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मुख्यमंत्री प्रश्नकाल को हटाने की तैयारी! बीजेपी-कांग्रेस ने बताया अधिकारों का हनन

झारखंड विधानसभा में कार्यवाही के दौरान मुख्यमंत्री प्रश्नकाल को हटाने की तैयारी चल रही है. बीजेपी कांग्रेस सहित कई विधायकों ने इसका विरोध किया है. इनका कहना है कि यह अधिकारों का हनन है.

Preparations to remove Chief Minister Question Hour in Jharkhand Legislative Assembly
Preparations to remove Chief Minister Question Hour in Jharkhand Legislative Assembly
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Published : Mar 8, 2022, 10:35 PM IST

रांची: झारखंड विधानसभा की कार्यसंचालन नियमावली से मुख्यमंत्री प्रश्नकाल को हटाने की तैयारी चल रही है. विधानसभा की नियम समिति की बैठक में कार्यसंचालन नियमावली की धारा 52 को विलोपित करने पर सहमति बनी है. स्पीकर की अध्यक्षता में समिति की बैठक हुई है. साथ ही धारा 304(2) के तहत हर दिन शून्यकाल की सूचना को 15 से बढ़ाकर 25 करने पर भी फैसला हुआ है. इसके साथ धारा 34(3) के तहत सत्र के दौरान अल्पसूचित प्रश्न को 14 दिन पहले सभा सचिवालय में जमा करने को भी विलोपित किया जायगा. नियम समिति के सदस्य और झामुमो विधायक दीपक बिरुआ ने समिति की अनुशंसा को मंगलवार को सदन पटल पर रखा. इसपर स्पीकर ने यह नियमन दिया कि समिति की अनुशंसा पर सभी विधायक 14 मार्च तक संसोधन दे सकते हैं.

ये भी पढ़ें- दलबदल मामले में स्पीकर नहीं ले सकेंगे स्वत: संज्ञान, आम लोगों को मिलेगा अधिकार

झामुमो विधायक दीपक बिरुआ ने बताया कि स्पीकर की अध्यक्षता में सम्पन्न नियम समिति की बैठक में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित हुआ है. उन्होंने कहा कि समिति में इस बात पर चर्चा हुई कि जब मुख्यमंत्री कार्यवाही के दौरान सदन में उपस्थित रहते हैं तो फिर अलग से मुख्यमंत्री प्रश्नकाल का कोई औचित्य नहीं बनता. दरअसल, इसी सत्र में अब तक हुए प्रश्नकाल के दौरान कई प्रश्न नीतिगत नहीं थे. लिहाजा आधे घंटे के इस समय का उपयोग दूसरे काम में किया जा सकता है. समिति में इस बात पर भी चर्चा हुई की ज्यादातर विधानसभा में मुख्यमंत्री प्रश्नकाल नहीं होता है.

कब शुरू हुई थी मुख्यमंत्री प्रश्नकाल की व्यवस्था: झारखंड विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी के समय झारखंड विधानसभा कार्यसंचालन नियमावली बनी थी. उस वक्त मध्यप्रदेश विधानसभा के प्रधान सचिव डॉ आनंद पयासी का नियमावली बनाने में सहयोग लिया गया था. झारखंड विधानसभा से उदयभान सिंह और मधुकर भारद्वाज ने नियमावली तैयार करने में डॉ पयासी का सहयोग किया था. इसे तैयार होने में करीब एक महीने का समय लगा था. इस दौरान लोकसभा सहित कई राज्यों की विधानसभा नियमावली का भी अध्ययन किया गया था. नियमावली बनने के बाद से हर सत्र में सोमवार को 12:00 से 12:30 बजे तक मुख्यमंत्री प्रश्नकाल की व्यवस्था चलती आ रही है. हालांकि वर्तमान विधानसभा के कई क्षेत्रों में मुख्यमंत्री प्रश्नकाल नहीं आया था. इसको लेकर विपक्ष ने हंगामा भी किया था.

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मुख्यमंत्री प्रश्नकाल हटाने पर विरोध: झारखंड विधानसभा की कार्यसंचालन नियमावली से मुख्यमंत्री प्रश्नकाल हटाने के प्रस्ताव का सत्तारूढ़ दल कांग्रेस, प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा और भाकपा माले ने विरोध किया है. कांग्रेस विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री प्रश्नकाल नहीं हटना चाहिए. उन्होंने कहा कि नीतिगत मामले पर मुख्यमंत्री से सीधे प्रश्न करने का यह मंच है. कांग्रेस विधायक ममता देवी, अनूप सिंह और बंधु तिर्की ने भी इसका विरोध किया है. वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के विधायकों ने भी इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा है कि यह विधायकों के अधिकार को छीनने जैसा कदम है. ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए. भाकपा माले विधायक विनोद कुमार सिंह ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया है और अपना संशोधन बुधवार को स्पीकर को देने की बात कही है. ज्यादातर विधायकों का कहना है कि अगर दूसरे राज्यों के नियमावली में यह व्यवस्था नहीं है इसका मतलब यह नहीं हो सकता कि अच्छी चीजों को अपनी नियमावली से हटा दिया जाए.

रांची: झारखंड विधानसभा की कार्यसंचालन नियमावली से मुख्यमंत्री प्रश्नकाल को हटाने की तैयारी चल रही है. विधानसभा की नियम समिति की बैठक में कार्यसंचालन नियमावली की धारा 52 को विलोपित करने पर सहमति बनी है. स्पीकर की अध्यक्षता में समिति की बैठक हुई है. साथ ही धारा 304(2) के तहत हर दिन शून्यकाल की सूचना को 15 से बढ़ाकर 25 करने पर भी फैसला हुआ है. इसके साथ धारा 34(3) के तहत सत्र के दौरान अल्पसूचित प्रश्न को 14 दिन पहले सभा सचिवालय में जमा करने को भी विलोपित किया जायगा. नियम समिति के सदस्य और झामुमो विधायक दीपक बिरुआ ने समिति की अनुशंसा को मंगलवार को सदन पटल पर रखा. इसपर स्पीकर ने यह नियमन दिया कि समिति की अनुशंसा पर सभी विधायक 14 मार्च तक संसोधन दे सकते हैं.

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झामुमो विधायक दीपक बिरुआ ने बताया कि स्पीकर की अध्यक्षता में सम्पन्न नियम समिति की बैठक में सर्वसम्मति से यह प्रस्ताव पारित हुआ है. उन्होंने कहा कि समिति में इस बात पर चर्चा हुई कि जब मुख्यमंत्री कार्यवाही के दौरान सदन में उपस्थित रहते हैं तो फिर अलग से मुख्यमंत्री प्रश्नकाल का कोई औचित्य नहीं बनता. दरअसल, इसी सत्र में अब तक हुए प्रश्नकाल के दौरान कई प्रश्न नीतिगत नहीं थे. लिहाजा आधे घंटे के इस समय का उपयोग दूसरे काम में किया जा सकता है. समिति में इस बात पर भी चर्चा हुई की ज्यादातर विधानसभा में मुख्यमंत्री प्रश्नकाल नहीं होता है.

कब शुरू हुई थी मुख्यमंत्री प्रश्नकाल की व्यवस्था: झारखंड विधानसभा के प्रथम अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी के समय झारखंड विधानसभा कार्यसंचालन नियमावली बनी थी. उस वक्त मध्यप्रदेश विधानसभा के प्रधान सचिव डॉ आनंद पयासी का नियमावली बनाने में सहयोग लिया गया था. झारखंड विधानसभा से उदयभान सिंह और मधुकर भारद्वाज ने नियमावली तैयार करने में डॉ पयासी का सहयोग किया था. इसे तैयार होने में करीब एक महीने का समय लगा था. इस दौरान लोकसभा सहित कई राज्यों की विधानसभा नियमावली का भी अध्ययन किया गया था. नियमावली बनने के बाद से हर सत्र में सोमवार को 12:00 से 12:30 बजे तक मुख्यमंत्री प्रश्नकाल की व्यवस्था चलती आ रही है. हालांकि वर्तमान विधानसभा के कई क्षेत्रों में मुख्यमंत्री प्रश्नकाल नहीं आया था. इसको लेकर विपक्ष ने हंगामा भी किया था.

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मुख्यमंत्री प्रश्नकाल हटाने पर विरोध: झारखंड विधानसभा की कार्यसंचालन नियमावली से मुख्यमंत्री प्रश्नकाल हटाने के प्रस्ताव का सत्तारूढ़ दल कांग्रेस, प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा और भाकपा माले ने विरोध किया है. कांग्रेस विधायक पूर्णिमा नीरज सिंह ने कहा कि मुख्यमंत्री प्रश्नकाल नहीं हटना चाहिए. उन्होंने कहा कि नीतिगत मामले पर मुख्यमंत्री से सीधे प्रश्न करने का यह मंच है. कांग्रेस विधायक ममता देवी, अनूप सिंह और बंधु तिर्की ने भी इसका विरोध किया है. वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के विधायकों ने भी इस प्रस्ताव का विरोध करते हुए कहा है कि यह विधायकों के अधिकार को छीनने जैसा कदम है. ऐसा बिलकुल नहीं होना चाहिए. भाकपा माले विधायक विनोद कुमार सिंह ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया है और अपना संशोधन बुधवार को स्पीकर को देने की बात कही है. ज्यादातर विधायकों का कहना है कि अगर दूसरे राज्यों के नियमावली में यह व्यवस्था नहीं है इसका मतलब यह नहीं हो सकता कि अच्छी चीजों को अपनी नियमावली से हटा दिया जाए.

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