रांची: वैलेंटाइन डे वीक शुरू हो चुका है. बाजारों में रौनक है. वैलेंटाइन उत्सव होता क्या है? इसके बारे में कुछ साल पहले तक हमारे देश में बहुत ही कम लोग जानते थे, लेकिन आज भारत का एक बड़ा तबका वेलेंटाइन वीक सेलिब्रेट करने लगा है. ऐसे लाखों युवा वर्ग है, जो इस दिन का विशेष रूप से इंतजार करते हैं. आज के भौतिकवादी युग में जहां हर मौके और हर भावना का बाजारीकरण हो गया हो, ऐसे दौर में गिफ्ट्स, टेडी बियर, चॉकलेट और फूलों का बाजार भी इस दिन का बेसब्री से इंतजार करता है.
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बाजारवाद के दौर में प्रेम: 7 फरवरी से 14 फरवरी तक वेलेंटाइन वीक सेलिब्रेट किया जाता है. इस सप्ताह के एक-एक दिन को विशेष रूप में मनाते हैं, उसके बाद सप्ताह के अंतिम दिन यानी 14 फरवरी को फाइनली वैलेंटाइन डे सेलिब्रेट किया जाता है. हालांकि वैलेंटाइन क्या होता है, यह कुछ साल पहले तक भारत के लोग नहीं जानते थे. लेकिन बाजारीकरण के दौर में अब एक बड़ा युवा वर्ग है, जो वेलेंटाइन वीक को एक उत्सव के तौर पर मनाते हैं. अब प्रेम आपके दिल और दिल की भावनाओं तक सीमित रहने वाला नहीं रह गया. यह केवल आपका एक निजी मामला भी नहीं रह गया है.
उपभोक्तावाद और बाजारवाद के दौर में प्रेम और उसकी अभिव्यक्ति दोनों ही बाजारवाद के शिकार हो गए हैं. ऐसा मानना है दर्शन शास्त्री और शिक्षाविदों का भी. अब प्रेम मर्यादा में रहने वाली चीज नहीं है. फेसबुक इंस्टाग्राम पर शेयर करने वाली चीज बन गई है. अब प्यार वह नहीं है, जो नि:स्वार्थ होता है और बदले में कुछ नहीं चाहता. बल्कि आज प्यार वह है, जो त्याग नहीं अधिकार मांगता है और वैलेंटाइन उत्सव भी इसी का एक नतीजा है. फिलॉस्फर कहते हैं मल्टीनेशनल कंपनियां बड़ी चालाकी से भारत के लोगों को भी समझाने में सफल हो गई कि प्रेम को तो महंगे उपहार देकर जताया जाता है. वह हमें करोड़ों के विज्ञापनों से यह बात समझाने में कामयाब हो गई है और बता भी रही है कि अगर आप किसी को प्रेम करते हैं तो उसे जताने के लिए वैलेंटाइन डे इसके लिए सबसे अच्छा दिन है. यह वाकई में भारत जैसे देश के लिए दुर्भाग्य की बात है.
राधा और मीरा के देश में प्यार की अलग परिभाषा: राधा और मीरा के देश में जहां प्रेम की परिभाषा एक अलौकिक एहसास के साथ शुरू होकर समर्पण और भक्ति पर खत्म होती थी. आज उस देश में प्रेम अभिव्यक्ति और बाजारवाद की मोहताज होकर रह गई है. हालंकि कुछ युवा मानते भी हैं कि यह भारत की संस्कृति को कुचलने का एक प्रयास है और बाजारवाद पूरी तरह हावी हो चुका है. किसी भी त्योहार को मनाने या किसी संस्कृति को अपनाने में कोई बुराई नहीं है. लेकिन क्या अपने संस्कृति को रौंदकर किसी दूसरे संस्कृति में ढल जाना जायज है? यह एक बड़ा सवाल है, जैसे सांस्कृतिक रूप से समृद्ध देश को प्यार जताने के लिए विदेश से किसी खास दिन को आयात करने की आवश्यकता आखिर कैसे पड़ गई.
भारत पर्व त्योहारों का एक ऐसा देश है, जहां हर रिश्ते को संजोतने और निभाने के लिए उत्सव मनाया जाता है. रक्षाबंधन, करवा चौथ, गौरी गणेश व्रत, कृष्ण जन्माष्टमी, बसंत पंचमी, तुलसी विवाह या फिर अन्य कोई भी त्योहार, संस्कृति और रिश्तों के साथ हमेशा ही जुड़ा रहता है. इसके बावजूद भारत के युवा आज आधुनिकता और बाजारवाद के दौर में अपने संस्कृति को भूल कर वसंतोत्सव की जगह वैलेंटाइन डे मना रहे हैं और हम सिर्फ वसंतोत्सव से ही नहीं बल्कि अब प्रकृति से भी दूर हो गए हैं .
हमने केवल वैलेंटाइन डे नहीं अपनाया बाजारवाद और उपभोक्तावाद भी अपना लिया है. कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि हम मल्टीनेशनल कंपनियों के हाथों की कठपुतली बन कर खुद अपनी संस्कृति का गला घोट रहे हैं. जब हम अपने देश के त्योहारों को छोड़कर प्यार जताने के लिए वैलेंटाइन डे जैसे दिन को मनाते हैं तो फिर अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश के युवा किस दिशा में जा रहे हैं.