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Municipal Elections In Jharkhand: रांची मेयर आरक्षण पर फंस गए सभी दल, बोलकर कोई नहीं लेना चाहता चुनावी जोखिम

रांची मेयर आरक्षण ने राजनीतिक दलों को फंसा दिया (Ranchi Mayor Reservation) है. रांची मेयर पद आदिवासी की जगह एससी को आरक्षित किए जाने पर दलों के पास आगे कुआं, पीछे खाईं वाली स्थिति हो गई है. इससे तमाम लोग प्रभावित हो रहे हैं, लेकिन कोई खुलकर बोलना नहीं चाह रहा है.

Ranchi mayor reservation
रांची मेयर पद आरक्षण पर दलों की राय
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Published : Nov 21, 2022, 9:45 PM IST

रांचीः झारखंड में नगर निकाय चुनाव (Municipal Elections In Jharkhand) को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग की डुगडुगी बजने से पहले ही रांची महापौर सीट आरक्षण को लेकर (Ranchi Mayor Reservation) राजनीति तेज हो गई है. इसके एससी के लिए आरक्षण को लेकर सभी दल दूसरे पर ठीकरा फोड़ रहे हैं. कोई इसे भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में लिए गए फैसले का परिणाम बता रहा है तो कोई मिल बैठकर समस्या का समाधान निकालने की बात कर रहा है.

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जेएमएम बोली-रांची मेयर पद आरक्षण भाजपा की देनः राज्य की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा ने रांची मेयर पद अनुसूचित जनजाति की जगह अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व किए जाने का ठीकरा भारतीय जनता पार्टी पर फोड़ा है. जेएमएम नेता सुप्रियो भट्टाचार्य का कहना है कि आरक्षण के रोस्टर वाली नियमावली भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में बनी है, जिसकी वजह से शेड्यूल एरिया में होते हुए भी रांची के महापौर का पद इस बार आदिवासियों की जगह दलितों के लिए आरक्षित हो गया है और उसका खमियाजा भाजपा को ही भुगतना पड़ रहा है.

देखें क्या कहते हैं नेता

झामुमो नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि बातचीत कर कोई रास्ता निकाला जाएगा, क्योंकि 5th शेड्यूल में रांची के मेयर का पद अनुसूचित जाति के लिए होना था परंतु भाजपा की बनाई गलत नियमावली से ऐसा हुआ है. सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि मूलभूत समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए भाजपा इस तरह के काम करती रहती है और रोटेशन नियमावली भी उसी की देन है.


दुविधा में कांग्रेसः वहीं कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने इस मुद्दे पर मोर्चा खोल दिया है. इधर, झारखंड कांग्रेस खुलकर बोलने की स्थिति में नहीं है. इसकी वजह यह है कि पार्टी कोई ऐसा बयान नहीं देना चाहती जिससे अनुसूचित जनजाति के साथ साथ अनुसूचित जाति के लोगों के बीच कोई गलत मैसेज चला जाए. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राकेश सिन्हा कहते हैं कि पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की को आदिवासी संगठनों ने ज्ञापन दिया था जिसके बाद उन्होंने आदिवासियों के दिल की बात कही थी. रांची मेयर को लेकर पार्टी का रुख क्या होगा इसका फैसला आपस मे बैठकर तय कर लिया जाएगा. राकेश सिन्हा ने कहा कि यह आयोग का मामला है, इसलिए बृहद चर्चा के बाद निष्कर्ष पर पहुंचा जाएगा.



भाजपा के SC विधायक भी बोलने से कतरा रहेः दरअसल, रांची मेयर का पद अभी भाजपा नेता के पास ही है. इसलीए यह पद पूर्व की तरह आदिवासी महिला के लिए ही रिजर्व रहना चाहिए या दलितों को भी रोटेशन के आधार पर मेयर बनने का मौका मिलना चाहिए, इस पर भारतीय जनता पार्टी के नेता विधायक भी दुविधा में हैं. यही वजह है कि झारखंड भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता हों या विधायक, प्रदेश अध्यक्ष तक खुलकर कुछ बोल नहीं रहे हैं. कांके की अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सीट से विधायक समरीलाल कहते हैं कि वह इस पर बयान देने के लिए अधिकृत नहीं है. इसका जवाब बड़े नेता और प्रवक्ता ही देंगे.



राज्य में बड़ी संख्या है SC-ST कीः रांची मेयर पद के रोस्टर आधारित आरक्षण को लेकर राजनीतिक दलों की दुविधा वोट बैंक की राजनीति है. कोई यह नहीं चाहता कि SC और ST में से किसी में यह संदेश जाए कि कोई भी दल किसी का समर्थन या किसी का विरोध कर रही है. क्योंकि राज्य में जहां 70 लाख से अधिक की आबादी आदिवासियों की है तो दलितों की आबादी भी 40 लाख से ज्यादा है.

रांचीः झारखंड में नगर निकाय चुनाव (Municipal Elections In Jharkhand) को लेकर राज्य निर्वाचन आयोग की डुगडुगी बजने से पहले ही रांची महापौर सीट आरक्षण को लेकर (Ranchi Mayor Reservation) राजनीति तेज हो गई है. इसके एससी के लिए आरक्षण को लेकर सभी दल दूसरे पर ठीकरा फोड़ रहे हैं. कोई इसे भारतीय जनता पार्टी के शासनकाल में लिए गए फैसले का परिणाम बता रहा है तो कोई मिल बैठकर समस्या का समाधान निकालने की बात कर रहा है.

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देखें क्या कहते हैं नेता

झामुमो नेता सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि बातचीत कर कोई रास्ता निकाला जाएगा, क्योंकि 5th शेड्यूल में रांची के मेयर का पद अनुसूचित जाति के लिए होना था परंतु भाजपा की बनाई गलत नियमावली से ऐसा हुआ है. सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि मूलभूत समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए भाजपा इस तरह के काम करती रहती है और रोटेशन नियमावली भी उसी की देन है.


दुविधा में कांग्रेसः वहीं कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने इस मुद्दे पर मोर्चा खोल दिया है. इधर, झारखंड कांग्रेस खुलकर बोलने की स्थिति में नहीं है. इसकी वजह यह है कि पार्टी कोई ऐसा बयान नहीं देना चाहती जिससे अनुसूचित जनजाति के साथ साथ अनुसूचित जाति के लोगों के बीच कोई गलत मैसेज चला जाए. पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता राकेश सिन्हा कहते हैं कि पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की को आदिवासी संगठनों ने ज्ञापन दिया था जिसके बाद उन्होंने आदिवासियों के दिल की बात कही थी. रांची मेयर को लेकर पार्टी का रुख क्या होगा इसका फैसला आपस मे बैठकर तय कर लिया जाएगा. राकेश सिन्हा ने कहा कि यह आयोग का मामला है, इसलिए बृहद चर्चा के बाद निष्कर्ष पर पहुंचा जाएगा.



भाजपा के SC विधायक भी बोलने से कतरा रहेः दरअसल, रांची मेयर का पद अभी भाजपा नेता के पास ही है. इसलीए यह पद पूर्व की तरह आदिवासी महिला के लिए ही रिजर्व रहना चाहिए या दलितों को भी रोटेशन के आधार पर मेयर बनने का मौका मिलना चाहिए, इस पर भारतीय जनता पार्टी के नेता विधायक भी दुविधा में हैं. यही वजह है कि झारखंड भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता हों या विधायक, प्रदेश अध्यक्ष तक खुलकर कुछ बोल नहीं रहे हैं. कांके की अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सीट से विधायक समरीलाल कहते हैं कि वह इस पर बयान देने के लिए अधिकृत नहीं है. इसका जवाब बड़े नेता और प्रवक्ता ही देंगे.



राज्य में बड़ी संख्या है SC-ST कीः रांची मेयर पद के रोस्टर आधारित आरक्षण को लेकर राजनीतिक दलों की दुविधा वोट बैंक की राजनीति है. कोई यह नहीं चाहता कि SC और ST में से किसी में यह संदेश जाए कि कोई भी दल किसी का समर्थन या किसी का विरोध कर रही है. क्योंकि राज्य में जहां 70 लाख से अधिक की आबादी आदिवासियों की है तो दलितों की आबादी भी 40 लाख से ज्यादा है.

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