रांचीः 24 से 26 मई तक राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू झारखंड प्रवास पर रहीं. अपने तीन दिवसीय दौरे में राष्ट्रपति कई कार्यक्रमों में शामिल हुईं. अपने प्रवास के अंतिम दिन इस धरती से विदा लेते हुए राजभवन के विजिटर बुक में अपनी भावनाएं प्रकट कीं.
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रांची में राजभवन से राष्ट्रपति भवन (नई दिल्ली) रवाना होने से पहले विजिटर बुक में अपने अनुभव साझा करने की पुरानी परिपाटी है. जिसका निर्वहन करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने लिखा कि राजभवन के सुंदर परिसर में आकर मुझे बहुत प्रसन्नता का अनुभव हो रहा है. उन्होंने विजिटर बुक में लिखा है कि यहां पर प्रवेश करते ही इस भवन में बिताए छह वर्षों की मधुर स्मृतियां फिर से जीवंत हो गईं.
इसके साथ ही राष्ट्रपति ने आगे लिखा कि मैं झारखंड के राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन और यहां के लोगों को मेरे स्नेहपूर्ण आतिथ्य के लिए हृदय से धन्यवाद देती हूं. यहां की टीम के सभी सदस्यों और कर्मचारियों की सराहना करती हूं. इनसे मिलकर मुझे ऐसा लगा कि मैं अपने घर वापस आयी हूं. उन सभी के उज्ज्वल भविष्य के लिए मेरी बहुत-बहुत शुभकामनाएं हैं.
राजभवन के विजिटर बुक के अलावा राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने ट्विटर हैंडल पर भी झारखंड दौरे को लेकर भावनात्मक ट्वीट किया है. इसके अलावा उन्होंने एक श्लोक को भी अपने पोस्ट में समाहित करते हुए भगवान बिरसा मुंडा की पावन धरती झारखंड की भूरी-भूरी प्रशंसा की है.
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वर्तमान झारखंड राज्य का अस्तित्व भले ही ज्यादा पुराना नहीं हो, लेकिन प्राचीन काल से ही, इस क्षेत्र की अलग पहचान रही है। भारतीय परंपरा में एक श्लोक उपलब्ध है, जो इस प्रकार है:
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शाल-पत्रे च भोजनम्
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झारखंड क्षेत्र में… pic.twitter.com/ti2mEmJkvJवर्तमान झारखंड राज्य का अस्तित्व भले ही ज्यादा पुराना नहीं हो, लेकिन प्राचीन काल से ही, इस क्षेत्र की अलग पहचान रही है। भारतीय परंपरा में एक श्लोक उपलब्ध है, जो इस प्रकार है:
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अयस्क-पात्रे पय: पानम्
शाल-पत्रे च भोजनम्
शयनम् खर्जूरी पत्रे
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राष्ट्रपति का ट्वीटः 'वर्तमान झारखंड राज्य का अस्तित्व भले ही ज्यादा पुराना नहीं हो, लेकिन प्राचीन काल से ही, इस क्षेत्र की अलग पहचान रही है. भारतीय परंपरा में एक श्लोक उपलब्ध है, जो इस प्रकार है: अयस्क-पात्रे पय: पानम्, शाल-पत्रे च भोजनम्, शयनम् खर्जूरी पत्रे, झारखण्डे विधीयते. इसका तात्पर्य यह है कि झारखंड क्षेत्र में रहने वाले लोग, लोहे के बर्तन में पानी पीते हैं, साल के पत्ते पर भोजन करते हैं और खजूर के पत्तों पर सोते हैं'.