वहीं सीनियर बच्चों के पीछे यह खर्च डेढ़ लाख से दो लाख रुपए तक हो जाता है. मध्यम वर्गीय परिवार के लिए यह काफी है और वह साल भर स्कूल फीस भरने में ही परेशान रहते हैं.

एडमिशन फॉर्म के साथ शुरू होता है खेल
प्राइवेट स्कूलों में पैसों का खेल एडमिशन के फॉर्म लेने के साथ ही शुरू हो जाता है. फिलहाल प्ले स्कूल में एडमिशन का दौर जारी है. इसके लिए फ्रॉम की कीमत अधिकतर स्कूलों में 500 से 2000 रुपये तक तय किए गए हैं. इसके बाद नामांकन के लिए 50 से 65000 तक लिए जा रहे हैं. कोरोना जैसी विकट परिस्थिति में भी ऐसे प्राइवेट स्कूल अभिभावकों को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. लगातार अभिभावकों की ओर से शिकायतें मिलती है. मामले को लेकर जब ऐसे स्कूल प्रबंधकों की प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की जाती है तो वह कुछ भी कहने से इनकार कर देते हैं.

निजी स्कूलों में एडमिशन चार्ज
अधिकतर निजी स्कूलों में मिनिमम फीस 20 हजार रुपये है और मैक्सिमम 70 हजार तक लिए जा रहे हैं.

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निजी स्कूलों में एडमिशन चार्ज

इसे भी पढ़ें- निबंधन से कतरा रहीं मंदिर समितियां, संपत्ति में घालमेल और अतिक्रमण को बढ़ावा!


शिकायत मिलने के बाद भी नहीं होती कार्रवाई
कई अभिभावक शिक्षा विभाग और संबंधित अधिकारियों को भी शिकायत करते हैं. इन प्राइवेट स्कूलों पर नकेल कसना इनके बस में भी नहीं होता. ऐसे में मनमानी लगातार बढ़ती जाती है. कोरोना की वजह से राज्य के स्कूल 17 मार्च 2020 से ही बंद है. एक बार फिर कोरोना की दूसरी लहर की वजह से स्कूल बंद कर दिए गए हैं और पढ़ाई ऑनलाइन की जा रही है. सबको पता है और जगजाहिर है ऑनलाइन पठन-पाठन किस तरीके से हो रहा है और विद्यार्थियों को इसका कितना फायदा मिल रहा है. इसके बावजूद स्कूलों में अगले शैक्षणिक सत्र में नामांकन की फीस शिक्षण शुल्क वार्षिक फीस समेत तमाम शुल्क अभिभावकों से मांगे जा रहे हैं.

अभिभावकों की ओर से मना किए जाने पर बच्चों का नामांकन तक स्कूल से हटा देने की सीधी चेतावनी दी जा रही है. जब अभिभावक प्राइवेट स्कूल प्रबंधकों से किस मद में कितनी राशि ली जा रही है. इसकी जानकारी लेने करने की कोशिश करते हैं, तब उन्हें स्कूलों की ओर से भी कोई जानकारी मुहैया नहीं कराई जाती है. जबकि यह फीस प्रतिमाह ट्यूशन फीस के अतिरिक्त है.

शिक्षा विभाग की प्रतिक्रिया
मामले को लेकर शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कहीं से भी अगर ऐसी शिकायतें मिलती है तो वैसे ही स्कूलों को चिन्हित किया जाता है, स्कूल प्रबंधक को स्पष्टीकरण भी मांगा जाता है. इसे लेकर विभाग अपने स्तर पर कार्रवाई करती है. अब तक कई शिकायतें मिलने के बाद भी कार्रवाई के नाम पर किसी भी निजी स्कूल से पूछताछ तक नहीं की गई है, जो एक गंभीर विषय है.


इसे भी पढ़ें- केंद्रीय विद्यालय में नामांकन प्रक्रिया शुरू, कोरोना के कारण ऑनलाइन लिए जा रहे आवेदन

शिक्षा विभाग को उठाना होगा ठोस कदम
इस पूरे मामले को लेकर शिक्षा विभाग को एक्टिव होना होगा और संबंधित स्कूलों पर कार्रवाई भी करना होगा. तब जाकर ऐसे निजी स्कूल सरकारी नियम कानून को तवज्जो देंगे, नहीं तो स्थिति दिन-ब-दिन भयावह होती जाएगी और अभिभावकों का आर्थिक दोहन जारी रहेगा.

रांचीः कोरोना महामारी का दौर है. एक बार फिर हर कोई डरे और सहमे हुए हैं. स्कूली बच्चे भी कोरोना संक्रमित हो रहे हैं. लेकिन निजी स्कूलों का रवैया अब तक नहीं बदला है. शिक्षा व्यवस्था का इतना व्यवसायीकरण होना यह कहीं ना कहीं चिंतित करने वाला है. इस विकट परिस्थिति के दौर में भी निजी स्कूल मनमानी कर रहे हैं. इससे अभिभावक परेशान है और सरकार मौन है.

देखें पूरी खबर

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राजधानी रांची में कई बड़े और नामचीन स्कूल हैं, जो किसी की भी नहीं सुनते हैं. सरकार की ओर से नियम-कानून बनाए जाने के बावजूद ऐसे निजी स्कूल ऐसे सरकारी आदेशों को ताक में रखता है. यह स्कूल अपने हिसाब से फीस वसूलता है. इन स्कूलों में अभिभावक बच्चों का नामांकन तो एनकेन-प्रकारेण करा लेते हैं. बाद में उन्हें कई परेशानियों का सामना आर्थिक रूप से करना पड़ता है.

ऐसे स्कूलों में फीस इतनी हाई होती है कि मध्यम वर्गीय परिवार का कमाई का एक हिस्सा स्कूल में फीस भरने में ही चला जाता है. जूनियर बच्चों के पठन-पाठन में ऐसे स्कूलों में सालाना डेढ़ लाख रुपए तक खर्च करने पड़ते हैं. वहीं सीनियर बच्चों के पीछे यह खर्च डेढ़ लाख से दो लाख रुपए तक हो जाता है. मध्यम वर्गीय परिवार के लिए यह काफी है और वह साल भर स्कूल फीस भरने में ही परेशान रहते हैं.

एडमिशन फॉर्म के साथ शुरू होता है खेल
प्राइवेट स्कूलों में पैसों का खेल एडमिशन के फॉर्म लेने के साथ ही शुरू हो जाता है. फिलहाल प्ले स्कूल में एडमिशन का दौर जारी है. इसके लिए फ्रॉम की कीमत अधिकतर स्कूलों में 500 से 2000 रुपये तक तय किए गए हैं. इसके बाद नामांकन के लिए 50 से 65000 तक लिए जा रहे हैं. कोरोना जैसी विकट परिस्थिति में भी ऐसे प्राइवेट स्कूल अभिभावकों को परेशान करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. लगातार अभिभावकों की ओर से शिकायतें मिलती है. मामले को लेकर जब ऐसे स्कूल प्रबंधकों की प्रतिक्रिया लेने की कोशिश की जाती है तो वह कुछ भी कहने से इनकार कर देते हैं.

निजी स्कूलों में एडमिशन चार्ज
अधिकतर निजी स्कूलों में मिनिमम फीस 20 हजार रुपये है और मैक्सिमम 70 हजार तक लिए जा रहे हैं.

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निजी स्कूलों में एडमिशन चार्ज

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शिकायत मिलने के बाद भी नहीं होती कार्रवाई
कई अभिभावक शिक्षा विभाग और संबंधित अधिकारियों को भी शिकायत करते हैं. इन प्राइवेट स्कूलों पर नकेल कसना इनके बस में भी नहीं होता. ऐसे में मनमानी लगातार बढ़ती जाती है. कोरोना की वजह से राज्य के स्कूल 17 मार्च 2020 से ही बंद है. एक बार फिर कोरोना की दूसरी लहर की वजह से स्कूल बंद कर दिए गए हैं और पढ़ाई ऑनलाइन की जा रही है. सबको पता है और जगजाहिर है ऑनलाइन पठन-पाठन किस तरीके से हो रहा है और विद्यार्थियों को इसका कितना फायदा मिल रहा है. इसके बावजूद स्कूलों में अगले शैक्षणिक सत्र में नामांकन की फीस शिक्षण शुल्क वार्षिक फीस समेत तमाम शुल्क अभिभावकों से मांगे जा रहे हैं.

अभिभावकों की ओर से मना किए जाने पर बच्चों का नामांकन तक स्कूल से हटा देने की सीधी चेतावनी दी जा रही है. जब अभिभावक प्राइवेट स्कूल प्रबंधकों से किस मद में कितनी राशि ली जा रही है. इसकी जानकारी लेने करने की कोशिश करते हैं, तब उन्हें स्कूलों की ओर से भी कोई जानकारी मुहैया नहीं कराई जाती है. जबकि यह फीस प्रतिमाह ट्यूशन फीस के अतिरिक्त है.

शिक्षा विभाग की प्रतिक्रिया
मामले को लेकर शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि कहीं से भी अगर ऐसी शिकायतें मिलती है तो वैसे ही स्कूलों को चिन्हित किया जाता है, स्कूल प्रबंधक को स्पष्टीकरण भी मांगा जाता है. इसे लेकर विभाग अपने स्तर पर कार्रवाई करती है. अब तक कई शिकायतें मिलने के बाद भी कार्रवाई के नाम पर किसी भी निजी स्कूल से पूछताछ तक नहीं की गई है, जो एक गंभीर विषय है.


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शिक्षा विभाग को उठाना होगा ठोस कदम
इस पूरे मामले को लेकर शिक्षा विभाग को एक्टिव होना होगा और संबंधित स्कूलों पर कार्रवाई भी करना होगा. तब जाकर ऐसे निजी स्कूल सरकारी नियम कानून को तवज्जो देंगे, नहीं तो स्थिति दिन-ब-दिन भयावह होती जाएगी और अभिभावकों का आर्थिक दोहन जारी रहेगा.

Last Updated : Apr 13, 2021, 7:07 PM IST
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