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पारसनाथ पर आस्था का टकराव! क्यों छले जाने की बात कर रहे हैं आदिवासी, क्या स्टैंड है जैन धर्मावलंबियों का, पढ़ें रिपोर्ट

पारसनाथ सम्मेद शिखर जी (Sammed Sikhar) का मामला सुलझने के बजाय उलझता जा रहा है. जैन मुनियों के विरोध के बाद केन्द्र सरकार ने पत्र जारी कर विवाद को टाल दिया लेकिन उसके बाद आदिवासी-मूलवासी समाज के लोग नाराज हो गए हैं. आदिवासी-मूलवासी समाज के लोगों का कहना है कि सरकार उनकी धार्मिक भावना के साथ खेल रही है.

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Published : Jan 7, 2023, 5:45 PM IST

रांची/गिरिडीह: पारसनाथ यानी सम्मेद शिखर जी Sammed Sikhar से जुड़ा मामला सुलझने के बजाए और उलझता दिख रहा है. पर्यटन क्षेत्र घोषित होने के बाद उपजे विवाद को केंद्र सरकार ने अपने एक फैसले से टालकर जैन समाज को खुशी तो दे दी लेकिन इसी फैसले से आदिवासी-मूलवासी समाज नाराज हो गया है. पारसनाथ क्षेत्र में शराब और मांस की खरीद-बिक्री और उपयोग पर रोक के बाद आदिवासी समाज को लग रहा है कि सरकार ने उनकी आस्था पर चोट किया है. क्योंकि आदिवासी समाज में धार्मिक स्थलों पर मदिरा और पशु बलि देने की प्रथा है.

ये भी पढ़ें- सरकार के फैसले से हर्षित है जैन समाज, कहा- तीर्थराज का रखा गया मान, अब सख्ती से लागू हो नियम

मरांग बुरू सांवता सुसार बैसी के जिला उपाध्यक्ष बुधन हेंब्रम ने ईटीवी भारत को बताया कि पारसनाथ वन्य जीव अभ्यारण्य Parasnath Wildlife Sanctuary के प्रबंधन प्लान के खंड 7.6.1. के प्रावधानों के सख्ती से लागू होने का मतलब है, उनकी आस्था पर सीधा चोट पहुंचाना. उन्हें शक है कि सेंदरा पर्व Sendara Parwa पर भी रोक लग जाएगी. इसलिए सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए 25 जनवरी तक का अल्टीमेटम देते हुए 10 जनवरी को पारसनाथ में महाजुटान का ऐलान किया गया है. उन्होंने कहा कि पारसनाथ में सम्मेद शिखरजी से करीब चार किलोमीटर पूर्व की ओर संथाल आदिवासियों का पवित्र जुग जाहेरथान है. वहां बलि देने की भी परंपरा है. उस जगह पर पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू भी आ चुकी है. यहां शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन को बतौर मुख्य अतिथि आ चुके हैं. फिर भी जैन समाज के दबाव में सरकार आदिवासियों की आस्था से खिलवाड़ कर रही है.

आदिवासी समाज कि चिंता: पारसनाथ क्षेत्र Parasnath में मांस और मदिरा के इस्तेमाल पर रोक से ज्यादा परिक्रमा पथ को लेकर आदिवासी समाज चिंतित है. उनका मानना है कि पारसनाथ पहाड़ी की तलहटी के चारो ओर करीब 58 कि.मी. के दायरे में परिक्रमा पथ है. परिक्रमा पथ के दायरे में आदिवासी और मूलवासियों के कई गांव हैं. केंद्र सरकार के नये आदेश से गांवों में बलि प्रथा जैसे धार्मिक आयोजन पर रोक लग जाएगी. आपको बता दें कि अभी पारसनाथ में सम्मेद शिखर जी तक जाने और आने के लिए 27 कि.मी का सफर तय करना पड़ता है. एक तरफ से 9 किमी चढ़ाई के बाद 9 किमी पहाड़ पर चलना पड़ता है. इसी पहाड़ी पर मंदिर बने हैं. इसके बाद लौटने के लिए 9 किमी का सफर तय करना पड़ता है.

दिगंबर जैन समाज की दलील: भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ रक्षा कमेटी, मुंबई के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिखर चंद्र पहाड़िया ने ईटीवी भारत को बताया कि फरवरी 2021 में पारसनाथ क्षेत्र को पर्यटन स्थल बना दिया गया था. लेकिन इसकी जानकारी मिली ही नहीं. इसके बाद कोविड की वजह से सारी चीजें बंद रहीं. लेकिन दिसंबर 2022 में अचानक बड़ी संख्या में लोग शिखर पर आ पहुंचे और तमाम वैसी हरकत की जिसका जैन धर्म विरोध करता है. तब जाकर इस मसले पर राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू हुआ. जहां तक आदिवासी समाज की आस्थी की बात है तो पारसनाथ में कहीं भी बलि देने की परंपरा नहीं है. उन्होंने कहा कि 58 किमी का परिक्रमा पथ महज कच्ची पगडंडी है. जहां जैन धर्मा को मानने वाले परिक्रमा करते हैं. उन्होंने कहा कि इसके दायरे में करीब 37 गांव हैं. वहां पूजा से कोई आपत्ति नहीं है. सिर्फ मदिरा और मांसाहार से आपत्ति है. उन्होंने कहा कि देश में जहां भी किसी धर्म का सबसे बड़ा केंद्र हैं. वहां की व्यवस्था उसी धर्म के आधार पर रखी गई है.

जैन श्वेतांबर सोसायटी का मत: आदिवासियों की आस्था के सवाल पर जैन श्वेतांबर सोसायटी, कोलकाता के अध्यक्ष कमल सिंह रामपुरिया ने कहा कि मकर संक्रांति के वक्त बड़ी संख्या में स्थानीय लोग पहाड़ पर दर्शन के लिए आते हैं. उनका हमलोग दही-चूड़ा देकर स्वागत भी करते हैं. उन्होंने कहा कि पारसनाथ पहाड़ पर कहीं भी बलि प्रथा नहीं है. वहां पूजा के वक्त आदिवासी समाज के लोग पेड़ लगाते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि साल में एक बार शिकार करने का भी अधिकार मिला हुआ है. जहां तक 58 किमी के परिक्रमा पथ के निर्माण की बात है तो उन्हें इसकी जानकारी नहीं है. कमल सिंह रामपुरिया ने कहा कि आदिवासी समाज को कहीं भी लगता है कि उनके अधिकार का हनन हो रहा है तो वे सरकार और प्रशासन के समक्ष अपनी बात रख सकते हैं. उन्होंने कहा कि सैंकड़ों वर्षों से दोनों समाज के लोग अपनी परंपरा निभाते आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि कि केंद्र सरकार ने अभी तो सिर्फ एक आदेश निकाला है. कायदे से पारसनाथ को पर्यटन क्षेत्र की श्रेणी से निकालकर तीर्थ स्थल की श्रेणी में डालकर वहां श्रद्धालुओं के हित से जुड़े निर्माण कार्य करना चाहिए.

ये भी पढ़ें- सम्मेद शिखर को बचाने के लिए अनशन पर बैठे जैन मुनि समर्थ सागर ने त्यागे प्राण

किस बात को लेकर शुरू हुआ था विवाद: बुधन हेंब्रम ने कहा कि 28 दिसंबर को कोडरमा से कुछ छात्र आए थे. उन्हें पहाड़ पर चढ़ने के दौरान जैन समाज के लोगों ने न सिर्फ रोका बल्कि धक्का मुक्की भी की. यह मामला थाने तक पहुंचा था. इसके विरोध में ग्रामीणों ने थाने का घेराव भी किया था. बीच बचाव के लिए गिरिडीह से झामुमो विधायक सुदिव्य सोनू भी आए थे. उन्होंने जैन समाज और प्रशासन के साथ वार्ता की बात कही थी. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

प्रशासन के लिए क्या है चुनौती:खास बात है कि स्थानीय आदिवासी और जैन समाज के बीच छोटी-छोटी बातों को लेकर विवाद होता रहा है. लेकिन पहली बार सरकार के फैसले के खिलाफ 10 जनवरी को महाजुटान का ऐलान हुआ है. इसके बाद मधुबन में 13 जनवरी से 15 जनवरी तक मकर संक्रांति मेले के दौरान भारी संख्या में भीड़ उमड़ने की संभावना है. इस दौरान विधि व्यवस्था को बनाए रखना प्रशासन के लिए कम बड़ी चुनौती नहीं होगी.

सम्मेद शिखर का रोजगार कनेक्शन: सम्मेद शिखर पर जैन तीर्थंकरो के कई मंदिर बने हुए हैं. कहते हैं कि यहां 24 में से 20 जैन तीर्थंकरों को निर्वाण प्राप्त हुआ था. यहां देश और दुनिया के कोने-कोने से जैन धर्मावलंबी पूजा करने आते हैं. शिखर तक पहुंचाने के लिए डोली का इस्तेमाल भी होता है. यहां करीब 10 हजार मजदूर डोली उठाने का काम करते हैं. इसके अलावा करीब पांच हजार मजदूर दूसरी सेवाएं देते हैं. इस पूजनीय स्थल की बदौलत हजारों घरों का चूल्हा जलता है. यहां संस्था की तरफ से स्कूल का भी संचालन होता है. लेकिन आदिवासी समाज के लोगों का कहना है कि पारसनाथ पर पहला हक आदिवासियों का है. उनके हित का ख्याल रखना होगा.

रांची/गिरिडीह: पारसनाथ यानी सम्मेद शिखर जी Sammed Sikhar से जुड़ा मामला सुलझने के बजाए और उलझता दिख रहा है. पर्यटन क्षेत्र घोषित होने के बाद उपजे विवाद को केंद्र सरकार ने अपने एक फैसले से टालकर जैन समाज को खुशी तो दे दी लेकिन इसी फैसले से आदिवासी-मूलवासी समाज नाराज हो गया है. पारसनाथ क्षेत्र में शराब और मांस की खरीद-बिक्री और उपयोग पर रोक के बाद आदिवासी समाज को लग रहा है कि सरकार ने उनकी आस्था पर चोट किया है. क्योंकि आदिवासी समाज में धार्मिक स्थलों पर मदिरा और पशु बलि देने की प्रथा है.

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मरांग बुरू सांवता सुसार बैसी के जिला उपाध्यक्ष बुधन हेंब्रम ने ईटीवी भारत को बताया कि पारसनाथ वन्य जीव अभ्यारण्य Parasnath Wildlife Sanctuary के प्रबंधन प्लान के खंड 7.6.1. के प्रावधानों के सख्ती से लागू होने का मतलब है, उनकी आस्था पर सीधा चोट पहुंचाना. उन्हें शक है कि सेंदरा पर्व Sendara Parwa पर भी रोक लग जाएगी. इसलिए सरकार को अपने फैसले पर पुनर्विचार के लिए 25 जनवरी तक का अल्टीमेटम देते हुए 10 जनवरी को पारसनाथ में महाजुटान का ऐलान किया गया है. उन्होंने कहा कि पारसनाथ में सम्मेद शिखरजी से करीब चार किलोमीटर पूर्व की ओर संथाल आदिवासियों का पवित्र जुग जाहेरथान है. वहां बलि देने की भी परंपरा है. उस जगह पर पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू भी आ चुकी है. यहां शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन को बतौर मुख्य अतिथि आ चुके हैं. फिर भी जैन समाज के दबाव में सरकार आदिवासियों की आस्था से खिलवाड़ कर रही है.

आदिवासी समाज कि चिंता: पारसनाथ क्षेत्र Parasnath में मांस और मदिरा के इस्तेमाल पर रोक से ज्यादा परिक्रमा पथ को लेकर आदिवासी समाज चिंतित है. उनका मानना है कि पारसनाथ पहाड़ी की तलहटी के चारो ओर करीब 58 कि.मी. के दायरे में परिक्रमा पथ है. परिक्रमा पथ के दायरे में आदिवासी और मूलवासियों के कई गांव हैं. केंद्र सरकार के नये आदेश से गांवों में बलि प्रथा जैसे धार्मिक आयोजन पर रोक लग जाएगी. आपको बता दें कि अभी पारसनाथ में सम्मेद शिखर जी तक जाने और आने के लिए 27 कि.मी का सफर तय करना पड़ता है. एक तरफ से 9 किमी चढ़ाई के बाद 9 किमी पहाड़ पर चलना पड़ता है. इसी पहाड़ी पर मंदिर बने हैं. इसके बाद लौटने के लिए 9 किमी का सफर तय करना पड़ता है.

दिगंबर जैन समाज की दलील: भारतवर्षीय दिगंबर जैन तीर्थ रक्षा कमेटी, मुंबई के राष्ट्रीय अध्यक्ष शिखर चंद्र पहाड़िया ने ईटीवी भारत को बताया कि फरवरी 2021 में पारसनाथ क्षेत्र को पर्यटन स्थल बना दिया गया था. लेकिन इसकी जानकारी मिली ही नहीं. इसके बाद कोविड की वजह से सारी चीजें बंद रहीं. लेकिन दिसंबर 2022 में अचानक बड़ी संख्या में लोग शिखर पर आ पहुंचे और तमाम वैसी हरकत की जिसका जैन धर्म विरोध करता है. तब जाकर इस मसले पर राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू हुआ. जहां तक आदिवासी समाज की आस्थी की बात है तो पारसनाथ में कहीं भी बलि देने की परंपरा नहीं है. उन्होंने कहा कि 58 किमी का परिक्रमा पथ महज कच्ची पगडंडी है. जहां जैन धर्मा को मानने वाले परिक्रमा करते हैं. उन्होंने कहा कि इसके दायरे में करीब 37 गांव हैं. वहां पूजा से कोई आपत्ति नहीं है. सिर्फ मदिरा और मांसाहार से आपत्ति है. उन्होंने कहा कि देश में जहां भी किसी धर्म का सबसे बड़ा केंद्र हैं. वहां की व्यवस्था उसी धर्म के आधार पर रखी गई है.

जैन श्वेतांबर सोसायटी का मत: आदिवासियों की आस्था के सवाल पर जैन श्वेतांबर सोसायटी, कोलकाता के अध्यक्ष कमल सिंह रामपुरिया ने कहा कि मकर संक्रांति के वक्त बड़ी संख्या में स्थानीय लोग पहाड़ पर दर्शन के लिए आते हैं. उनका हमलोग दही-चूड़ा देकर स्वागत भी करते हैं. उन्होंने कहा कि पारसनाथ पहाड़ पर कहीं भी बलि प्रथा नहीं है. वहां पूजा के वक्त आदिवासी समाज के लोग पेड़ लगाते हैं. उन्होंने यह भी कहा कि साल में एक बार शिकार करने का भी अधिकार मिला हुआ है. जहां तक 58 किमी के परिक्रमा पथ के निर्माण की बात है तो उन्हें इसकी जानकारी नहीं है. कमल सिंह रामपुरिया ने कहा कि आदिवासी समाज को कहीं भी लगता है कि उनके अधिकार का हनन हो रहा है तो वे सरकार और प्रशासन के समक्ष अपनी बात रख सकते हैं. उन्होंने कहा कि सैंकड़ों वर्षों से दोनों समाज के लोग अपनी परंपरा निभाते आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि कि केंद्र सरकार ने अभी तो सिर्फ एक आदेश निकाला है. कायदे से पारसनाथ को पर्यटन क्षेत्र की श्रेणी से निकालकर तीर्थ स्थल की श्रेणी में डालकर वहां श्रद्धालुओं के हित से जुड़े निर्माण कार्य करना चाहिए.

ये भी पढ़ें- सम्मेद शिखर को बचाने के लिए अनशन पर बैठे जैन मुनि समर्थ सागर ने त्यागे प्राण

किस बात को लेकर शुरू हुआ था विवाद: बुधन हेंब्रम ने कहा कि 28 दिसंबर को कोडरमा से कुछ छात्र आए थे. उन्हें पहाड़ पर चढ़ने के दौरान जैन समाज के लोगों ने न सिर्फ रोका बल्कि धक्का मुक्की भी की. यह मामला थाने तक पहुंचा था. इसके विरोध में ग्रामीणों ने थाने का घेराव भी किया था. बीच बचाव के लिए गिरिडीह से झामुमो विधायक सुदिव्य सोनू भी आए थे. उन्होंने जैन समाज और प्रशासन के साथ वार्ता की बात कही थी. लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला.

प्रशासन के लिए क्या है चुनौती:खास बात है कि स्थानीय आदिवासी और जैन समाज के बीच छोटी-छोटी बातों को लेकर विवाद होता रहा है. लेकिन पहली बार सरकार के फैसले के खिलाफ 10 जनवरी को महाजुटान का ऐलान हुआ है. इसके बाद मधुबन में 13 जनवरी से 15 जनवरी तक मकर संक्रांति मेले के दौरान भारी संख्या में भीड़ उमड़ने की संभावना है. इस दौरान विधि व्यवस्था को बनाए रखना प्रशासन के लिए कम बड़ी चुनौती नहीं होगी.

सम्मेद शिखर का रोजगार कनेक्शन: सम्मेद शिखर पर जैन तीर्थंकरो के कई मंदिर बने हुए हैं. कहते हैं कि यहां 24 में से 20 जैन तीर्थंकरों को निर्वाण प्राप्त हुआ था. यहां देश और दुनिया के कोने-कोने से जैन धर्मावलंबी पूजा करने आते हैं. शिखर तक पहुंचाने के लिए डोली का इस्तेमाल भी होता है. यहां करीब 10 हजार मजदूर डोली उठाने का काम करते हैं. इसके अलावा करीब पांच हजार मजदूर दूसरी सेवाएं देते हैं. इस पूजनीय स्थल की बदौलत हजारों घरों का चूल्हा जलता है. यहां संस्था की तरफ से स्कूल का भी संचालन होता है. लेकिन आदिवासी समाज के लोगों का कहना है कि पारसनाथ पर पहला हक आदिवासियों का है. उनके हित का ख्याल रखना होगा.

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