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सांसद निशिकांत दुबे ने संसद में उठाया 41साल पुराना बिहार-बंगाल एग्रीमेंट, कहा- केंद्र सरकार करे हस्तक्षेप - Bihar-Bengal Agreement

बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में स्पीकर से अनुरोध किया कि 19 जुलाई 1978 और 1967 में हुए बंगाल और बिहार सरकार से हुए एग्रीमेंट पर केंद्र सरकार हस्तक्षेप करे. उन्होंने संसद में इस मुद्दे पर कार्रवाई और एक कमेटी बनाने की बात कही.

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बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे
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Published : Dec 10, 2019, 5:12 PM IST

नई दिल्लीः झारखंड के गोड्डा संसदीय क्षेत्र से सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में बिहार-बंगाल को लेकर 19 जुलाई 1978 में हुए एग्रीमेंट का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि बिहार और बंगाल के बीच तय हुए इस एग्रीमेंट का पालन न तो बिहार और न ही बंगाल सरकार कर रही है.

देखें पूरी खबर
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि मयूराक्षी, मैथन और पंचेत डैम का पूरा पानी बंगाल इस्तेमाल करता है. ये सभी डैम झारखंड की जमीन पर बने हुए हैं, लेकिन इनका पूरा पानी और बिजली बंगाल के उपयोग में आता है. आज इस एग्रीमेंट को साइन हुए 41 साल हो गए हैं, लेकिन बंगाल सरकार इसका पालन नहीं कर रही है. उन्होंने कहा कि इस एग्रीमेंट में यह बात तय हुई थी कि बंगाल सरकार ने अपने खर्च पर अजय नदी के बदले काली पहाड़ी डैम, मयूराक्षी नदी पर सिदेश्वरी नून डैम और बराकर पर बिल पहाड़ी डैम बनाने का वादा किया था. आज 41 साल बाद भी इस मुद्दे पर किसी भी तरह की मीटिंग नहीं की गई है. वहीं, निशिकांत दुबे ने कहा कि देवघर से निकलने वाली चानन नदी का पूरा पानी बिहार में इस्तेमाल होता है. बिहार से एग्रीमेंट साइन हुए 52 साल होने वाला है, लेकिन अब तक कोई भी पहल नहीं की गई. निशिकांत दुबे ने संसद में आग्रह किया कि इस तरह के अंतर राज्यीय विवाद, जिसमें सरकारें एग्रीमेंट को पालन नहीं कर रही हैं. उसपर भारत सरकार हस्तक्षेप करे. उन्होंने अनुरोध किया कि बंगाल में पानी रोका जाए और डैम से इनको पानी न देकर, झारखंड को पानी दिया जाए. उन्होंने कहा कि यदि झारखंड को पानी नहीं मिलेगा तो, यहां के किसान मर जाएंगे. संथाल परगना में एक साल पानी पड़ता है और 2 साल सुखाड़ होता है. हम पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं, इसलिए इस मुद्दे पर कार्रवाई की जाए और एक कमेटी बननी चाहिए. उन्होंने कहा कि या तो भारत सरकार इसमें हस्तक्षेप करे, बंगाल का पानी रोके और इन सभी डैम से इनको पानी न देकर, झारखंड को पानी दे, यदि झारखंड को पानी नहीं मिलेगा तो, यहां के किसान मर जाएंगे. संथाल परगना में एक साल पानी पड़ता है और 2 साल सुखाड़ होता है. हम पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं, इसलिए इस मुद्दे पर कार्रवाई की जाए और एक कमेटी बननी चाहिए.

क्या है समझौता

  • समझौते के अनुसार, निर्माण, मरम्मत और विस्थापन का पूरा व्यय बंगाल सरकार को करना होगा. इसके साथ ही विस्थापितों को सिंचित जमीन भी देनी होगी
  • दूसरे समझौते के तहत 19 जुलाई 1978 को हुआ था, मसानजोर डैम को लेकर बंगाल और बिहार सरकार के बीच एक एग्रीमेंट हुआ था. एग्रीमेंट 10 बिंदुओं पर हुआ था, लेकिन बंगाल सरकार की तरफ से एग्रीमेंट की एक भी शर्त पूरी नहीं की गई है.
  • एग्रीमेंट में मयूराक्षी के अलावा इसकी सहायक नदियों सिद्धेश्वरी और नूनबिल के जल बंटवारे को भी शामिल किया गया था. इसके अनुसार, बंगाल सरकार को ये ध्यान रखना था कि को पानी लेते समय मसानजोर डैम का जलस्तर कभी भी 363 फीट से नीचे नहीं आए, ताकि झारखंड के दुमका की सिंचाई प्रभावित न हो.
  • बंगाल सरकार को एक अतिरिक्त सिद्धेश्वरी-नूनबिल डैम बनाना था, जिसमें झारखंड के लिए डैम के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र का 10,000 एकड़ फीट पानी दुमका जिला के रानीश्वर क्षेत्र के लिए रिजर्व रखना था.
  • इस एग्रीमेंट में यह भी स्पष्ट लिखा गया है कि, यदि बंगाल सरकार एग्रीमेंट का अनुपालन नहीं करती है, तो डैम के ऑर्बिट्रेटर सुप्रीम कोर्ट के जज होंगे. एग्रीमेंट हुए 40 साल बीत गये, बंगाल सरकार ने करार के मुताबिक, न तो दो नए डैम बनाए, न बिजली दे रही है और न ही पानी.

नई दिल्लीः झारखंड के गोड्डा संसदीय क्षेत्र से सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में बिहार-बंगाल को लेकर 19 जुलाई 1978 में हुए एग्रीमेंट का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि बिहार और बंगाल के बीच तय हुए इस एग्रीमेंट का पालन न तो बिहार और न ही बंगाल सरकार कर रही है.

देखें पूरी खबर
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने कहा कि मयूराक्षी, मैथन और पंचेत डैम का पूरा पानी बंगाल इस्तेमाल करता है. ये सभी डैम झारखंड की जमीन पर बने हुए हैं, लेकिन इनका पूरा पानी और बिजली बंगाल के उपयोग में आता है. आज इस एग्रीमेंट को साइन हुए 41 साल हो गए हैं, लेकिन बंगाल सरकार इसका पालन नहीं कर रही है. उन्होंने कहा कि इस एग्रीमेंट में यह बात तय हुई थी कि बंगाल सरकार ने अपने खर्च पर अजय नदी के बदले काली पहाड़ी डैम, मयूराक्षी नदी पर सिदेश्वरी नून डैम और बराकर पर बिल पहाड़ी डैम बनाने का वादा किया था. आज 41 साल बाद भी इस मुद्दे पर किसी भी तरह की मीटिंग नहीं की गई है. वहीं, निशिकांत दुबे ने कहा कि देवघर से निकलने वाली चानन नदी का पूरा पानी बिहार में इस्तेमाल होता है. बिहार से एग्रीमेंट साइन हुए 52 साल होने वाला है, लेकिन अब तक कोई भी पहल नहीं की गई. निशिकांत दुबे ने संसद में आग्रह किया कि इस तरह के अंतर राज्यीय विवाद, जिसमें सरकारें एग्रीमेंट को पालन नहीं कर रही हैं. उसपर भारत सरकार हस्तक्षेप करे. उन्होंने अनुरोध किया कि बंगाल में पानी रोका जाए और डैम से इनको पानी न देकर, झारखंड को पानी दिया जाए. उन्होंने कहा कि यदि झारखंड को पानी नहीं मिलेगा तो, यहां के किसान मर जाएंगे. संथाल परगना में एक साल पानी पड़ता है और 2 साल सुखाड़ होता है. हम पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं, इसलिए इस मुद्दे पर कार्रवाई की जाए और एक कमेटी बननी चाहिए. उन्होंने कहा कि या तो भारत सरकार इसमें हस्तक्षेप करे, बंगाल का पानी रोके और इन सभी डैम से इनको पानी न देकर, झारखंड को पानी दे, यदि झारखंड को पानी नहीं मिलेगा तो, यहां के किसान मर जाएंगे. संथाल परगना में एक साल पानी पड़ता है और 2 साल सुखाड़ होता है. हम पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं, इसलिए इस मुद्दे पर कार्रवाई की जाए और एक कमेटी बननी चाहिए.

क्या है समझौता

  • समझौते के अनुसार, निर्माण, मरम्मत और विस्थापन का पूरा व्यय बंगाल सरकार को करना होगा. इसके साथ ही विस्थापितों को सिंचित जमीन भी देनी होगी
  • दूसरे समझौते के तहत 19 जुलाई 1978 को हुआ था, मसानजोर डैम को लेकर बंगाल और बिहार सरकार के बीच एक एग्रीमेंट हुआ था. एग्रीमेंट 10 बिंदुओं पर हुआ था, लेकिन बंगाल सरकार की तरफ से एग्रीमेंट की एक भी शर्त पूरी नहीं की गई है.
  • एग्रीमेंट में मयूराक्षी के अलावा इसकी सहायक नदियों सिद्धेश्वरी और नूनबिल के जल बंटवारे को भी शामिल किया गया था. इसके अनुसार, बंगाल सरकार को ये ध्यान रखना था कि को पानी लेते समय मसानजोर डैम का जलस्तर कभी भी 363 फीट से नीचे नहीं आए, ताकि झारखंड के दुमका की सिंचाई प्रभावित न हो.
  • बंगाल सरकार को एक अतिरिक्त सिद्धेश्वरी-नूनबिल डैम बनाना था, जिसमें झारखंड के लिए डैम के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र का 10,000 एकड़ फीट पानी दुमका जिला के रानीश्वर क्षेत्र के लिए रिजर्व रखना था.
  • इस एग्रीमेंट में यह भी स्पष्ट लिखा गया है कि, यदि बंगाल सरकार एग्रीमेंट का अनुपालन नहीं करती है, तो डैम के ऑर्बिट्रेटर सुप्रीम कोर्ट के जज होंगे. एग्रीमेंट हुए 40 साल बीत गये, बंगाल सरकार ने करार के मुताबिक, न तो दो नए डैम बनाए, न बिजली दे रही है और न ही पानी.
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बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में स्पीकर से अनुरोध किया कि 19 जुलाई 1978 और 1967 में हुए बंगाल और बिहार सराकर से हुए एग्रीमेंट पर  भारत सरकार हस्तक्षेप करे. उन्होंने संसद में इस मुद्दे पर कार्यवाही और एक कमेटी बनाने की बात कही. 

नई दिल्लीः झारखंड के गोड्डा संसदीय क्षेत्र से सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा में 19 जुलाई 1978 में हुए एग्रीमेंट का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा कि बिहार और बंगाल के बीच तय हुए इस एग्रीमेंट का पालन न तो बिहार और न ही बंगाल सरकार कर रही है . 

बीजेपी सांसद निशिकांत ने कहा कि मयूराक्षी, मैथन और पंचेत डैम का पूरा पानी बंगाल इस्तेमाल करता है. ये सभी डैम झारखंड की जमीन पर बने हुए हैं, लेकिन इनका पूरा पानी और बिजली बंगाल के उपयोग में आता है. आज इस एग्रीमेंट को साइन हुए 41 साल हो गए हैं, लेकिन बंगाल सरकार अपने इसका पालन नहीं कर रही है. उन्होंने कहा कि इस एग्रीमेंट में ये बात तय हुई थी कि बंगाल सरकार ने अपने खर्च पर अजय नदी के बदले काली पहाड़ी डैम, मयूराक्षी नदी पर सिदेश्वरी नून डैम और बराकर पर बिल पहाड़ी डैम बनाने का वादा किया था. आज 41 साल बाद भी इस मुद्दे पर किसी भी तरह की मीटिंग नहीं की गई है. 

वहीं, निशिकांत दुबे ने कहा कि देवघर से निकलने वाली चानन नदी का पूरा पानी बिहार में इस्तेमाल होता है. बिहार से एग्रीमेंट साइन हुए 52 साल होने वाला है, लेकिन अब तक कोई भी पहल नहीं की गई.  

निशिकांत दुबे ने संसद में आग्रह किया कि इस तरह के अंतर राज्यीय विवाद, जिसमें सरकारें अग्रीमेंट को पालन नहीं कर रही हैं. उसपर भारत सरकार हस्तक्षेप करे. उन्होंने अनुरोध किया कि बंगाल में पानी रोका जाए और डैम से इनको पानी न देकर, झारखंड को पानी दिया जाए. उन्होंने कहा कि यदि झारखंड को पानी नहीं मिलेगा तो, यहां के किसान मर जाएंगे. संथाल परगना में  एक साल पानी पड़ता है और 2 साल सुखाड़ होता है. हम पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं, इसलिए इस मुद्दे पर कार्यवाही की जाए और एक कमेटी बननी चाहिए. 

उन्होंने कहा कि या तो भारत सरकार इसमें हस्तक्षेप करे, बंगाल का पानी रोके और ये सभी डैम से इनको पानी न देकर, झारखंड को पानी दे, यदि झारखंड को पानी नहीं मिलेगा तो, यहां के किसान मर जाएंगे. संथाल परगना में  एक साल पानी पड़ता है और 2 साल सुखाड़ होता है. हम पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं, इसलिए इस मुद्दे पर कार्यवाही की जाए और एक कमेटी बननी चाहिए. 



क्या है समझौता 

समझौते के अनुसार, निर्माण, मरम्मत और विस्थापन का पूरा व्यय बंगाल सरकार को करना होगा. इसके साथ ही विस्थापितों को सिंचित जमीन भी देनी होगी.

दूसरे समझौते के तहत 19 जुलाई 1978 को हुआ था, मसानजोर डैम को लेकर बंगाल और बिहार सरकार के बीच एक एग्रीमेंट हुआ था. एग्रीमेंट 10 बिंदुओं पर हुआ था, लेकिन बंगाल सरकार की तरफ से एग्रीमेंट की एक भी शर्त पूरी नहीं की गई है. 

एग्रीमेंट में मयूराक्षी के अलावा इसकी सहायक नदियों सिद्धेश्वरी और नूनबिल के जल बंटवारे को भी शामिल किया गया था. इसके अनुसार, बंगाल सरकार को ये ध्यान रखना था कि को पानी लेते समय मसानजोर डैम का जलस्तर कभी भी 363 फीट से नीचे नहीं आए, ताकि झारखंड के दुमका की सिंचाई प्रभावित न हो.

बंगाल सरकार को एक अतिरिक्त सिद्धेश्वरी-नूनबिल डैम बनाना था, जिसमें झारखंड के लिए डैम के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र का 10,000 एकड़ फीट पानी दुमका जिला के रानीश्वर क्षेत्र के लिए रिजर्व रखना था.

इस एग्रीमेंट में यह भी स्पष्ट लिखा गया है कि, यदि बंगाल सरकार एग्रीमेंट का अनुपालन नहीं करती है, तो डैम के ऑर्बिट्रेटर सुप्रीम कोर्ट के जज होंगे. एग्रीमेंट हुए 40 साल बीत गये, बंगाल सरकार ने करार के मुताबिक, न तो दो नए डैम बनाए, न बिजली दे रही है और न ही पानी.

 


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