रांचीः झारखंड में पंचायत चुनाव भले ही दलगत आधार पर नहीं हो रहा है. लेकिन राजनीतिक दलों की तैयारी व्यापक नजर आ रही है और वो पूरी ताकत झोंक रहे हैं. राजनीतिक दल से ताल्लुक रखने वाले नेता और कार्यकर्ता चुनावी मैदान में ताल ठोंकते नजर आ रहे हैं. राज्य में कोरोना का कहर जैसे ही थमा पंचायत चुनाव का बिगुल बज गया, 4 चरणों में चुनाव होना है. जिसको लेकर लोग पर्चा दाखिल कर जोर-आजमाइश में जुट गए हैं. हरेक पद के उम्मीदवारों द्वारा विकास के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं.
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राज्य में पंचायत चुनाव भले ही दलगत आधार पर नहीं हो रहा है बावजूद इसके सभी राजनीतिक दलों की नजर इस चुनाव पर है. पंचायत चुनाव में राजनीतिक दल मैदान में नहीं कूद पाएंगे और ना ही पार्टी के समर्थित प्रत्याशी के पक्ष में प्रचार प्रसार कर पाएंगे. बावजूद इसके पार्टी के समर्थित उम्मीदवार पूरे दमखम के साथ ताल ठोंकने को तैयार हैं. सत्ताधारी दल के कांग्रेस और आरजेडी नेताओं का कहना है कि ग्रासरूट तक उनकी पकड़ है. ऐसे में निश्चित तौर पर कार्यकर्ता और पार्टी से समर्थित लोग जीत आएंगे ऐसा पार्टी का दिशा निर्देश है. इस दिशा निर्देश का कार्यकर्ता पालन कर रहे हैं.
वहीं भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि सरकार ने पहले ही ओबीसी आरक्षण को पंचायत चुनाव से समाप्त कर ओबीसी को छलने का काम किया है. ऐसे में निश्चित तौर पर चुनाव का परिणाम राष्ट्रवादी विचारधारा रखने वाले प्रत्याशियों की जीत होगी ऐसी पार्टी का उम्मीद है. पंचायत चुनाव के जरिए सभी राजनीतिक दल अपनी मजबूती का दम भर रही है, ग्रासरूट पर पार्टी कितना मजबूत है, इस पर सभी की नजरें हैं. भले ही खुलकर कोई भी राजनीतिक दल प्रत्याशी नहीं उतार रही है. लेकिन सभी राजनीतिक दल जीत के दावे जरूर कर रही है.