रांची: झारखंड के राज्य बनने से आदिवासी समाज को काफी फायदा हुआ है. इसका असर भी दिखता है. 21 वर्षों में इस राज्य ने 11 मुख्यमंत्री देखे. इनमें 10 लोग आदिवासी समाज से थे. आज भी इस प्रदेश की राजनीति आदिवासियों के ईर्द-गिर्द ही घूमती रहती है. विधानसभा की 28 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं, जो सभी सरकारों की सेहत तय करते हैं. लेकिन जब इस समाज के उत्थान की बात होती है तो विवाद को एंट्री करते देर नहीं लगती. इसी का नतीजा है कि रांची के सिलागांई में एकलव्य मॉडल स्कूल नहीं बन पाया. स्कूल के बनने से 480 आदिवासी छात्र-छात्राओं को सीधा लाभ होता. इसे नहीं बनने देने के पीछे दलील बस इतनी सी थी कि स्कूल बनने से शहीद वीर बुधु भगत का स्मारक स्थल प्रभावित होगा. यही वजह रही कि स्मारक स्थल के पास चिन्हित 20 एकड़ भूमि पर बाउंड्री वॉल खड़ा करते ही विवाद शुरू हो गया.
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ग्रामीणों के एक गुट ने बाउंड्री वॉल को ढाह दिया. निर्माण कार्य में लगी मशीन फूंक दी. कुछ लोग उत्पात मचाते रहे और पुलिस मूकदर्शन बनी रही. इसपर खूब राजनीति हुई. स्थानीय विधायक रहे बंधु तिर्की भी विरोध करने वालों के साथ खड़े हो गये. वहीं, शहीद के वंशज शिवपूजन भगत कहते रह गए कि स्मारक समिति की पहल पर ही स्कूल खोले जाने का रास्ता खुला था, जो कुछ लोगों को नहीं पचा. अब यह प्रोजेक्ट बीजूपाड़ा के बरहे गांव में शिफ्ट हो गया है. वहां 15 एकड़ भूमि आवंटित भी हो चुकी है. यहां के गांव वाले इस प्रजेक्ट से बेहद खुश हैं.
जानकारों का कहना है कि चंद लोग अपने स्वार्थ की खातीर आदिवासियों की भावना से खेल गये. ऐसा जहर घोला कि प्रोजेक्ट को शिफ्ट करना पड़ गया. 24 अगस्त 2021 को ही यह बात स्पष्ट हो गई थी कि सिलागांई में स्कूल बनवाना आसान नहीं होगा. क्योंकि उस दिन जब आदिवासी मामलों के केंद्रीय मंत्री सह झारखंड के पूर्व सीएम अर्जुन मुंडा शिलान्यास करने गये थे, उसी वक्त ग्रामीणों ने विरोध कर मंशा जाहिर कर दी थी.
अब एक नया मामला सामने आया है. राजधानी के सिरमटोली सरना स्थल से जुड़ा है. इसबार विरोध करने वाले और कोई नहीं बल्कि खुद आदिवासी मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा है. उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पत्र लिखा है. उनका कहना है कि सरना स्थल पर पांच मंजिला संरचना तैयार करना आदिवासी धर्म और संस्कृति के खिलाफ है. यह पूजा स्थल एमएस खतियान में प्लॉट नंबर 1096 पर है, जिसपर मंगल पाहन का स्वामित्व है. फिर भी कल्याण विभाग ने उनकी अनुमति के बगैर प्रस्ताव तैयार कर दिया. इसपर मुख्यमंत्री का स्टैंड कुछ और ही है. उनका कहना है कि 5 करोड़ की लागत से न सिर्फ सौदर्यीकरण होगा बल्कि सरना स्थल परिसर में तमाम सुविधाएं भी मुहैया करायी जाएंगी ताकि श्रद्धालुओं को कोई परेशानी ने झेलनी पड़े. इसपर राजनीति के जानकारों का कहना है कि अगर सौंदर्यीकरण प्रोजेक्ट से सिरमटोली सरना स्थल का मौलिक स्वरूप प्रभावित होता है तो इसपर सरकार को जरूर विचार करना चाहिए. दूसरी तरफ यह भी कहा जा रहा है कि अगर केंद्रीय मंत्री को सरना स्थल के स्वरूप की फिक्र है तो सीएम के नाम खुली चिट्ठी जारी करने के बजाए उनसे मिलकर बात रखना चाहिए था.