रांची: विनोबा भावे विश्वविद्यालय में वित्तीय पदाधिकारी की नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. इस दौरान विश्वविद्यालय की कार्रवाई पर गंभीर टिप्पणी की गई. अदालत ने मौखिक रूप से कहा कि जब हाई कोर्ट में केस लंबित था तो किस अधिकार से विश्वविद्यालय में अभ्यर्थी के अनुभव प्रमाण पत्र की सत्यापन के लिए कमेटी गठित की.
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यह तो अदालत की अवमानना का मामला बनता है. अदालत ने मामले में दोनों पक्षों को सुनने के उपरांत एकल पीठ के फैसले को सही मानते हुए डबल बेंच ने यह माना कि नियुक्ति प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है.नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया है.
झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ रवि रंजन और न्यायाधीश एसएन प्रसाद की अदालत में विनोबा भावे विश्वविद्यालय में वित्त पदाधिकारी नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई हुई.
न्यायाधीश मामले की सुनवाई अपने आवासीय कार्यालय से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से की. अदालत ने मामले में दोनों पक्षों को सुनने के उपरांत यह माना कि वित्त पदाधिकारी की नियुक्ति में किसी भी प्रकार की कोई गड़बड़ी नहीं हुई है.
उन्होंने याचिका को खारिज कर दिया. याचिकाकर्ता के अधिवक्ता और विश्वविद्यालय के अधिवक्ता झारखंड कर्मचारी चयन के अधिवक्ता ने अपने-अपने आवास से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से अपना पक्ष रखा.
शैक्षणिक अहर्ता पर उठाए थे सवाल
झारखंड चयन आयोग की ओर से अदालत को जानकारी दी गई दी गई कि आयोग ने अनुशंसा कर विश्वविद्यालय को यह जानकारी दी थी. विश्वविद्यालय अपने स्तर से प्रमाण पत्र की सत्यापन कर ले. वहीं याचिकाकर्ता की ओर से बताया गया कि विश्वविद्यालय द्वारा जिनकी नियुक्ति की गई वह शैक्षणिक अहर्ता पूरा नहीं करता है. उनका जो अनुभव इस पद के लिए 15 वर्ष विज्ञापन में दिया गया था वह पूरा नहीं होता है.
जबकि प्रतिवादी का कहना था कि विज्ञापन में दिए गए शर्त की अहर्ता वह रखते हैं. उन्होंने 15 वर्ष का अनुभव प्राप्त किया है. अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के उपरांत याचिका को खारिज कर दिया.
वहीं याचिका की सुनवाई के दौरान अदालत को बताया गया कि जब एकल पीठ में याचिका लंबित थी तो विश्वविद्यालय ने कई बार कमेटी का गठन कर इनकी अनुभव की जांच की जिससे यह प्रतीत होता है कि विश्वविद्यालय ने हाई कोर्ट में केस लंबित होने के बावजूद भी मामले में कार्रवाई की, जो अदालत की अवमानना के बराबर है.
सिंगल बेंच ने भी की थी खारिज
हाई कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि विश्वविद्यालय का इस तरह का कार्य अदालत की अवमानना जैसा ही प्रतीत होता है. बता दें कि विनोब भावे विश्वविद्यालय में वित्त पदाधिकारी की नियुक्ति की गई थी उसी नियुक्ति प्रक्रिया को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी.
पूर्व में हाई कोर्ट की सिंगल बेंच ने नियुक्ति प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की कोई गड़बड़ी न पाते हुए याचिका को खारिज कर दिया था. उसके बाद हाई कोर्ट के एकल पीठ के आदेश को डबल बेंच में चुनौती दी गई थी. उस याचिका पर सुनवाई के उपरांत हाई कोर्ट की डबल बेंच ने भी याचिका को खारिज कर दिया है.