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खुद में सोने का कण लेकर बहने वाली नदी का उद्गम स्थल देखिए, कैसे छोटानागपुर के पठार से निकलती है स्वर्णरेखा ?

रांची से निकलने वाली स्वर्णरेखा नदी का उद्गम स्थल देखने और उसे समझने के लिए ईटीवी भारत की टीम राजधानी रांची से करीब 16 किलोमीटर दूर नगड़ी प्रखंड के पांडु पहुंची. यहीं से स्वर्णरेखा नदी के निकलने के प्रमाण मिलते हैं. नदी के उद्गम स्थल रानी चुआं के पास ही एक बड़ा तालाब है जहां से पानी लगातार निकलता रहता है और आगे जाकर स्वर्णरेखा नदी का रूप ले लेता है.

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Published : Sep 13, 2021, 1:39 PM IST

Updated : Sep 13, 2021, 6:14 PM IST

swarnrekha river
स्वर्णरेखा नदी

रांची: पहाड़ों से निकलने वाली गंगा, यमुना, गंडक जैसी नदियों के उद्गम स्थल के बारे में तो लोग जानते हैं. लेकिन पठारी क्षेत्र में नदियां कैसे निकलती हैं यह कई लोग जानना चाहते हैं. पठारी इलाके की नदियों का उद्गम स्थल देखने और उसे समझने के लिए ईटीवी भारत की टीम राजधानी रांची से करीब 16 किलोमीटर दूर नगड़ी प्रखंड के पांडु नामक जगह पर पहुंची. यहीं से स्वर्णरेखा नदी निकलने के प्रमाण मिलते हैं.

यह भी पढ़ें: झारखंडधाम की महिमा है अपरंपार, जानिए क्या है अनोखे मंदिर की अनोखी परंपरा ?

पहले कई नदियों का होता था उद्गम

आसपास के लोग बताते हैं कि पांडु के खेतों के बीच कई जगह से धरती से रिस-रिसकर पानी बाहर निकलता है और वह धीरे धीरे स्वर्णरेखा नदी का रूप ले लेता है. नगड़ी पांडु के किस्टो गोप बताते हैं कि यहां आसपास पहले तीन नदियां कोयल, कारो और स्वर्णरेखा का उद्गम होता था लेकिन अब सिर्फ स्वर्णरेखा नदी का ही उद्गम दिखाई देता है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

रांची विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञानवेत्ता और पर्यावरणविद् डॉ. नीतीश प्रियदर्शी कहते हैं कि पठारी इलाके से निकलने वाली नदियों के उद्गम के सिद्धांत को समझने की जरूरत है, क्योंकि यह दूसरी नदियों की तरह नहीं होती है. डॉ. प्रियदर्शी कहते हैं कि पठारी नदियों के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए ज्यादा सजग और सतर्क रहने की जरूरत होती है, क्योंकि इसमें नदियों का उद्गम स्थल आसपास के बड़े इलाके में वर्षा जल का पठार के अंदर जाने और फिर पानी के रिसने से होता है.

यहां आए थे पांडव

स्थानीय लोगों का कहना है कि झारखंड की प्रमुख नदी स्वर्णरेखा का उद्गम स्थल जहां है उस इलाके को पांडु कहा जाता है. नदी के उद्गम स्थल रानी चुआं के पास ही एक बड़ा तालाब है जहां से पानी लगातार निकलता रहता है. लोग बताते हैं कि महाभारत काल में इस क्षेत्र में पांचों पांडव यहां आए थे. हालांकि, पांडवों के आने का यहां कोई अवशेष नहीं बचा है.

swarnrekha river
इसी तालाब से पानी धीरे-धीरे रिसता है और आगे जाकर स्वर्णरेखा नदी का रूप ले लेता है.

पूरे इलाके को संरक्षित करने की जरूरत

भूगर्भशास्त्री डॉ. नीतीश प्रियदर्शी कहते हैं कि जरूरत है कि स्वर्णरेखा नदी के आसपास के बड़े क्षेत्र का सरकार अधिग्रहण कर उसका संरक्षण करे ताकि नदी के उद्गम स्थल पर कोई खतरा न हो.

सरकार की कोशिश नाकाफी

सरकार ने स्वर्णरेखा नदी के उद्गम स्थल को संरक्षित करने और इसे पर्यटन स्थल बनाने की कोशिश की है. हर साल लगने वाला मेला और वन महोत्सव के लिए कुछ कमरे बनाए गए हैं. ऐतिहासिक तालाब के चारों ओर फ्लोरिंग की गई लेकिन सब टूट-फूट गया है और जंगल की तरह दिखता है.

swarnrekha river
स्वर्णरेखा नदी झारखंड, ओडिशा और बंगाल होते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है.

474 किलोमीटर लंबी स्वर्णरेखा नदी है लाइफ लाइन

रांची के पठार से निकल कर बंगाल की खाड़ी में मिल जाने से पहले स्वर्णरेखा नदी 474 किलोमीटर की दूरी तय करती है. यह झारखंड, ओडिशा और बंगाल होते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है. इस सफर में स्वर्णरेखा में जहां कई सहायक नदियां मिलती हैं तो कई डैम इस नदी पर बने हैं जिससे सिंचाई और पीने का पानी लोगों को उपलब्ध होता है. पहाड़ों की ऊंचाई से नीचे गिरते झरने का रमणीय दृश्य देखते ही बनता है. स्वर्णरेखा नदी के आसपास विकास के नाम पर कई फैक्ट्री लग गई. ईंट के भट्टे से प्रदूषण का खतरा और जमीन की बढ़ती कीमत के बाद इस इलाके के शहरीकरण का खतरा है. ऐसे में जरूरत इस नदी के उद्गम स्थल को बचाए रखने की. अगर ऐसा नहीं हुआ स्वर्णरेखा नदी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगी.

रांची: पहाड़ों से निकलने वाली गंगा, यमुना, गंडक जैसी नदियों के उद्गम स्थल के बारे में तो लोग जानते हैं. लेकिन पठारी क्षेत्र में नदियां कैसे निकलती हैं यह कई लोग जानना चाहते हैं. पठारी इलाके की नदियों का उद्गम स्थल देखने और उसे समझने के लिए ईटीवी भारत की टीम राजधानी रांची से करीब 16 किलोमीटर दूर नगड़ी प्रखंड के पांडु नामक जगह पर पहुंची. यहीं से स्वर्णरेखा नदी निकलने के प्रमाण मिलते हैं.

यह भी पढ़ें: झारखंडधाम की महिमा है अपरंपार, जानिए क्या है अनोखे मंदिर की अनोखी परंपरा ?

पहले कई नदियों का होता था उद्गम

आसपास के लोग बताते हैं कि पांडु के खेतों के बीच कई जगह से धरती से रिस-रिसकर पानी बाहर निकलता है और वह धीरे धीरे स्वर्णरेखा नदी का रूप ले लेता है. नगड़ी पांडु के किस्टो गोप बताते हैं कि यहां आसपास पहले तीन नदियां कोयल, कारो और स्वर्णरेखा का उद्गम होता था लेकिन अब सिर्फ स्वर्णरेखा नदी का ही उद्गम दिखाई देता है.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

रांची विश्वविद्यालय के भूगर्भ विज्ञानवेत्ता और पर्यावरणविद् डॉ. नीतीश प्रियदर्शी कहते हैं कि पठारी इलाके से निकलने वाली नदियों के उद्गम के सिद्धांत को समझने की जरूरत है, क्योंकि यह दूसरी नदियों की तरह नहीं होती है. डॉ. प्रियदर्शी कहते हैं कि पठारी नदियों के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए ज्यादा सजग और सतर्क रहने की जरूरत होती है, क्योंकि इसमें नदियों का उद्गम स्थल आसपास के बड़े इलाके में वर्षा जल का पठार के अंदर जाने और फिर पानी के रिसने से होता है.

यहां आए थे पांडव

स्थानीय लोगों का कहना है कि झारखंड की प्रमुख नदी स्वर्णरेखा का उद्गम स्थल जहां है उस इलाके को पांडु कहा जाता है. नदी के उद्गम स्थल रानी चुआं के पास ही एक बड़ा तालाब है जहां से पानी लगातार निकलता रहता है. लोग बताते हैं कि महाभारत काल में इस क्षेत्र में पांचों पांडव यहां आए थे. हालांकि, पांडवों के आने का यहां कोई अवशेष नहीं बचा है.

swarnrekha river
इसी तालाब से पानी धीरे-धीरे रिसता है और आगे जाकर स्वर्णरेखा नदी का रूप ले लेता है.

पूरे इलाके को संरक्षित करने की जरूरत

भूगर्भशास्त्री डॉ. नीतीश प्रियदर्शी कहते हैं कि जरूरत है कि स्वर्णरेखा नदी के आसपास के बड़े क्षेत्र का सरकार अधिग्रहण कर उसका संरक्षण करे ताकि नदी के उद्गम स्थल पर कोई खतरा न हो.

सरकार की कोशिश नाकाफी

सरकार ने स्वर्णरेखा नदी के उद्गम स्थल को संरक्षित करने और इसे पर्यटन स्थल बनाने की कोशिश की है. हर साल लगने वाला मेला और वन महोत्सव के लिए कुछ कमरे बनाए गए हैं. ऐतिहासिक तालाब के चारों ओर फ्लोरिंग की गई लेकिन सब टूट-फूट गया है और जंगल की तरह दिखता है.

swarnrekha river
स्वर्णरेखा नदी झारखंड, ओडिशा और बंगाल होते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है.

474 किलोमीटर लंबी स्वर्णरेखा नदी है लाइफ लाइन

रांची के पठार से निकल कर बंगाल की खाड़ी में मिल जाने से पहले स्वर्णरेखा नदी 474 किलोमीटर की दूरी तय करती है. यह झारखंड, ओडिशा और बंगाल होते हुए बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है. इस सफर में स्वर्णरेखा में जहां कई सहायक नदियां मिलती हैं तो कई डैम इस नदी पर बने हैं जिससे सिंचाई और पीने का पानी लोगों को उपलब्ध होता है. पहाड़ों की ऊंचाई से नीचे गिरते झरने का रमणीय दृश्य देखते ही बनता है. स्वर्णरेखा नदी के आसपास विकास के नाम पर कई फैक्ट्री लग गई. ईंट के भट्टे से प्रदूषण का खतरा और जमीन की बढ़ती कीमत के बाद इस इलाके के शहरीकरण का खतरा है. ऐसे में जरूरत इस नदी के उद्गम स्थल को बचाए रखने की. अगर ऐसा नहीं हुआ स्वर्णरेखा नदी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो जाएगी.

Last Updated : Sep 13, 2021, 6:14 PM IST
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