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भाषा विवाद! झारखंड के लोगों के साथ बिहार में होता है बुरा बर्ताव- पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव

झारखंडी लोगों से बिहार में बुरा बर्ताव होता है, ये कहना है पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव का. मंगलवार को मीडिया से बात करते हुए उन्होंने कई बातें कहीं. प्रदेश में स्थानीयता और भाषा विवाद को लेकर उन्होंने हेमंत सरकार पर निशाना साधा है. साथ ही नौकरी को लेकर झारखंड में नियोजन नीति तय ना कर पाने पर मुख्यमंत्री को कमजोर करार दिया है.

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पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव
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Published : Apr 12, 2022, 10:19 PM IST

Updated : Apr 12, 2022, 11:03 PM IST

रांचीः पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव ने राज्य में स्थानीयता और भाषा विवाद के लिए वर्तमान सरकार को दोषी मानते हुए जमकर निशाना साधा है. उन्होंने हेमंत सरकार के कार्यकाल में लिए गए फैसले पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि जिस झारखंड को पाने के लिए 28 वर्षों तक हमारे पूर्वजों ने संघर्ष किया उसको अपमानित करने का काम सरकार के अटपटे फैसले ने किए हैं. अपने आवास पर मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए गीताश्री उरांव ने कहा कि झारखंडी लोगों से बिहार में बुरा बर्ताव होता है.

मंगलवार को रांची में अपने आवास पर उन्होंने प्रेस वार्ता की. गीताश्री उरांव ने भाषा को लेकर विवाद को सही मानते हुए कहा कि जिस तरह से झारखंड में बिहार की मगही, अंगिका, भोजपुरी जैसी बोली को क्षेत्रीय भाषा का दर्जा दिया गया, वह कहीं से भी उचित नहीं था. उन्होंने कहा कि 2003-04 से ही यहां मान्यता देने की बात चल रही थी जो बाद में सफल हुआ. वो झारखंड में बांग्ला और उड़िया भाषा को भी मान्यता देने का विरोध किया था. क्योंकि वह झारखंड की क्षेत्रीय भाषा नहीं है, जब भाषा के आधार पर बंगाल और ओड़िशा बन सकता है तो झारखंड क्यों नहीं.

जानकारी देतीं पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव

झारखंड के लोगों के साथ बिहार में होता है बुरा बर्ताव-गीताश्रीः पूर्व मंत्री ने झारखंड के स्थानीय लोगों के साथ बिहार में हो रहे भेदभाव पर नाराजगी जताई. उन्होंने कहा कि यहां के बच्चे अगर वहां किसी सरकारी नौकरी में क्वालीफाई करते हैं तो उन्हें कॉसिलिंग से जबरन झारखंडी कहकर भगा दिया जाता है. अन्य राज्यों ने स्थानीय और नियोजन नीति बनाकर दूसरे राज्य के लोगों के लिए नौकरी में प्रतिबंधित कर रखा है. लेकिन झारखंड में सभी के लिए द्वार खोलकर रखे हैं. इसके पीछे की वजह कमजोर मुख्यमंत्री का होना है.

खतियानी झारखंडी पार्टी से अलग हुईं गीताश्रीः महज दस दिन पहले बनी खतियानी झारखंडी पार्टी से पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव अलग हो गई हैं. पार्टी से अलग होने पर गीताश्री ने कहा कि 1932 की खतियान और भाषा आंदोलन को लेकर किसी पार्टी से जुड़े रहना ठीक नहीं है, वो इसके लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थीं. सरहुल के ठीक बाद खतियानी झारखंडी पार्टी के गठन की प्रस्तावना को लेकर बैठक बुलाई गयी. सभी को सूचना के साथ निमंत्रण की बात कही गई मगर बैठक पार्टी स्थापना समारोह में तब्दील हो गया और अध्यक्ष के रूप में अमित महतो और उन्हें महासचिव बनाया गया. इस बैठक में इस आंदोलन से जुड़े प्रमुख लोग अनुपस्थित थे. आवश्यकता इस बात की है कि सभी एकजुट होकर इस लड़ाई को लड़े तभी आंदोलन सफल हो पाएगा.

रांचीः पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव ने राज्य में स्थानीयता और भाषा विवाद के लिए वर्तमान सरकार को दोषी मानते हुए जमकर निशाना साधा है. उन्होंने हेमंत सरकार के कार्यकाल में लिए गए फैसले पर सवाल खड़े करते हुए कहा कि जिस झारखंड को पाने के लिए 28 वर्षों तक हमारे पूर्वजों ने संघर्ष किया उसको अपमानित करने का काम सरकार के अटपटे फैसले ने किए हैं. अपने आवास पर मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए गीताश्री उरांव ने कहा कि झारखंडी लोगों से बिहार में बुरा बर्ताव होता है.

मंगलवार को रांची में अपने आवास पर उन्होंने प्रेस वार्ता की. गीताश्री उरांव ने भाषा को लेकर विवाद को सही मानते हुए कहा कि जिस तरह से झारखंड में बिहार की मगही, अंगिका, भोजपुरी जैसी बोली को क्षेत्रीय भाषा का दर्जा दिया गया, वह कहीं से भी उचित नहीं था. उन्होंने कहा कि 2003-04 से ही यहां मान्यता देने की बात चल रही थी जो बाद में सफल हुआ. वो झारखंड में बांग्ला और उड़िया भाषा को भी मान्यता देने का विरोध किया था. क्योंकि वह झारखंड की क्षेत्रीय भाषा नहीं है, जब भाषा के आधार पर बंगाल और ओड़िशा बन सकता है तो झारखंड क्यों नहीं.

जानकारी देतीं पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव

झारखंड के लोगों के साथ बिहार में होता है बुरा बर्ताव-गीताश्रीः पूर्व मंत्री ने झारखंड के स्थानीय लोगों के साथ बिहार में हो रहे भेदभाव पर नाराजगी जताई. उन्होंने कहा कि यहां के बच्चे अगर वहां किसी सरकारी नौकरी में क्वालीफाई करते हैं तो उन्हें कॉसिलिंग से जबरन झारखंडी कहकर भगा दिया जाता है. अन्य राज्यों ने स्थानीय और नियोजन नीति बनाकर दूसरे राज्य के लोगों के लिए नौकरी में प्रतिबंधित कर रखा है. लेकिन झारखंड में सभी के लिए द्वार खोलकर रखे हैं. इसके पीछे की वजह कमजोर मुख्यमंत्री का होना है.

खतियानी झारखंडी पार्टी से अलग हुईं गीताश्रीः महज दस दिन पहले बनी खतियानी झारखंडी पार्टी से पूर्व मंत्री गीताश्री उरांव अलग हो गई हैं. पार्टी से अलग होने पर गीताश्री ने कहा कि 1932 की खतियान और भाषा आंदोलन को लेकर किसी पार्टी से जुड़े रहना ठीक नहीं है, वो इसके लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं थीं. सरहुल के ठीक बाद खतियानी झारखंडी पार्टी के गठन की प्रस्तावना को लेकर बैठक बुलाई गयी. सभी को सूचना के साथ निमंत्रण की बात कही गई मगर बैठक पार्टी स्थापना समारोह में तब्दील हो गया और अध्यक्ष के रूप में अमित महतो और उन्हें महासचिव बनाया गया. इस बैठक में इस आंदोलन से जुड़े प्रमुख लोग अनुपस्थित थे. आवश्यकता इस बात की है कि सभी एकजुट होकर इस लड़ाई को लड़े तभी आंदोलन सफल हो पाएगा.

Last Updated : Apr 12, 2022, 11:03 PM IST
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