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ओबीसी आरक्षण के बगैर निकाय चुनाव पर सियासी तकरार, रघुवर ने कहा- पिछड़ों की आंखों में धूल झोंक रहे हैं हेमंत

झारखंड के ओबीसी आरक्षण के बगैर नगर निकाय चुनाव (Municipal Elections without OBC Reservation) कराने के फैसले पर सियासी तकरार तेज हो गया है. जहां एक ओर विपक्षी दल सरकार पर निशाना साध रहे हैं वहीं सत्ताधारी दल सरकार के फैसले का बचाव कर रहे हैं.

Opposition to municipal elections without OBC reservation
Opposition to municipal elections without OBC reservation
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Published : Oct 14, 2022, 5:34 PM IST

रांची: झारखंड में आगामी दिसंबर-जनवरी में संभावित नगर निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण (Municipal Elections without OBC Reservation) के सवाल पर सियासी तकरार तेज हो गई है. राज्य सरकार ने सभी 49 नगर निकायों के चुनाव ओबीसी आरक्षण के बगैर कराने का निर्णय लिया है. इस आशय के प्रस्ताव को कैबिनेट ने भी मंजूरी दे दी है. राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा के अलावा आजसू और पिछड़ा वर्ग के संगठनों ने इस फैसले को ओबीसी समुदाय के हक पर हमला बताया है. राज्य के कई हिस्सों में इन राजनीतिक पार्टियों और संगठनों के लोग सरकार के इस निर्णय को वापस लेने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- बगैर ओबीसी आरक्षण के नगर निकाय चुनाव कराने के फैसले पर उठ रहे सवाल, जानिए सरकार ने क्यों लिया फैसला

झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास ने कहा है कि हेमंत सोरेन की सरकार एक ओर कैबिनेट में ओबीसी समुदाय को 27 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव पास करती है तो दूसरी तरफ कैबिनेट की अगली ही बैठक में राज्य में नगर निकायों के चुनाव ओबीसी आरक्षण के निर्धारण के बगैर कराने का निर्णय ले लेती है. दरअसल, ये परस्पर विरोधी फैसले ये बताते हैं कि हेमंत सोरेन राज्य में पिछड़ों की आंखों में धूल झोंक रहे हैं. उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि अगर सीएम वाकई राज्य में ओबीसी समुदाय को 27 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित करना चाहते हैं तो इस फैसले को लागू करने की तारीख क्यों नहीं तय करते? रघुवर दास ने कहा कि पंचायत चुनाव के समय सर्वोच्च न्यायालय में इसी सरकार ने ओबीसी आरक्षण मामले में त्रिस्तरीय कमेटी गठित कर आंकड़े इकट्ठा करने के लिए अंडरटेकिंग सर्टिफिकेट दिया था, लेकिन अब ऐसी कोई कमेटी के गठन के पहले ही ओबीसी आरक्षण पर कैबिनेट में फैसले पारित करने से सरकार की बदनीयती उजागर हो गई है.

इधर, आजसू अध्यक्ष सुदेश महतो ने कहा है कि राज्य सरकार ने साजिश के तहत निकाय चुनावों में ओबीसी तबके को आरक्षण से वंचित कर दिया है. इसके पहले पंचायत चुनाव में भी ओबीसी तबके को आरक्षण से वंचित रखा गया. अब कैबिनेट के ताजा फैसले के अनुसार निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग को अनारक्षित श्रेणी माना जायेगा. इसी आधार पर वर्ष 2023 में सभी नगर निकायों के चुनाव कराये जायेंगे. सरकार बेहद सोच-समझ कर ओबीसी के लिए आरक्षित विभिन्न स्तर के हजारों पदों को समाप्त कर रही है. ओबीसी आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट कराने की नीयत होती तो यह हकमारी नहीं होती. झारखंड में वैसे भी ओबीसी को महज 14 फीसदी आरक्षण हासिल है जबकि इस वर्ग की आबादी लगभग 51 फीसदी है. इधर पिछड़ा वर्ग के संगठनों का दावा है कि नगर निकायों के चुनाव अगर ओबीसी आरक्षण के प्रावधान के साथ होते तो इस समुदाय के हिस्से में 9077 आरक्षित सीटें आतीं. सरकार ने ये सीटें खत्म कर दी हैं.

दूसरी तरफ झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं कि यह हमारी ही सरकार है, जिसने राज्य में पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया है. भाजपा की पूर्ववर्ती सरकार ने तो राज्य में पिछड़ों का आरक्षण प्रतिशत घटा दिया था.

रांची: झारखंड में आगामी दिसंबर-जनवरी में संभावित नगर निकाय चुनावों में ओबीसी आरक्षण (Municipal Elections without OBC Reservation) के सवाल पर सियासी तकरार तेज हो गई है. राज्य सरकार ने सभी 49 नगर निकायों के चुनाव ओबीसी आरक्षण के बगैर कराने का निर्णय लिया है. इस आशय के प्रस्ताव को कैबिनेट ने भी मंजूरी दे दी है. राज्य की प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा के अलावा आजसू और पिछड़ा वर्ग के संगठनों ने इस फैसले को ओबीसी समुदाय के हक पर हमला बताया है. राज्य के कई हिस्सों में इन राजनीतिक पार्टियों और संगठनों के लोग सरकार के इस निर्णय को वापस लेने की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहे हैं.

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झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रघुवर दास ने कहा है कि हेमंत सोरेन की सरकार एक ओर कैबिनेट में ओबीसी समुदाय को 27 फीसदी आरक्षण देने का प्रस्ताव पास करती है तो दूसरी तरफ कैबिनेट की अगली ही बैठक में राज्य में नगर निकायों के चुनाव ओबीसी आरक्षण के निर्धारण के बगैर कराने का निर्णय ले लेती है. दरअसल, ये परस्पर विरोधी फैसले ये बताते हैं कि हेमंत सोरेन राज्य में पिछड़ों की आंखों में धूल झोंक रहे हैं. उन्होंने पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि अगर सीएम वाकई राज्य में ओबीसी समुदाय को 27 फीसदी आरक्षण सुनिश्चित करना चाहते हैं तो इस फैसले को लागू करने की तारीख क्यों नहीं तय करते? रघुवर दास ने कहा कि पंचायत चुनाव के समय सर्वोच्च न्यायालय में इसी सरकार ने ओबीसी आरक्षण मामले में त्रिस्तरीय कमेटी गठित कर आंकड़े इकट्ठा करने के लिए अंडरटेकिंग सर्टिफिकेट दिया था, लेकिन अब ऐसी कोई कमेटी के गठन के पहले ही ओबीसी आरक्षण पर कैबिनेट में फैसले पारित करने से सरकार की बदनीयती उजागर हो गई है.

इधर, आजसू अध्यक्ष सुदेश महतो ने कहा है कि राज्य सरकार ने साजिश के तहत निकाय चुनावों में ओबीसी तबके को आरक्षण से वंचित कर दिया है. इसके पहले पंचायत चुनाव में भी ओबीसी तबके को आरक्षण से वंचित रखा गया. अब कैबिनेट के ताजा फैसले के अनुसार निकाय चुनाव में पिछड़ा वर्ग को अनारक्षित श्रेणी माना जायेगा. इसी आधार पर वर्ष 2023 में सभी नगर निकायों के चुनाव कराये जायेंगे. सरकार बेहद सोच-समझ कर ओबीसी के लिए आरक्षित विभिन्न स्तर के हजारों पदों को समाप्त कर रही है. ओबीसी आरक्षण के लिए ट्रिपल टेस्ट कराने की नीयत होती तो यह हकमारी नहीं होती. झारखंड में वैसे भी ओबीसी को महज 14 फीसदी आरक्षण हासिल है जबकि इस वर्ग की आबादी लगभग 51 फीसदी है. इधर पिछड़ा वर्ग के संगठनों का दावा है कि नगर निकायों के चुनाव अगर ओबीसी आरक्षण के प्रावधान के साथ होते तो इस समुदाय के हिस्से में 9077 आरक्षित सीटें आतीं. सरकार ने ये सीटें खत्म कर दी हैं.

दूसरी तरफ झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय प्रवक्ता सुप्रियो भट्टाचार्य कहते हैं कि यह हमारी ही सरकार है, जिसने राज्य में पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया है. भाजपा की पूर्ववर्ती सरकार ने तो राज्य में पिछड़ों का आरक्षण प्रतिशत घटा दिया था.

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