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नक्सलियों से खिलाफ "साइ ऑप्स" बना नया हथियार, स्थानीय भाषा के पोस्टर में दिखेगा नक्सलवाद का काला चेहरा

झारखंड में नक्सलवाद के खात्मे को लेकर झारखंड पुलिस 'साई ऑप्स' को हथियार बनाया है. इसके जरिए प्रदेश में बोली जाने वाली लोकल भाषाओं का प्रयोग कर आम लोगों को नक्सलियों दोहरे चरित्र को सामने लाने का काम कर रही है.

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झारखंड पुलिस
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Published : Jan 21, 2021, 10:33 PM IST

रांचीः झारखंड में नक्सलवाद के खात्मे को लेकर झारखंड पुलिस प्रदेश में बोली जाने वाली लोकल भाषाओं का प्रयोग कर आम लोगों को नक्सलियों दोहरे चरित्र को सामने लाने का काम कर रही है. साइऑप्श के जरिए झारखंड पुलिस ने नक्सल प्रभावित इलाकों में बोले जाने वाली भाषा का इस्तेमाल करते हुए पोस्टर और पंप्लेट बनवाया है और उसे गांव गांव में बांटा जा रहा है.

क्यों पड़ी जरूरत
झारखंड में नक्सली संगठनों की ओर से इलाकावार बोली जाने वाली भाषा में संगठन का प्रचार-प्रसार किया जाता रहा है. नक्सली संगठन गांव-गांव में घूमकर ग्रामीणों और युवाओं को जोड़ने के लिए स्थानीय भाषा में ही लोगों से संपर्क करते हैं. ऐसे में अब झारखंड पुलिस भी स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल अपने पोस्टर में कर रही है. झारखंड पुलिस के प्रवक्ता सह आईजी अभियान साकेत कुमार सिंह ने बताया कि माओवादियों से निपटने के लिए पुलिस अब स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल कर रही है. माओवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे साइ ऑप्श में भी स्थानीय भाषा में पोस्टर लगाए जा रहे हैं. स्थानीय भाषा में ही ग्रामीणों को माओवाद से दूर रहने और माओवादियों के गतिविधि की जानकारी दी जा रही है.

police will target naxalites with local language posters in ranchi
छोटानागपुरी भाषा में जारी पोस्टर
हिंदी के बजाय स्थानीय भाषा अपना रहे भाकपा माओवादीझारखंड में पूर्व में अधिकांश जगहों पर पोस्टरबाजी या संदेश पहुंचाने के लिए भाकपा माओवादी हिंदी का ही इस्तेमाल करते थे. अधिकांश जगहों पर हिंदी में ही पोस्टरबाजी करते थे. वहीं झारखंड में अधिकांश माओवादी पोलित ब्यूरो मेंबर, केंद्रीय कमिटी सदस्य बिहार और बंगाल के राज्यों से हैं, ऐसे में स्थानीय कैडरों से उनका जुड़ाव नहीं हो पा रहा था. फरवरी 2019 के बाद झारखंड में माओवादी संगठन में उतरी छोटानागपुर जोन के पतिराम मांझी उर्फ अनल को कोल्हान के इलाके में संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन बाहरी माओवादी नेताओं का स्थानीय कैडरों के बीच लगातार विरोध भी होता रहा था. ऐसे में स्थानीय नेताओं को आगे कर संगठन में भाषायी माध्यम का इस्तेमाल कर नए कैडरों को जोड़ने की रणनीति पर माओवादियों ने काम किया है. लॉकडाउन के बाद चाईबासा समेत कई इलाकों में जनमिलिशिया के जरिए पार्टी संगठन से नए कैडरों को जोड़ा गया है. संथाली, हो, नागपुरिया, सादरी भाषाओं में माओवादी पोस्टरबाजी कर अपना संदेश ग्रामीणों तक पहुंचा रहे थे.
police will target naxalites with local language posters in ranchi
खोरठा भाषा में जारी पोस्टर
police will target naxalites with local language posters in ranchi
संताली भाषा में जारी पोस्टर

इसे भी पढ़ें- 30 जनवरी से चलेगा कुष्ठ जागरुकता अभियान, एडीएम ने बनाई रूपरेखा


माओवादियों पर नकेल कसने के लिए उनके घर जा रही पुलिस
दूसरी तरफ राज्य में सक्रिय 170 से अधिक उग्रवादियों पर वर्तमान में एक लाख से एक करोड़ तक का इनाम है. राज्य पुलिस मुख्यालय ने माओवादियों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए नई पहल की है. जिलों के एसपी स्तर के अधिकारी अब खुद फरार इनामी उग्रवादियों के घर जाते हैं. उग्रवादियों के घर जाकर पुलिस उग्रवादियों के परिजनों को बताती है कि वह अपने परिवार के माओवादी सदस्य को सरेंडर कराएं. बदले में माओवादी को इनाम की पूरी राशि दी जाएगी. इसके साथ ही बच्चों को मुफ्त शिक्षा, जमीन, पूर्व के लंबित केस को जल्द से जल्द निपटाने, ओपन जेल में सपरिवार रहने की सुविधा समेत कई पहलूओं की जानकारी दी जा रही है. झारखंड सरकार के आत्मसमर्पण नीति को भी लोकल भाषाओं में ग्रामीणों के बीच बताया और समझाया जा रहा है. झारखंड पुलिस अबतक ईनामी उग्रवादी मिसिर बेसरा, रवींद्र गंझू, महाराज प्रमाणिक, अमित मुंडा समेत कई फरार इनामी उग्रवादियों के घर जाकर दबिश कर चुकी है. साथ ही परिवार के सदस्यों से मिलकर उग्रवादियों को सरेंडर करने का निवेदन कर चुकी है.

रांचीः झारखंड में नक्सलवाद के खात्मे को लेकर झारखंड पुलिस प्रदेश में बोली जाने वाली लोकल भाषाओं का प्रयोग कर आम लोगों को नक्सलियों दोहरे चरित्र को सामने लाने का काम कर रही है. साइऑप्श के जरिए झारखंड पुलिस ने नक्सल प्रभावित इलाकों में बोले जाने वाली भाषा का इस्तेमाल करते हुए पोस्टर और पंप्लेट बनवाया है और उसे गांव गांव में बांटा जा रहा है.

क्यों पड़ी जरूरत
झारखंड में नक्सली संगठनों की ओर से इलाकावार बोली जाने वाली भाषा में संगठन का प्रचार-प्रसार किया जाता रहा है. नक्सली संगठन गांव-गांव में घूमकर ग्रामीणों और युवाओं को जोड़ने के लिए स्थानीय भाषा में ही लोगों से संपर्क करते हैं. ऐसे में अब झारखंड पुलिस भी स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल अपने पोस्टर में कर रही है. झारखंड पुलिस के प्रवक्ता सह आईजी अभियान साकेत कुमार सिंह ने बताया कि माओवादियों से निपटने के लिए पुलिस अब स्थानीय भाषाओं का इस्तेमाल कर रही है. माओवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे साइ ऑप्श में भी स्थानीय भाषा में पोस्टर लगाए जा रहे हैं. स्थानीय भाषा में ही ग्रामीणों को माओवाद से दूर रहने और माओवादियों के गतिविधि की जानकारी दी जा रही है.

police will target naxalites with local language posters in ranchi
छोटानागपुरी भाषा में जारी पोस्टर
हिंदी के बजाय स्थानीय भाषा अपना रहे भाकपा माओवादीझारखंड में पूर्व में अधिकांश जगहों पर पोस्टरबाजी या संदेश पहुंचाने के लिए भाकपा माओवादी हिंदी का ही इस्तेमाल करते थे. अधिकांश जगहों पर हिंदी में ही पोस्टरबाजी करते थे. वहीं झारखंड में अधिकांश माओवादी पोलित ब्यूरो मेंबर, केंद्रीय कमिटी सदस्य बिहार और बंगाल के राज्यों से हैं, ऐसे में स्थानीय कैडरों से उनका जुड़ाव नहीं हो पा रहा था. फरवरी 2019 के बाद झारखंड में माओवादी संगठन में उतरी छोटानागपुर जोन के पतिराम मांझी उर्फ अनल को कोल्हान के इलाके में संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन बाहरी माओवादी नेताओं का स्थानीय कैडरों के बीच लगातार विरोध भी होता रहा था. ऐसे में स्थानीय नेताओं को आगे कर संगठन में भाषायी माध्यम का इस्तेमाल कर नए कैडरों को जोड़ने की रणनीति पर माओवादियों ने काम किया है. लॉकडाउन के बाद चाईबासा समेत कई इलाकों में जनमिलिशिया के जरिए पार्टी संगठन से नए कैडरों को जोड़ा गया है. संथाली, हो, नागपुरिया, सादरी भाषाओं में माओवादी पोस्टरबाजी कर अपना संदेश ग्रामीणों तक पहुंचा रहे थे.
police will target naxalites with local language posters in ranchi
खोरठा भाषा में जारी पोस्टर
police will target naxalites with local language posters in ranchi
संताली भाषा में जारी पोस्टर

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माओवादियों पर नकेल कसने के लिए उनके घर जा रही पुलिस
दूसरी तरफ राज्य में सक्रिय 170 से अधिक उग्रवादियों पर वर्तमान में एक लाख से एक करोड़ तक का इनाम है. राज्य पुलिस मुख्यालय ने माओवादियों को मुख्यधारा में जोड़ने के लिए नई पहल की है. जिलों के एसपी स्तर के अधिकारी अब खुद फरार इनामी उग्रवादियों के घर जाते हैं. उग्रवादियों के घर जाकर पुलिस उग्रवादियों के परिजनों को बताती है कि वह अपने परिवार के माओवादी सदस्य को सरेंडर कराएं. बदले में माओवादी को इनाम की पूरी राशि दी जाएगी. इसके साथ ही बच्चों को मुफ्त शिक्षा, जमीन, पूर्व के लंबित केस को जल्द से जल्द निपटाने, ओपन जेल में सपरिवार रहने की सुविधा समेत कई पहलूओं की जानकारी दी जा रही है. झारखंड सरकार के आत्मसमर्पण नीति को भी लोकल भाषाओं में ग्रामीणों के बीच बताया और समझाया जा रहा है. झारखंड पुलिस अबतक ईनामी उग्रवादी मिसिर बेसरा, रवींद्र गंझू, महाराज प्रमाणिक, अमित मुंडा समेत कई फरार इनामी उग्रवादियों के घर जाकर दबिश कर चुकी है. साथ ही परिवार के सदस्यों से मिलकर उग्रवादियों को सरेंडर करने का निवेदन कर चुकी है.

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