रांची: बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में गुरूवार को नॉर्मन अर्नेस्ट बोरलॉग की जयंती मनाई गई. समारोह को संबोधित करते हुए, कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने कहा कि अमेरिकी कृषि वैज्ञानिक बोरलॉग को विश्व में हरित क्रांति का पिता माना जाता है. इन्होंने 1970 के दशक में मैक्सिको में बीमारियों से लड़ सकने वाली गेहूं की एक नई किस्म विकसित की थी.
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उनकी यह समझ थी कि अगर पौधे की लंबाई कम कर दी जाए, तो इससे बची हुई ऊर्जा उसके बीजों यानी दानों में लगेगी, जिससे दाना ज्यादा बढ़ेगा, लिहाजा कुल फसल उत्पादन बढ़ेगा. बोरलॉग ने सेमी ड्वार्फ कहलाने वाले इस किस्म के गेहूं बीज को विभिन्न देशों खासकर भारत और पाकिस्तान भेजा. इससे इन देशों की खेती का पूरा नक्शा ही बदल गया. उनके इस एक फसल किस्म के विकास ने पूरे विश्व को खाद्यान संकट और भूखमरी से निजात दिलाने में सफल रही. बोरलॉग ने हरित क्रांति से देश-विदेश के भावी पीढ़ी की खाद्यान समस्या को नई दिशा दी. आज के कृषि वैज्ञानिकों को भी भावी पीढ़ी की खाद्यान और पोषण सुरक्षा के लिए कुछ नवाचार किये जाने की जरूरत है. उन्हें झारखंड के छोटे एवं सीमांत किसानों और देश हित में बेहतर योगदान देने की आवश्यकता है.
स्वागत भाषण में डीन एग्रीकल्चर डॉ एमएस यादव ने कहा कि बोरलॉग का जन्म 25 मार्च 1914 को हुआ और उनकी मृत्यु 12 सितम्बर 2009 को हुई. बोरलॉग उन पांच लोगों में से एक हैं, जिन्हें नोबेल शांति पुरस्कार, स्वतंत्रता का राष्ट्रपति पदक और कांग्रेस के गोल्ड मेडल को प्रदान किया गया था. इसके अलावा उन्हें भारत का दूसरा सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण प्रदान किया गया था. बोरलॉग की खोजों से दुनिया के करोड़ों लोगों की जीवन बची है.
मौके पर अन्य वक्ताओं डॉ डीके शाही, डॉ बीके अग्रवाल एवं प्रो डीके रूसिया ने बोरलॉग को कृषि क्षेत्र के अग्रिम पंक्ति के वैज्ञानिक के साथ एक कुशल पौधा प्रजनन व अनुवंशिकी, शस्य एवं पौधा रोग वैज्ञानिक बताया. जिनके प्रयासों वैश्विक खाद्यान संकट दूर हुई. भारत में हरित क्रांति को गति मिली और देश आज खाद्यान मामले में आत्मनिर्भर हो चला है. कृषि वैज्ञानिकों के लिए उनका योगदान अनूकरणीय है. मौके पर डॉ एसके पाल, डॉ पीके सिंह, डॉ सोहन राम, डॉ मनिगोपा चक्रवर्ती, डॉ रेखा सिन्हा, डॉ राकेश कुमार, डॉ अशोक सिंह, डॉ पी महापात्रा, डॉ अरविन्द कुमार, डॉ सीएस सिंह, डॉ नेहा पांडे सहित अनेकों वैज्ञानिक मौजूद थे.