रांची: डुमरी विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव होना है. जगरनाथ महतो के असमय निधन की वजह से सीट खाली हो गई है. अब इस सीट पर अवसर और प्रतिष्ठा की राजनीति शुरू हो गई है. सबसे ज्यादा स्टेक झामुमो का लगा हुआ है. वैसे राज्य बनने के बाद 2005 में हुए चुनाव के बाद से ही इस सीट पर झामुमो का कब्जा रहा है. अबतक हुए चार विस चुनाव में जगरनाथ महतो ही जीतते रहे. हालांकि एकीकृत बिहार के दौर में साल 2000 में हुए चुनाव में जदयू की टिकट पर लालचंद महतो जीते थे. उस वक्त भी उनका सामना जगरनाथ महतो से ही हुआ था. लेकिन समता पार्टी की टिकट पर उतरे जगरनाथ महतो महज 6,725 वोट के अंतर से हारे थे.
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अब परिस्थिति बदल गई है. डुमरी के टाइगर कहे जाने वाले जगरनाथ महतो इस दुनिया में नहीं हैं. लेकिन झामुमो को इमोशनल फैक्टर पर भरोसा है. माना जा रहा है कि इस उपचुनाव में दिवंगत जगरनाथ महतो की पत्नी को मैदान में उतारा जा सकता है. हालांकि उनके पुत्र अखिलेश महतो उर्फ राजू महतो भी पिता की विरासत को संभालने के लिए वोटरों के बीच पहुंचना शुरू कर चुके हैं. लेकिन पार्टी उनपर दांव लगाने को तैयार नहीं दिख रही है. वहीं आजसू और भाजपा का स्टैंड अबतक क्लियर नहीं हुआ है कि प्रत्याशी कौन देगा. लेकिन दोनों पार्टियां संगठन को एक्टिव करने में जुटी हुई हैं.
झामुमो सूत्रों के मुताबिक दिवंगत जगरनाथ महतो की पत्नी बेबी देवी को उपचुनाव में उतारने की तैयारी है. उनके साथ लोगों की संवेदना भी जुड़ी हुई है. टाइगर के रूप में चर्चित रहे दिवंगत जगरनाथ महतो का डुमरी विस में जबरदस्त दबदबा था. वह पार्टी लाइन से हटकर क्षेत्र के हर तबके के सुख-दुख में शामिल हुआ करते थे. डुमरी में इस परिवार की जबरदस्त पैठ के बावजूद पार्टी कोई रिस्क लेने को तैयार नहीं है. चर्चा है कि उपचुनाव से पहले यहां भी मधुपुर वाला कार्ड खेला जा सकता है. जिस तरह से हाजी हुसैन अंसारी के निधन पर उनके पुत्र हफीजुल हसन को चुनाव से पहले ही मंत्री बना दिया गया था, वहीं फॉर्मूला डुमरी में भी अपनाया जा सकता है. सूत्र बता रहे हैं कि बेबी देवी को बहुत जल्द मंत्री पद की शपथ दिलायी जा सकती है. वैसे दिवंगत जगरनाथ महतो के पुत्र अखिलेश महतो की भी चर्चा थी. लेकिन सूत्र बता रहे हैं कि अभी उनकी उम्र 25 साल नहीं हुई है. हालांकि डुमरी में चर्चा है कि पिछले माह ही अखिलेश महतो 25 साल के हो गये हैं. पार्टी सूत्र बता रहे हैं कि अगर इसमें सच्चाई है तो भी उनके कम उम्र को देखते हुए चांस नहीं लिया जा सकता है. इस मसले पर बेबी देवी और अखिलेश महतो की सीएम के साथ पिछले दिनों बैठक भी हो चुकी है.
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अब सवाल है कि आजसू क्या करेगी. इस मसले पर आजसू नेता देवशरण भगत ने बताया कि बूथ स्तर पर पार्टी अपनी तैयारी में जुटी हुई है. अबतक हुए सभी पांच उपचुनाव में गठबंधन धर्म का पालन किया गया है. उन्होंने कहा कि गिरिडीह लोकसभा सीट आजसू के पास है. इसी लोकसभा क्षेत्र में डुमरी है. इसके बावजूद इस उपचुनाव में भी दोनों पार्टियों के शीर्ष नेता आपस में बैठक कर विचार करेंगे कि आगे क्या करना है.
दूसरी तरफ रामगढ़ उपचुनाव में अपने सहयोगी दल आजसू की उम्मीदवार के जीते जाने से भाजपा बेहद उत्साहित है. अब सवाल है कि क्या भाजपा डुमरी सीट को आजसू के लिए छोड़ेगी या अपना प्रत्याशी उतारेगी. इसपर प्रदेश भाजपा का कोई भी नेता कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं है. दरअसल, 2019 के बाद राज्य की पांच सीटों पर उपचुनाव हो चुके हैं. इनमें दुमका, मधुपुर, बेरमो और मांडर में भाजपा का सामना झामुमो और कांग्रेस के साथ हुआ था. लेकिन सभी चारों सीटों पर सत्ताधारी गठबंधन हावी रहा था. बाजी रामगढ़ में पलटी थी. वैसे रामगढ़ में आजसू का पहले से दबदबा था.
गौर करने वाली बात यह भी है कि मधुपुर और बेरमो में वहां के सीटिंग विधायक का निधन उपचुनाव का कारण बना था. दोनों सीटों पर दिवंगत विधायकों के पुत्र की जीत हुई थी. अब बारी डुमरी की है. वहीं दुमका सीट को सीएम ने खाली किया था तो उनकी जगह उनके छोटे भाई बसंत सोरेन जीते थे. मांडर में आय से अधिक संपत्ति मामले में सजा के बाद बंधु तिर्की के सीट गंवाने पर उनकी बेटी नेहा शिल्पी तिर्की जीतीं थी. लेकिन रामगढ़ में गोला गोलीकांड मामले में सजा के बाद ममता देवी के हटने पर उनके पति आजसू प्रत्याशी के सामने नहीं टिक पाए थे. लेकिन शेष चार उपचुनाव में भाजपा के हारने पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष दीपक प्रकाश की रणनीति सवालों के घेरे में रही है. बतौर प्रदेश अध्यक्ष उनका कार्यकाल समाप्त हो चुका है. अगर वह डुमरी उपचुनाव तक पद पर बने रहते हैं तो एक बार फिर उनपर दवाब बढ़ेगा.
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क्या है डुमरी सीट का समीकरण: 2019 के चुनाव में झामुमो के जगरनाथ महतो का सामना आजसू की यशोदा देवी से हुआ था. इस चुनाव में जगरनाथ महतो को 71,128 वोट मिले थे. आजसू की यशोदा देवी को 36,840 वोट मिले थे. यहां झामुमो की एकतरफा जीत हुई थी. खास बात है कि इस चुनाव में आजसू और भाजपा के बीच गठबंधन नहीं था. भाजपा के प्रत्याशी प्रदीप कुमार साहू को 36,013 वोट मिले थे. लिहाजा, आजसू और भाजपा के वोट को जोड़ दें तो जगरनाथ महतो का जीतना मुश्किल हो जाता. लेकिन खास है कि उस चुनाव में ओबैसी की पार्टी एआईअमआईएम के अब्दुल मोबिन रिजवी 24,132 वोट के साथ चौथे नंबर पर थे. जाहिर है आगामी उपचुनाव में मुस्लिम वोट बैंक हार-जीत तय करने में अहम भूमिका निभा सकता है. क्योंकि माना जा रहा है है कि एनडीए गठबंधन के साथ यहां मैदान में उतरने की तैयारी में है. यह भी देखना होगा कि पिछले चुनाव में जदयू की टिकट पर उतरे पूर्व मंत्री लालचंद महतो ने भी 5,219 वोट लाए थे. मौजूदा राजनीतिक बदलाव में जदयू की भूमिका भी चुनाव को दिलचस्प बना सकती है.
2014 में क्या थी स्थिति: डुमरी सीट के लिए 2014 में हुए चुनाव में झामुमो के दिवंगत नेता जगरनाथ महतो की ही जीत हुई थी. तब लालचंद महतो को भाजपा ने उतारा था. लेकिन वह 32,481 वोट के अंतर से हार गये थे. उस चुनाव में जगरनाथ महतो को 77,984 वोट मिले थे. यह चुनाव 2019 के चुनाव से बिल्कुल अलग था. तब अब्दुल मोबिन जदयू प्रत्याशी थे. उन्हें 16,722 वोट मिले थे. तब बाबूलाल मरांडी की पार्टी जेवीएम भी थी. जिसके प्रत्याशी प्रदीप कुमार साहू को 9,032 वोट मिले थे. उस चुनाव में आजसू ने प्रत्याशी नहीं दिया था. लेकिन 2019 के चुनाव में झामुमो के जगरनाथ महतो से लड़ने के लिए टिकट की ऐसी होड़ मची कि भाजपा के लालचंद महतो जदयू प्रत्याशी बन गये. जदयू के अब्दुल मोबिन ओबैसी की पार्टी के प्रत्याशी बन गये और जेवीएम के प्रदीप कुमार साहू भाजपा में जाकर जीत ढूंढने लगे. लेकिन सबको दरकिनार कर आजसू दूसरे नंबर पर आ गई.
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2009 के चुनाव में क्या था समीकरण: डुमरी के चुनाव को समझने के लिए 2009 के समीकरण को समझना होगा. उस चुनाव में भी झामुमो की टिकट पर जगरनाथ महतो ही जीते थे. तब उन्हें महज 33,960 वोट मिले थे. उनका मुकाबला जदयू के दामोदर प्रसाद महतो से हुआ था. उनको महज 20,292 वोट मिले थे. उस चुनाव में जदयू से टिकट नहीं मिलने पर लालचंद महतो ने 19 हजार से ज्यादा वोट लाकर चुनाव को त्रिकोणीय बना दिया था. भाजपा ने प्रत्याशी नहीं उतारा था. आजसू ने कोशिश जरूर की थी लेकिन उसके प्रत्याशी टिकाराम महतो को सिर्फ 1272 वोट मिले थे.
अब होने जा रहे उपचुनाव में सारा खेल इस बात पर निर्भर करेगा कि ओवैसी की पार्टी का क्या स्टैंड होगा. दूसरा यह कि 2014 में दूसरे और 2019 में तीसरे नंबर पर रहने वाली भाजपा क्या 2019 में दूसरे नंबर पर रही आजसू के लिए सीट छोड़ेगी. लिहाजा, इसबार का उपचुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है. यहां गठबंधन, सरकार के फैसले और कामकाज के अलावा संवेदना की भी परीक्षा होनी है. जानकार बताते हैं कि अगर झामुमो ने यहां मधुपुर वाला फॉर्मूला लागू कर दिया तो विपक्ष की दावेदारी जरूर प्रभावित हो जाएगी. लेकिन एनडीए इस उम्मीद में है कि नियोजन और स्थानीयता के मुद्दे पर सरकार जिस तरह से उलझी है, उसका फायदा उसे हो सकता है.