रांची: राजधानी रांची की हृदयस्थली में स्थित विवेकानंद सरोवर को प्रदूषण मुक्त करने के लिए स्थानीय लोग सत्याग्रह कर रहे हैं. हाथ में बैनर-तख्ती और हाथों में तालाब का गंदा पानी लिए बड़ी संख्या में लोग विवेकानंद सरोवर (बड़ा तालाब) के किनारे बैठे हैं. सत्याग्रह पर बैठे लोगों का सरकार और नगर निगम दोनों से सवाल है कि सरोवर के सौंदर्यीकरण के नाम पर करोड़ों रुपये बहा देने के बावजूद सरोवर आज इस हाल में क्यों है. सत्याग्रह कर रहे स्थानीय लोगों ने झारखंड उच्च न्यायालय से गुहार लगाते हुए मामले में हस्तक्षेप कर झील को बचाने के लिए कठोर आदेश देने का आग्रह किया है.
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तालाब में गिरता है सीवरेज का गंदा पानी: दरअसल, सीवरेज का गंदा पानी लगातार बिना ट्रीटमेंट के इस तालाब में गिरता है, नतीजतन यहां का पानी पूरी तरह दूषित और सड़ चुका है. सत्याग्रह कर रहे रांची झील बचाओ अभियान के संयोजक राजीव रंजन मिश्रा और स्थानीय लोगों ने कहा कि उनको अब सिर्फ झारखंड उच्च न्यायालय से उम्मीद बची है. इसलिए सत्याग्रह के माध्यम से उच्च न्यायालय से स्वतः संज्ञान लेने का आग्रह कर रहे हैं. सत्याग्रह कर रहे मो. परवेज आलम और विक्रम शाहदेव सहित अन्य स्थानीय लोगों ने कहा कि पहले यह रांची झील था, बाद में बड़ा तालाब हो गया और आज यह गंदे पानी का गटर है. रांची के छह अलग अलग क्षेत्रों से गंदा पानी नाले के माध्यम से बिना ट्रीट किये विवेकानंद सरोवर में गिरता है.
वर्ष 1842 में रांची झील का हुआ था निर्माण: रांची नगर निगम से मिली जानकारी के अनुसार, रांची झील का निर्माण ब्रिटिशर कर्नल औंसले द्वारा सन 1842 में कराया गया था. इसके निर्माण में कैदियों की मदद ली गयी थी. इस झील की ऊंचाई समुद्रतल से 21 सौ फीट है. पहाड़ी मंदिर की ऊंचाई से देखने पर इस झील की कभी अनुपम छटा दिखा करती थी. लेकिन सरकार और नगर निगम के उदासीन रवैये की वजह से आज यह ऐतिहासिक सरोवर गंदे पानी का तालाब बनकर दुर्गंध दे रहा है. इस लिए स्थानीय लोग सत्याग्रह कर इसे बचाने की मांग कर रहे हैं.