रांची: कोरोना के इस भयावह दौर में लगातार ऐसी खबरें आ रही हैं कि निजी अस्पताल कोरोना मरीजों से ज्यादा फीस वसूल रहे हैं. ऐसी स्थिति तब है जब सरकार ने बकायदा जिलों को ग्रेड के हिसाब से बांट दिया है और अस्पतालों के हिसाब से रेट तय कर दिया गया है. सरकार का सख्त निर्देश भी है कि ऐसे अस्पताल जो तय रेट से ज्यादा फीस लेंगे उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी. इन सबके बावजूद निजी अस्पताल कोई न कोई हथकंडा अपनाकर लाखों का बिल बनाने से नहीं चूक रहे. कुछ जगहों से ऐसी बातें भी सामने आई कि कोरोना मरीजों की मौत होने के बाद अस्पताल प्रबंधन ने शव को तब तक रोके रखा जब तक परिजनों ने पूरा पैसा जमा नहीं कर दिया.
थमा रहे लाखों का बिल
पिछले दिनों कोकर के शैम्फोर्ड अस्पताल ने एक कोरोना मरीज के 6 दिनों के इलाज का बिल डेढ़ लाख रुपए बना दिया. रातू रोड के प्रॉमिस हेल्थ ने 8 दिनों में 2 लाख 77 हजार का बिल बना दिया. अगर ए ग्रेड जिले और क्रिटिकल केस के हिसाब से भी देखें तो इतना बिल नहीं बनना चाहिए. सरकार का सख्त निर्देश है कि किसी कोरोना मरीज की मौत होने पर उसका शव नहीं रोका जा सकता है. लेकिन सरकार के आदेशों की धज्जियां उड़ाई जा रही है. 2 दिन पहले ही एक शव को अस्पताल प्रबंधन द्वारा रखे जाने की शिकायत मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को मिली तो ट्विटर पर ही उनके निर्देश के बाद अस्पताल में परिजनों और प्रबंधन के बीच सुलह हुआ.
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नियमों का सख्ती से पालन जरूरी
रांची के जगरनाथ अस्पताल में कोरोना के चलते अपने मित्र को खो चुके संजय कहते हैं कि उनका दोस्त 20 अप्रैल से ही अस्पताल में भर्ती था लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका. ऐसे वक्त में अस्पताल प्रबंधन की तरफ से अनाप-शनाप बिल थमाने की वजह से लोग काफी परेशान हैं. सरकार ने आर्थिक दोहन रोकने के लिए जो नियम बनाये हैं उसे कठोरता से लागू करना चाहिए.
निजी अस्पतालों में ज्यादा मरीज भर्ती, नहीं उठा सकते कठोर कदम
रांची सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ. अनिल कई अस्पताल जाकर ज्यादा बिल की वजह से उपजे विवाद को सुलझाया है. डॉ. अनिल कहते हैं कि वह बीच का हल निकालने की कोशिश करते हैं. सिविल सर्जन डॉ. विनोद कुमार ने कहा कि कई बार शिकायतें मिलती है तो कार्रवाई करते हैं लेकिन, ज्यादातर मामले में कोई लिखित शिकायत नहीं करता. दूसरी बात यह कि निजी अस्पतालों में भी बड़ी संख्या में मरीज भर्ती हैं. ऐसे में ज्यादा कठोर कदम भी नहीं उठा सकते हैं.
आरटीपीसीआर के लिए भी रेट तय, लेकन सर्विस चार्ज के नाम पर ज्यादा वसूली
सरकार ने कोरोना जांच के लिए निजी लैब को भी अनुमति दी है लेकिन वहां भी ज्यादा पैसा वसूला जा रहा है. आरटीपीसीआर जांच के लिए लैब में जाने पर 400 रुपए और घर जाकर सैंपल लेने पर 600 रुपये अधिकतम निर्धारित है. लेकिन लैब में जाने पर 600 रुपए और घर जाकर सैंपल लेने पर 700-800 रुपये प्रति व्यक्ति वसूली की जाती है. लोग जब इसका कारण पूछते हैं तो यह बताया जाता है कि सर्विस चार्ज की वजह से रेट ज्यादा है. मजबूरी के कारण कोई विरोध नहीं करना चाहता.
तीन ग्रेड में बांटे गए सभी जिले
झारखंड सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में कोरोना मरीजों के इलाज के लिए राज्य के सभी जिलों को तीन ग्रेड में बांटा था. रांची, पूर्वी सिंहभूम, धनबाद और बोकारो ए ग्रेड में हैं. हजारीबाग, देवघर, सरायकेला, रामगढ़ और गिरिडीह बी ग्रेड में हैं. इसके अलावा चतरा, दुमका, गढ़वा, गोड्डा, गुमला, जामताड़ा, खूंटी, कोडरमा, लातेहार, पाकुड़, साहिबगंज, सिमडेगा और पश्चिमी सिंहभूम को सी ग्रेड में रखा गया है. सभी जिलों के प्राइवेट अस्पतालों के NABH यानि नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड फॉर हॉस्पिटल्स एंड हेल्थकेयर प्रोवाइडर्स से मान्यता प्राप्त हिसाब से बांटा गया है. पहला NABH और दूसरा NON NABH.
सभी अस्पतालों के रेट
ए ग्रेड जिलों में एनएबीएच से मान्य अस्पतालों में मॉडरेट मरीजों के लिए 8,000, सीवियर के लिए 10,000 और क्रिटिकल के लिए 12,000 रेट तय किए गए हैं. वहीं नॉन एनएबीएच अस्पतालों में मॉडरेट मरीजों के लिए 7,500, सीवियर के लिए 9,000 और क्रिटिकल के लिए 11,500 रुपए रेट तय किए हैं.
बी ग्रेड जिलों में एनएबीएच से मान्य अस्पतालों में मॉडरेट मरीजों के लिए 7,000, सीवियर के लिए 8,500 और क्रिटिकल के लिए 11,000 रेट तय किए गए हैं. वहीं नॉन एनएबीएच अस्पतालों में मॉडरेट मरीजों के लिए 6,500 सीवियर के लिए 8,000 और क्रिटिकल के लिए 10,500 रुपए रेट तय किए हैं.
सी ग्रेड जिलों में एनएबीएच से मान्य अस्पतालों में मॉडरेट मरीजों के लिए 6,000, सीवियर के लिए 8,000 और क्रिटिकल के लिए 10,500 रेट तय किए गए हैं. वहीं नॉन एनएबीएच अस्पतालों में मॉडरेट मरीजों के लिए 5,000 सीवियर के लिए 7,000 और क्रिटिकल के लिए 9,000 रुपए रेट तय किए हैं.