रांचीः कहते हैं बातें इंसान को भीतर तक भेद देती है, नक्सलियों के खिलाफ झारखंड पुलिस कुछ इसी तरह के उपाय इस्तेमाल में ला रही है. गोली नहीं अब बोली से मात खाएंगे नक्सली, जी हां! बिल्कुल सही सुना आपने, झारखंड पुलिस नक्सलियों के खिलाफ अभियान में अब लोकल लैंग्वेज को अपना हथियार बनाया है. इन पोस्टर्स के माध्यम से पुलिस ग्रामीणों को जागरूक कर रही है. जिसका असर भी सामने नजर आ रहा है.
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झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ पुलिस ने कई मोर्चों पर एक साथ वार करना शुरू कर दिया है. नक्सलियों के खिलाफ हथियारबंद लड़ाई तो पूर्व से ही चल रही है, अब पुलिस लोकल लैंग्वेज का प्रयोग कर ग्रामीणों को नक्सलियों की करतूत बता रही है. पुलिस के द्वारा लोकल भाषा में पोस्टर बैनर छपवाकर गांव-गांव में बांटे जा रहे हैं, उन्हें गली-मोहल्लों में चिपकाया जा रहा है. जिससे ग्रामीण यह जान सके कि किस तरह नक्सली संगठन उनके साथ रहने की बात कहकर उन्हीं के भोले-भाले गांव वालों को लैंड माइंस विस्फोट कर मार रहे हैं और उनकी आजीविका छीन रहे हैं. इतना ही नहीं किस तरह बिहार, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल से नक्सली कमांडर झारखंड में आकर ग्रामीणों को अपना गुलाम बना रहे हैं और उनके भोले भाले बच्चों को नक्सलवाद के रास्ते पर धकेल रहे हैं.
कोल्हान में किया जा रहा प्रयोग: झारखंड के बूढ़ा पहाड़ पर फतह के बाद झारखंड में सक्रिय बड़े नक्सलियों का जमावड़ा कोल्हान में हो रहा है. अपने आपको आईईडी बमों के घेरे में सुरक्षित रखने की कोशिश में नक्सली लगे हुए हैं. दूसरी तरफ पुलिस ने तीन महीने से उनकी घेराबंदी करके रखी है. इस दौरान नक्सलियों के द्वारा लगाए गए आईईडी बमों के धमाके में 4 ग्रामीणों की मौत हो गई, वहीं एक दर्जन से ज्यादा पुलिस वाले घायल भी हुए. इन सब के बावजूद पुलिस की घेराबंदी लगातार जारी है लेकिन अब नक्सलियों के करतूतों को लेकर एक नई जंग पुलिस में छेड़ दी है. घेराबंदी के दूसरी तरफ झारखंड पुलिस ग्रामीणों को उनकी ही भाषा में नक्सलियों के द्वारा किए जा रहे करतूतों की जानकारी दी जा रही है.
ग्राणीणों को बताया जा रहा है कि किस तरह नक्सलियों ने अपने आपको बचाने के लिए ग्रामीणों का जंगल आना जाना बंद कर दिया है, किस तरह आईईडी बम विस्फोट की वजह से ग्रामीण और मवेशी मारे जा रहे हैं. इन सभी मामलों को तस्वीरों के साथ पोस्टर बनाकर ग्रामीणों तक पहुंचाया जा रहा है ताकि वो देख सके कि किस तरह उनके मददगार होने की बात कहने वाले नक्सली संगठन पूरे गांव का ही शोषण कर रहे हैं. क्योंकि झारखंड के अधिकांश ग्रामीण इलाकों में लोग आज भी हिंदी भाषा नहीं समझते हैं, ऐसे में वहां की स्थानीय भाषा में ही तमाम पोस्टर छपवाए गए हैं.
क्या है पोस्टर में: स्थानीय भाषाओं में बनी प्रचार सामग्रियों में नक्सलियों की ओर से ग्रामीणों पर की गई कार्रवाई और घटनाओं का विवरण है. इस पोस्टर में ग्रामीणों को नक्सलियों से दूर रहने और सरकार का साथ देने की अपील की गई है. वहीं कुछ पोस्टर पर नक्सली नेताओं की तस्वीरों के साथ उनपर रखे इनाम की जानकारी भी दी गई है. कुछ पोस्टर्स में गांव वालों को आईईडी बमों की जानकारी भी दी गई है. ग्रामीणों को यह भी जानकारी दी गई है कि अगर ऐसी चीजें जंगल में कहीं दिखाई देती हैं तो वो उसके पास ना जाएं क्योंकि वह बम हो सकता है.
ग्रामीणों को जागरूक और सतर्क करने की कोशिशः नक्सली जिस तरह के बम का प्रयोग कर रहे हैं, उसकी तस्वीर भी पोस्टर में शामिल किया गया है ताकि ग्रामीण सतर्क रहें. झारखंड पुलिस ये मानती है कि अगर नक्सली संगठन के निचले स्तर के कैडर और ग्रामीणों को यह बात समझ लें कि बड़े नक्सली नेता अपनी कमाई के लिए उनके जीवन के साथ खिलवाड़ रहे हैं तो वो अपने आप ही मुख्य धारा में लौट आएंगे. जिसके बाद उनका संगठन अपने आप ही कमजोर हो जाएगा.
मिशन में स्थानीय भाषा के जानकार जवानः झारखंड पुलिस के आईजी अभियान अमोल वी होमकर ने बताया कि लोकल लैंग्वेज का प्रयोग कर जो पोस्टर बैनर ग्रामीण इलाकों में बांटे जा रहे हैं, उनका पॉजिटिव प्रभाव भी पड़ रहा है. इसके अलावा नक्सलियों के खिलाफ अभियान में हमारे वैसे जवान भी भाग ले रहे हैं जो झारखंड में बोली जाने वाली स्थानीय भाषाओं के जानकार हैं. अभियान में लगे जवान जब ग्रामीणों के पास पहुंच रहे हैं तो उनके साथ उन्हीं की भाषा में बात करके नक्सलवाद की काली छाया के खिलाफ में जानकारी भी दे रहे हैं.
नक्सलियों से मुख्यधारा में लौटने की अपीलः इसके साथ में नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने की अपील भी की जा रही है. यह भी बता रहे हैं कि सरकार के द्वारा कई योजनाएं चलाई जा रही हैं, जिसका अगर वे फायदा उठाएं तो उन्हें कई तरह के काम घर बैठे ही मिल जाएंगे. आईजी अभियान के अनुसार इस प्रयोग की वजह से ग्रामीणों और पुलिस के बीच की दूरी भी मिट रही है जो आगे चलकर पुलिस के लिए और भी फायदेमंद साबित होगा.