रांचीः एक समय था जब महिलाओं के लिए घर की दहलीज के बाहर कदम रखना मुश्किल था. वक्त बदला, जीने के तौर तरीके बदले और हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी भी बढ़ी. जिसका जीता जागता उदाहरण लॉ क्षेत्र है, जहां कभी महिलाओं की भागीदारी नहीं के बराबर रहती थी मगर तेजी से बदल रहे सामाजिक ताना-बाना में ये महिलाएं आज न्यायिक कामकाज की अभिन्न हिस्सा बन गई हैं.
न्यायिक क्षेत्र में महिलाओं की तेजी से बढ़ रही संख्या यह बताने के लिए काफी है कि इनकी रुचि किस कदर ज्यूडिशियरी के प्रति बढ़ी है. रांची सिविल कोर्ट में अपने संघर्ष के बल पर पहचान बनाने वाली अधिवक्ता तमन्ना कहती हैं कि चुनौती तो हर क्षेत्र में है आप पर निर्भर करता है कि आपका अपने काम के प्रति आत्मविश्वास कैसा है, जो आपको पहचान दिलाती है. अधिवक्ता द्रौपदी कुमारी महतो कहती हैं कि आज महिलाएं जागरूक हो चुकी हैं और अपने अधिकार के साथ साथ दूसरों को न्याय दिलाने के लिए आगे आ चुकी हैं.
स्टेट बार कॉउसिल में निबंधित महिला अधिवक्ताः
महिलाओं को मिल रहा पारिवारिक सपोर्टः रांची सिविल कोर्ट में तो प्रतिदिन प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ताओं में 40 फीसदी महिला अधिवक्ता हैं. जिला बार एसोसिएशन के सचिव संजय विद्रोही कहते हैं कि हाल के वर्षों में लॉ के प्रति महिलाओं के बढ़े रुझान की वजह पारिवारिक सपोर्ट है, जो पहले आम तौर पर नहीं मिलता था. ये महिला सशक्तिकरण का परिचायक है, जो खुद आत्मनिर्भर होने के लिए न्यायिक सेवा में कदम बढ़ा रही हैं. स्टेट बार काउंसिल के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो हर साल जारी होने वाले लाइसेंस में महिला अधिवक्ताओं की भागीदारी बढ़ रही है. राज्य गठन के बाद से 2022 तक करीब 4016 महिला अधिवक्ताओं का लाइसेंस जारी किया गया है.