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अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका 'द बायोब्रियो' के नए वेबसाइट का लोकार्पण, झारखंड के पौधों के बारे में दी गई खास जानकारी - सेंटर फॉर सोशल एंड एनवायर्नमेंटल रिसर्च

सेंटर फॉर सोशल एंड एनवायरमेंटल रिसर्च की अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका 'द बायोब्रियो' के नए वेबसाइट का लोकार्पण किया गया. साथ ही रांची विश्वविद्यालय के बॉटनी विभाग के डॉ प्रसनजीत मुखर्जी को इस शोध पत्रिका का नया प्रधान संपादक बनाया गया. इस मौके पर झारखंड में मौजूद कुछ आक्रमणकारी पौधों के बारे में जानकारी दी गई.

Research Journal The Biobrio
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Published : Jun 26, 2023, 8:01 AM IST

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रांची: झारखंड में कुछ ऐसे भी पौधे मौजूद हैं, जो दूसरे पौधे के लिए हानिकारक होते हैं. जलकुंभी, गाजर घास और क्रोमोलिना कुछ ऐसे ही पौधे हैं. तालाबों में जलकुंभी का प्रकोप है. वहीं क्रोमोलिना के कारण पुटुस के पौधे समाप्त हो रहे हैं. ये सारी बातें सेंटर फॉर सोशल एंड एनवायरमेंटल रिसर्च की अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका 'द बायोब्रियो' के नए प्रधान संपादक डॉ प्रसनजीत मुखर्जी ने कही. मौका सेंटर फॉर सोशल एंड एनवायरमेंटल रिसर्च की अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका 'द बायोब्रियो' के नए वेबसाइट के लोकार्पण का था.

यह भी पढ़ें: जनजातियों पर रिसर्च कैसे करेगा टीआरआई, नहीं हैं यहां शोध पदाधिकारी

रांची विश्वविद्यालय के बॉटनी विभाग के डॉ प्रसनजीत मुखर्जी को शोध पत्रिका का नया प्रधान संपादक बनाया गया है. इनसे पहले डॉ ज्योति कुमार इसकी जिम्मेवारी संभाल रहे थे. 2014 से प्रकाशित शोध पत्रिका में झारखंड के इकोलॉजी एंड एनवायरमेंट में हो रहे बदलाव, पर्यावरणीय समस्या सहित कई शोध को अबतक समाहित किया गया है.

कुछ पौधे भी आक्रमणकारी होते हैं- डॉ प्रसनजीत मुखर्जी: अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका 'द बायोब्रियो' के 10 साल पूरे होने पर इसके नए प्रधान संपादक बनाये गए डॉ प्रसनजीत मुखर्जी ने कहा कि इस शोध पत्रिका में देश के अलग-अलग क्षेत्रों के 200 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं. उन्होंने झारखंड के संदर्भ में बताया कि राज्य के सभी 24 जिलों में तालाबों में जलकुंभी का प्रकोप है. जलकुंभी कैसे बढ़ता है और कैसे एक जोड़ी जलकुंभी एक वर्ष में अपनी संख्या 48 हजार कर लेता है, यह सब शोध का विषय है.

उन्होंने कहा कि कई पौधे भी आक्रमणकारी होते हैं. वह दूसरे पौधों के लिए खतरा बन जाते हैं. जलकुंभी, गाजर घास, क्रोमोलिना जैसे पौधे आक्रमणकारी की श्रेणी वाले ही हैं. उन्होंने बताया कि झारखंड में क्रोमोलिना नामक पौधा पुटुस के पौधे को समाप्त कर रहा है. उन्होंने बताया कि डिस्टिलरी तालाब के खत्म होने से कितनी प्रजातियों के पौधे को नुकसान पहुंचा है, इन दिनों राजधानी रांची में तापमान लगातार क्यों बढ़ रहा है, सघन वन कैसे कम होते गए हैं, इन सभी जन सरोकार से जुड़े सवालों का जवाब इस शोध पत्रिका के अलग-अलग वॉल्यूम में है.

'शोध पत्रिका के प्रकाशन से नए शोधार्थी को मिल रहा फायदा': 'द बायोब्रियो' के निवर्तमान प्रधान संपादक डॉ ज्योति कुमार ने कहा कि पहले लाइफ साइंस के शोधार्थियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था, क्योंकि हर शोध के लिए रिसर्च पेपर का छपना जरूरी होता है. ऐसे में 2014 में रांची विश्वविद्यालय के बॉटनी विभाग और सेंटर फॉर सोशल एंड एनवायरमेंटल रिसर्च ने मिलकर रांची से अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका 'द बायोब्रियो' का प्रकाशन शुरू किया, जो आज भी सफलतापूर्वक नए शोधार्थियों को मदद कर रहा है. आज के कार्यक्रम के दौरान सेंटर फॉर सोशल एंड एनवायरमेंटल रिसर्च रांची और शोध पत्रिका 'द बायोब्रियो' से जुड़े निलय कुमार सिंह, अनिल कुमार, डॉ रितेश कुमार, डॉ सुमित पाठक, रवि, राहुल, पीयूष कुमार और अनंत आनंद झा भी उपस्थित थे.

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रांची: झारखंड में कुछ ऐसे भी पौधे मौजूद हैं, जो दूसरे पौधे के लिए हानिकारक होते हैं. जलकुंभी, गाजर घास और क्रोमोलिना कुछ ऐसे ही पौधे हैं. तालाबों में जलकुंभी का प्रकोप है. वहीं क्रोमोलिना के कारण पुटुस के पौधे समाप्त हो रहे हैं. ये सारी बातें सेंटर फॉर सोशल एंड एनवायरमेंटल रिसर्च की अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका 'द बायोब्रियो' के नए प्रधान संपादक डॉ प्रसनजीत मुखर्जी ने कही. मौका सेंटर फॉर सोशल एंड एनवायरमेंटल रिसर्च की अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका 'द बायोब्रियो' के नए वेबसाइट के लोकार्पण का था.

यह भी पढ़ें: जनजातियों पर रिसर्च कैसे करेगा टीआरआई, नहीं हैं यहां शोध पदाधिकारी

रांची विश्वविद्यालय के बॉटनी विभाग के डॉ प्रसनजीत मुखर्जी को शोध पत्रिका का नया प्रधान संपादक बनाया गया है. इनसे पहले डॉ ज्योति कुमार इसकी जिम्मेवारी संभाल रहे थे. 2014 से प्रकाशित शोध पत्रिका में झारखंड के इकोलॉजी एंड एनवायरमेंट में हो रहे बदलाव, पर्यावरणीय समस्या सहित कई शोध को अबतक समाहित किया गया है.

कुछ पौधे भी आक्रमणकारी होते हैं- डॉ प्रसनजीत मुखर्जी: अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका 'द बायोब्रियो' के 10 साल पूरे होने पर इसके नए प्रधान संपादक बनाये गए डॉ प्रसनजीत मुखर्जी ने कहा कि इस शोध पत्रिका में देश के अलग-अलग क्षेत्रों के 200 से अधिक शोध पत्र प्रकाशित हुए हैं. उन्होंने झारखंड के संदर्भ में बताया कि राज्य के सभी 24 जिलों में तालाबों में जलकुंभी का प्रकोप है. जलकुंभी कैसे बढ़ता है और कैसे एक जोड़ी जलकुंभी एक वर्ष में अपनी संख्या 48 हजार कर लेता है, यह सब शोध का विषय है.

उन्होंने कहा कि कई पौधे भी आक्रमणकारी होते हैं. वह दूसरे पौधों के लिए खतरा बन जाते हैं. जलकुंभी, गाजर घास, क्रोमोलिना जैसे पौधे आक्रमणकारी की श्रेणी वाले ही हैं. उन्होंने बताया कि झारखंड में क्रोमोलिना नामक पौधा पुटुस के पौधे को समाप्त कर रहा है. उन्होंने बताया कि डिस्टिलरी तालाब के खत्म होने से कितनी प्रजातियों के पौधे को नुकसान पहुंचा है, इन दिनों राजधानी रांची में तापमान लगातार क्यों बढ़ रहा है, सघन वन कैसे कम होते गए हैं, इन सभी जन सरोकार से जुड़े सवालों का जवाब इस शोध पत्रिका के अलग-अलग वॉल्यूम में है.

'शोध पत्रिका के प्रकाशन से नए शोधार्थी को मिल रहा फायदा': 'द बायोब्रियो' के निवर्तमान प्रधान संपादक डॉ ज्योति कुमार ने कहा कि पहले लाइफ साइंस के शोधार्थियों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ता था, क्योंकि हर शोध के लिए रिसर्च पेपर का छपना जरूरी होता है. ऐसे में 2014 में रांची विश्वविद्यालय के बॉटनी विभाग और सेंटर फॉर सोशल एंड एनवायरमेंटल रिसर्च ने मिलकर रांची से अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका 'द बायोब्रियो' का प्रकाशन शुरू किया, जो आज भी सफलतापूर्वक नए शोधार्थियों को मदद कर रहा है. आज के कार्यक्रम के दौरान सेंटर फॉर सोशल एंड एनवायरमेंटल रिसर्च रांची और शोध पत्रिका 'द बायोब्रियो' से जुड़े निलय कुमार सिंह, अनिल कुमार, डॉ रितेश कुमार, डॉ सुमित पाठक, रवि, राहुल, पीयूष कुमार और अनंत आनंद झा भी उपस्थित थे.

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