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स्थानीय नीति की समीक्षा के लिए मंत्रिमंडल उपसमिति बनाने का सरकार का निर्णय, ये महज आई वाश है- सीपी सिंह - Ranchi news

झारखंड में स्थानीय नीति की समीक्षा को लेकर बन रही मंत्रिमंडल उपसमिति को लेकर राजनीति शुरु हो गयी है. कमिटी अभी बनी भी नहीं है लेकिन इसको लेकर विपक्ष ने सरकार पर प्रहार शुरू कर दिया है.

Politics regarding cabinet subcommittee being formed to review local policy in Jharkhand
रांची
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Published : Jul 31, 2022, 1:37 PM IST

रांचीः 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति की मांग जोर पकड़ता देख सरकार ने स्थानीय नीति की समीक्षा के लिए मंत्रिमंडल उपसमिति बनाने का निर्णय लिया है. इसके तहत 1932 के खतियान या अंतिम सर्वे के आधार पर स्थानीय नीति लागू करने संबंधी बिंदुओं पर उपसमिति रिपोर्ट देगी. सरकार के इस निर्णय विपक्ष हमलावर हो गयी है.

इसे भी पढ़ें- झारखंड में जारी है स्थानीय नीति पर सियासत, जानिए 1932 के खतियान को लेकर कहां फंसा है पेंच


स्थानीयता का मुद्दा झारखंड में हमेशा छाया रहा है. रघुवर सरकार में बनी स्थानीय नियोजन नीति को वर्तमान हेमंत सरकार ने रद्द कर नये सिरे से स्थानीय नीति बनाने की घोषणा तो कर दी मगर यह उनके गले की हड्डी बन गई है. 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति की मांग जोर पकड़ता देख सरकार ने स्थानीय नीति की समीक्षा के लिए मंत्रिमंडल उपसमिति के गठन का निर्णय लिया है. इसके तहत 1932 के खतियान या अंतिम सर्वे के आधार पर स्थानीय नीति लागू करने संबंधी बिंदुओं पर उप समिति रिपोर्ट देगी. विधानसभा में सरकार ने इस संबंध में एक्शन टेकन रिपोर्ट पेश किया है. संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम ने कहा है कि सरकार इस संदर्भ में गंभीर है और सरकार इस मामले में जल्द ही ठोस निर्णय लेगी.

देखें पूरी खबर

सरकार का यह कदम महज ऑइ वाश-सीपी सिंहः पूर्व स्पीकर और भारतीय जनता पार्टी के विधायक सीपी सिंह ने सरकार के इस कदम की आलोचना करते हुए कहा है कि स्थानीयता के मुद्दे पर उपसमिति का गठन की तैयारी महज आई वाश है. उन्होंने कहा कि समितियां बनती हैं, रिपोर्ट देती हैं और वो धूल फांकती रहती हैं. वास्तविकता यह है कि सरकार पसोपेश में है और इसके पीछे कारण यह है कि झारखंड के मूलवासी और बाहर के वैसे लोग जो लंबे समय से कार्यरत हैं इन दोनों वर्गों को सरकार खुश रखना चाहती है. इसी पसोपेश में कोई रास्ता नहीं निकल रहा है और टाइम पास सरकार कर रही है. ऐसे में सरकार की मंशा है ही नहीं कि स्थानीय नीति कोई बन पाए.

विधानसभा में होता रहा है हंगामाः स्थानीय नीति को लेकर विधानसभा में हंगामा होता रहा है. सत्तारूढ़ दल के लोबिन हेंब्रम जैसे विधायक इसको लेकर मुखर होते रहे हैं. एक बार फिर मानसून सत्र का आगाज हो चुका है. सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती है कि इस मुद्दे पर विपक्ष के साथ साथ सत्तारूढ़ के विधायक को कैसे संतुष्ट कर पाती है.

रांचीः 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति की मांग जोर पकड़ता देख सरकार ने स्थानीय नीति की समीक्षा के लिए मंत्रिमंडल उपसमिति बनाने का निर्णय लिया है. इसके तहत 1932 के खतियान या अंतिम सर्वे के आधार पर स्थानीय नीति लागू करने संबंधी बिंदुओं पर उपसमिति रिपोर्ट देगी. सरकार के इस निर्णय विपक्ष हमलावर हो गयी है.

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स्थानीयता का मुद्दा झारखंड में हमेशा छाया रहा है. रघुवर सरकार में बनी स्थानीय नियोजन नीति को वर्तमान हेमंत सरकार ने रद्द कर नये सिरे से स्थानीय नीति बनाने की घोषणा तो कर दी मगर यह उनके गले की हड्डी बन गई है. 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति की मांग जोर पकड़ता देख सरकार ने स्थानीय नीति की समीक्षा के लिए मंत्रिमंडल उपसमिति के गठन का निर्णय लिया है. इसके तहत 1932 के खतियान या अंतिम सर्वे के आधार पर स्थानीय नीति लागू करने संबंधी बिंदुओं पर उप समिति रिपोर्ट देगी. विधानसभा में सरकार ने इस संबंध में एक्शन टेकन रिपोर्ट पेश किया है. संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम ने कहा है कि सरकार इस संदर्भ में गंभीर है और सरकार इस मामले में जल्द ही ठोस निर्णय लेगी.

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सरकार का यह कदम महज ऑइ वाश-सीपी सिंहः पूर्व स्पीकर और भारतीय जनता पार्टी के विधायक सीपी सिंह ने सरकार के इस कदम की आलोचना करते हुए कहा है कि स्थानीयता के मुद्दे पर उपसमिति का गठन की तैयारी महज आई वाश है. उन्होंने कहा कि समितियां बनती हैं, रिपोर्ट देती हैं और वो धूल फांकती रहती हैं. वास्तविकता यह है कि सरकार पसोपेश में है और इसके पीछे कारण यह है कि झारखंड के मूलवासी और बाहर के वैसे लोग जो लंबे समय से कार्यरत हैं इन दोनों वर्गों को सरकार खुश रखना चाहती है. इसी पसोपेश में कोई रास्ता नहीं निकल रहा है और टाइम पास सरकार कर रही है. ऐसे में सरकार की मंशा है ही नहीं कि स्थानीय नीति कोई बन पाए.

विधानसभा में होता रहा है हंगामाः स्थानीय नीति को लेकर विधानसभा में हंगामा होता रहा है. सत्तारूढ़ दल के लोबिन हेंब्रम जैसे विधायक इसको लेकर मुखर होते रहे हैं. एक बार फिर मानसून सत्र का आगाज हो चुका है. सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती है कि इस मुद्दे पर विपक्ष के साथ साथ सत्तारूढ़ के विधायक को कैसे संतुष्ट कर पाती है.

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