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पड़हा जतरा का आयोजन, लकड़ी के बने हाथी, घोड़ा, शेर में निकाली गयी शोभायात्रा

रांची के बेड़ो ब्लॉक में पड़हा जतरा का आयोजन (Padha Jatra in Bero Block) किया गया. यहां दो अलग-अलग स्थानों पर आदिवासियों का ऐतिहासिक पड़हा जतरा सह सभा समारोह का आयोजन किया गया. जिसमें हजारों की संख्या में ग्रामीण शामिल हुए और पड़हा राजा की भव्य शोभायात्रा निकाली गयी.

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रांची
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Published : Jun 4, 2022, 5:32 PM IST

बेड़ो,रांचीः जिला के बेड़ो प्रखंड में दो अलग-अलग स्थानों पर आदिवासियों का ऐतिहासिक पड़हा जतरा सह सभा समारोह का आयोजन (Organizing Padha Jatra) किया गया. बेड़ो बाजारटांड़ और बारीडीह बगीचा में पड़हा प्रेमी शामिल होकर अपनी एकजुटता का परिचय दिया. दोनों स्थलों पर पड़हा निशान लकड़ी के बने हाथी, घोड़ा, शेर में सवार होकर पड़हा राजा, रंपा-चंपा और झंडों के साथ भव्य शोभायात्रा निकाली गयी.

इसे भी पढ़ें- आदिवासियों ने किया ऐतिहासिक पड़हा जतरा सभा का आयोजन, हजारों लोगों ने लिया भाग


बेड़ो बाजारटांड़: यहां 56वां वार्षिक पड़हा जतरा सह सभा समारोह का नेतृत्व विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग के पूर्व कुलपति डॉ. रवींद्र नाथ भगत ने किया. इस समारोह में पद्मश्री मुकुंद नायक व पद्मश्री मधु मंसूरी को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया. इस दौरान महोत्सव के संस्थापक सह पूर्व मंत्री स्व. करमचंद भगत को श्रद्धांजलि दी गयी. वहीं कार्यक्रम की अध्यक्षता करते डॉ. रवींद्र नाथ भगत ने कहा कि पड़हा व्यवस्था हमारी अनमोल विरासत है. पड़हा व्यवस्था जनजातीय क्षेत्र में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का सम्मिश्रित स्वरूप का प्रतीक है. इसका मूल उद्देश्य समाजिक समरसता, भाईचारा, एकता, सद्भावना और समग्र विकास है.

देखें वीडियो

इस मौके पर पड़हा राजाओं ने कहा कि वर्तमान में जनजातीय सामाजिक व सांस्कृतिक व्यवस्था को कायम रखने के लिए हमें एकजुट होकर आवाज बुलंद करनी होगी. पड़हा व्यवस्था जनजातीय सामाजिक व सांस्कृतिक परंपरा है. इस विरासत के अस्तित्व व उद्देश्य की रक्षा के लिए एकजुट होकर आवाज बुलंद उठाना होगा. इस मौके पर पड़हा राजाओं में 21 पेरो उरांव, 12 पड़हा इटकी अमन उरांव, 12 पड़हा कोटा महादेव उरांव, 21 पड़हा केसारो बबलू पहान, 22 पड़हा सिंगपुर लोदो मुंडा, 7 पड़हा नेहालू भौंरा उरांव, 21 पड़हा कुल्ली मदन उरांव, 10 पड़हा कटरमाली कोमल उरांव, 8 पड़हा चरवा उरांव, 12 पड़हा खरतंगा रंथू उरांव, 22 पड़हा सपारोम लालवंत सांगा, 24 पड़हा बजरा चरी पहान व 7 पड़हा बिरसा उरांव ने अपने विचार रखे.

इस महोत्सव को सफल बनाने में प्रो. मंगा उरांव, गोयंदा उरांव, विशु उरांव, सुकरा उरांव, मुन्ना बड़ाईक समेत दर्जनों ग्रामीणों ने सराहनीय योगदान दिया. वहीं महोत्सव का संचालन मुन्ना बड़ाईक व गोयंदा उरांव ने संयुक्त रूप से किया.

बारीडीह पड़हा जतराः बेड़ो से तीन किलोमीटर दूर स्थित बारीडीह बगीचा में केंद्रीय पड़हा संचालन समिति के संरक्षक डाॅ. दिवाकर मिंज, संरक्षक नीलमणि मिंज की अगुवाई में 33वां पड़हा जतरा में पड़हा के लोगों ने पारंपरिक वेशभूषा, पड़हा झंडे के प्रतीक चिन्ह, लकड़ी से बने घोड़े, हाथी, रंपा-चंपा, टेंगरा, छाता व खोड़हा नृत्य दल के साथ गाजा-बाजा लेकर भव्य शोभायात्रा निकाली गयी. शोभायात्रा मंच के समीप पहुंचते ही विशाल जनसभा में तब्दील हो गयी. जहं पड़हा राजा और पड़हा व्यवस्था के अगुवा को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया.


इस सभा को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता सह पड़हा संरक्षक शिक्षाविद् डॉ. दिवाकर मिंज ने कहा कि आदिवासीयों की संस्कृति को हजारों वर्ष से भ्रष्ट करने की कोशिश जारी रही है. इस बदलते परिवेश में हमारे पूर्वजों के पड़हा समाज को बचाना है जब तक हम आदिवासी हैं तबतक हमारी संस्कृति व परंपरा कायम रहेगी. उन्होंने कहा कि वर्षों से पड़हा व्यवस्था समाज के सभी वर्गों को जोड़कर रखती आ रही है. पड़हा और समाज में अन्योन्याश्रय का संबंध है.

मुख्य संरक्षक नीलमणि मिंज ने कहा कि वर्षों से पड़हा व्यवस्था समाज के सभी वर्गों को जोड़कर रखती आ रही है. पड़हा और समाज में परस्पर संबंध है. पड़हा संचालन समिति के अध्यक्ष जोगेश उरांव ने कहा कि हमारी परंपरा, संस्कृति और भाषा को बचाए रखने में ही हमारी पहचान है. अपने पूर्वजों के आर्शीवाद को आगे बढ़ाने के लिए नयी पीढ़ी को इस परंपरा को बचाना होगा. पड़हा जतरा समारोह का संचालन सचिव धनंजय कुमार राय व झिंगुवा टाना भगत ने किया. वहीं पद्यश्री सह पाड़हा राजा सिमोन उरांव, प्रो. सोमरा उरांव, एतवा उरांव, भौवा उरांव, घिनु उरांव, राकेश भगत समेत कई लोगों ने सभा को संबोधित किया. पड़हा जतरा को सफल बनाने में ग्राम प्रधान विनोद उरांव विश्वनाथ गोप, गोपाल उरांव, पीटर तिर्की, बंधना उरांव, अनिल टोप्पो, तेंबु उरांव, श्याम मुंडा, भीखा उरांव, जौवा उरांव, लोहरा उरांव, रशीद मीर, लीला मुंडा व महिला सदस्यों व समिति के लोगों ने किया.

बेड़ो,रांचीः जिला के बेड़ो प्रखंड में दो अलग-अलग स्थानों पर आदिवासियों का ऐतिहासिक पड़हा जतरा सह सभा समारोह का आयोजन (Organizing Padha Jatra) किया गया. बेड़ो बाजारटांड़ और बारीडीह बगीचा में पड़हा प्रेमी शामिल होकर अपनी एकजुटता का परिचय दिया. दोनों स्थलों पर पड़हा निशान लकड़ी के बने हाथी, घोड़ा, शेर में सवार होकर पड़हा राजा, रंपा-चंपा और झंडों के साथ भव्य शोभायात्रा निकाली गयी.

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बेड़ो बाजारटांड़: यहां 56वां वार्षिक पड़हा जतरा सह सभा समारोह का नेतृत्व विनोबा भावे विश्वविद्यालय हजारीबाग के पूर्व कुलपति डॉ. रवींद्र नाथ भगत ने किया. इस समारोह में पद्मश्री मुकुंद नायक व पद्मश्री मधु मंसूरी को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया. इस दौरान महोत्सव के संस्थापक सह पूर्व मंत्री स्व. करमचंद भगत को श्रद्धांजलि दी गयी. वहीं कार्यक्रम की अध्यक्षता करते डॉ. रवींद्र नाथ भगत ने कहा कि पड़हा व्यवस्था हमारी अनमोल विरासत है. पड़हा व्यवस्था जनजातीय क्षेत्र में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का सम्मिश्रित स्वरूप का प्रतीक है. इसका मूल उद्देश्य समाजिक समरसता, भाईचारा, एकता, सद्भावना और समग्र विकास है.

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इस मौके पर पड़हा राजाओं ने कहा कि वर्तमान में जनजातीय सामाजिक व सांस्कृतिक व्यवस्था को कायम रखने के लिए हमें एकजुट होकर आवाज बुलंद करनी होगी. पड़हा व्यवस्था जनजातीय सामाजिक व सांस्कृतिक परंपरा है. इस विरासत के अस्तित्व व उद्देश्य की रक्षा के लिए एकजुट होकर आवाज बुलंद उठाना होगा. इस मौके पर पड़हा राजाओं में 21 पेरो उरांव, 12 पड़हा इटकी अमन उरांव, 12 पड़हा कोटा महादेव उरांव, 21 पड़हा केसारो बबलू पहान, 22 पड़हा सिंगपुर लोदो मुंडा, 7 पड़हा नेहालू भौंरा उरांव, 21 पड़हा कुल्ली मदन उरांव, 10 पड़हा कटरमाली कोमल उरांव, 8 पड़हा चरवा उरांव, 12 पड़हा खरतंगा रंथू उरांव, 22 पड़हा सपारोम लालवंत सांगा, 24 पड़हा बजरा चरी पहान व 7 पड़हा बिरसा उरांव ने अपने विचार रखे.

इस महोत्सव को सफल बनाने में प्रो. मंगा उरांव, गोयंदा उरांव, विशु उरांव, सुकरा उरांव, मुन्ना बड़ाईक समेत दर्जनों ग्रामीणों ने सराहनीय योगदान दिया. वहीं महोत्सव का संचालन मुन्ना बड़ाईक व गोयंदा उरांव ने संयुक्त रूप से किया.

बारीडीह पड़हा जतराः बेड़ो से तीन किलोमीटर दूर स्थित बारीडीह बगीचा में केंद्रीय पड़हा संचालन समिति के संरक्षक डाॅ. दिवाकर मिंज, संरक्षक नीलमणि मिंज की अगुवाई में 33वां पड़हा जतरा में पड़हा के लोगों ने पारंपरिक वेशभूषा, पड़हा झंडे के प्रतीक चिन्ह, लकड़ी से बने घोड़े, हाथी, रंपा-चंपा, टेंगरा, छाता व खोड़हा नृत्य दल के साथ गाजा-बाजा लेकर भव्य शोभायात्रा निकाली गयी. शोभायात्रा मंच के समीप पहुंचते ही विशाल जनसभा में तब्दील हो गयी. जहं पड़हा राजा और पड़हा व्यवस्था के अगुवा को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया गया.


इस सभा को संबोधित करते हुए मुख्य वक्ता सह पड़हा संरक्षक शिक्षाविद् डॉ. दिवाकर मिंज ने कहा कि आदिवासीयों की संस्कृति को हजारों वर्ष से भ्रष्ट करने की कोशिश जारी रही है. इस बदलते परिवेश में हमारे पूर्वजों के पड़हा समाज को बचाना है जब तक हम आदिवासी हैं तबतक हमारी संस्कृति व परंपरा कायम रहेगी. उन्होंने कहा कि वर्षों से पड़हा व्यवस्था समाज के सभी वर्गों को जोड़कर रखती आ रही है. पड़हा और समाज में अन्योन्याश्रय का संबंध है.

मुख्य संरक्षक नीलमणि मिंज ने कहा कि वर्षों से पड़हा व्यवस्था समाज के सभी वर्गों को जोड़कर रखती आ रही है. पड़हा और समाज में परस्पर संबंध है. पड़हा संचालन समिति के अध्यक्ष जोगेश उरांव ने कहा कि हमारी परंपरा, संस्कृति और भाषा को बचाए रखने में ही हमारी पहचान है. अपने पूर्वजों के आर्शीवाद को आगे बढ़ाने के लिए नयी पीढ़ी को इस परंपरा को बचाना होगा. पड़हा जतरा समारोह का संचालन सचिव धनंजय कुमार राय व झिंगुवा टाना भगत ने किया. वहीं पद्यश्री सह पाड़हा राजा सिमोन उरांव, प्रो. सोमरा उरांव, एतवा उरांव, भौवा उरांव, घिनु उरांव, राकेश भगत समेत कई लोगों ने सभा को संबोधित किया. पड़हा जतरा को सफल बनाने में ग्राम प्रधान विनोद उरांव विश्वनाथ गोप, गोपाल उरांव, पीटर तिर्की, बंधना उरांव, अनिल टोप्पो, तेंबु उरांव, श्याम मुंडा, भीखा उरांव, जौवा उरांव, लोहरा उरांव, रशीद मीर, लीला मुंडा व महिला सदस्यों व समिति के लोगों ने किया.

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