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Ramgarh By-election: रामगढ़ में आजसू कराएगी एनडीए की नैया पार! चार हार के बाद बीजेपी बनी खेवनहार, सरकार की भी अग्निपरीक्षा - एनडीए उम्मीदवार सुनीता चौधरी

रामगढ़ उपचुनाव में नामांकन की प्रक्रिया खत्म हो चुकी है. वैसे तो यहां पर कई प्रत्याशी मैदान में हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला यूपीए और एनडीए के बीच होने की संभावना है. यह उपचुनाव दोनों ही के लिए अग्निपरीक्षा जैसी है.

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Published : Feb 7, 2023, 8:18 PM IST

रांची/रामगढ़: झारखंड का रामगढ़ इन दिनों 'शोले' फिल्म वाले रामगढ़ की तरह चर्चित हो गया है. फर्क इतना भर है कि शोले वाले रामगढ़ में लड़ाई गब्बर सिंह और ठाकुर के बीच थी. जिसमें जय और बीरू दिव्यांग ठाकुर के बाजू बने थे. लेकिन यहां लड़ाई राजनीतिक है. कांग्रेस के जय और बीरू की भूमिका में झामुमो और राजद है तो आजसू के लिए दोनों किरदार अकेले भाजपा निभा रही है. क्योंकि इस सीट के जरिए सत्ता और विपक्ष की प्रतिष्ठा तो तय होगी ही साथ ही राज्य के भविष्य की राजनीति का भी रिफ्लेक्शन मिलने वाला है.

ये भी पढ़ें- Ramgarh By Election: महागठबंधन प्रत्याशी बजरंग महतो ने दाखिल किया नामांकन, कांग्रेस नेताओं ने भरी जीत की हुंकार

क्यों आजसू की नाव पर सवार हुई भाजपा: जानकार कहते हैं कि इसके पीछे मजबूरी भी है और रणनीति भी. दुमका, मधुपुर, बेरमो और मांडर उपचुनावों में शिकस्त के बाद आजसू जैसी छोटी पार्टी के लिए फिल्डर बनना भाजपा की मजबूरी है. भाजपा ने 2019 का चुनाव अपने बूते लड़ा था. रामगढ़ के मैदान में लड़ाई आजसू और कांग्रेस प्रत्याशी के बीच थी. लेकिन भाजपा की एंट्री ने आजसू को उसके परंपरागत सीट से बेदखल कर दिया था. कांग्रेस की ममता देवी को 99,944 वोट, आजसू प्रत्याशी सुनीता चौधरी को 71,226 और भाजपा उम्मीदवार रणंजय कुमार उर्फ कुंटू बाबू को 31,874 वोट मिले थे. जाहिर है कि भाजपा ने प्रत्याशी नहीं दिया होता तो आजसू की जीत तय थी. इसका खामियाजा भाजपा को कई दूसरी सीटों पर भुगतना पड़ा था. भाजपा अब समझ चुकी है कि झारखंड के कुर्मी वोट बैंक पर पकड़ रखने वाली आजसू उसके लिए कितनी वर्थफुल है. राजनीति के जानकारों का कहना है कि भाजपा के पास आजसू को सहयोगी बनाए रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.

सरकार के फैसलों की होनी है परीक्षा: पिछले साल झामुमो, कांग्रेस और राजद गठबंधन वाली हेमंत सरकार ने कई ऐसे फैसले लिए जो यहां के लोगों की भावनाओं से जुड़े हैं. ओबीसी की आरक्षण सीमा में इजाफा और 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता से जुड़े बिल के विधानसभा से पास होने के बाद से सत्ताधारी दल फ्रंटफुट पर खेल रहे हैं. इस उपचुनाव के नतीजों से पता चलेगा कि सरकार के फैसले को जनता किस रूप में देख रही है. सत्ताधारी दल के मुखिया हेमंत सोरेन खतियानी जोहार यात्रा निकालकर बता चुके हैं कि दोनों विधेयक को अमली जामा पहनाने का काम केंद्र को करना है. हालांकि यह टेढ़ी खीर है. 1932 के खतियान वाले बिल पर राजभवन सवाल खड़े कर चुका है. दोनों बिल यहां की भावनाओं से जुड़े हैं.

ये भी पढ़ें- Ramgarh By-Election को लेकर सरगर्मी तेज, एनडीए उम्मीदवार सुनीता चौधरी सहित 4 प्रत्याशियों ने किया नामांकन

ईडी की कार्रवाई का असर: पिछले साल मई माह से मनरेगा घोटाला और अवैध खनन में हुए मनी लॉन्ड्रिंग मामलों को लेकर ईडी सक्रिय है. सीनियर आईएएस पूजा सिंघल और सीएम के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा समेत प्रेम प्रकाश सरीखे लोग सलाखों के पीछे हैं. अवैध खनन और मनी लॉन्ड्रिंग और आय से अधिक संपत्ति मामले में साहिबगंज से डीसी समेत कांग्रेस के तीन विधायकों से पूछताछ चल रही है. पहली बार किसी राज्य के सीएम से पूछताछ हुई है. आम लोगों के बीच यह मुद्दा चर्चा में बना हुआ है. हालांकि सत्तापक्ष का कहना है कि अगर भ्रष्टाचार हुआ है तो एजेंसियां अपना काम करें. लेकिन यहां तो परेशान किया जा रहा है. अब सवाल है कि क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही कार्रवाई का असर रामगढ़ उपचुनाव पर दिख सकता है.

  • रामगढ़ की जनता ने हमेशा से एनडीए को अपना आशीर्वाद दिया है। इस उपचुनाव में जीत दर्ज कर एक बार फिर से एनडीए की सशक्त उपस्थिति यहां दर्ज होगी। रामगढ़ की जनता भी यहां की वस्तुस्थिति को समझ चुकी है कि यहां का विकास किसके जरिए हो सकता है।
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    — AJSU PARTY (@ajsupartyjh) February 4, 2023 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

रामगढ़ में चुनावी जीत-हार का इतिहास: 15 नवंबर 2000 को राज्य बनने के महज दो माह बाद इसी रामगढ़ सीट के लिए उपचुनाव हुआ था. राज्य गठन के पहले सितंबर 2000 में ही रामगढ़ के विधायक भेड़ा सिंह चल बसे थे. तब बाबूलाल मरांडी को सीएम बनने के छह माह के भीतर विधानसभा की सदस्यता लेनी थी. यह अवसर रामगढ़ ने दिया. बाबूलाल मरांडी ने दिवंगत भेड़ा सिंह की पत्नी नादरा बेगम को 20 हजार वोट के अंतर से हराया था. 2005 में हुए पहले विधानसभा चुनाव के दौरान आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी ने सीपीआई की नादरा बेगम को 22 हजार से ज्यादा मतो से हराया था. 2009 के चुनाव में कांग्रेस के शहजादा अनवर को आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी ने 25 हजार से ज्यादा वोट के अंतर से शिकस्त दी थी. उस वक्त भाजपा ने अर्जुन राम को रामगढ़ में उतारा था. उन्हें कांग्रेस को मिले 36 हजार की तुलना में 30 हजार वोट मिले थे. तब झामुमो के प्रत्याशी रणंजय को महज साढ़े पांच हजार वोट मिले थे.

ये भी पढ़ें- Ramgarh BY-election: उपचुनाव को लेकर प्रत्याशी हुए रेस, एनडीए और महागठबंधन के बीच मुकाबला, प्रचार अभियान में कूदेंगे बड़े नेता

2014 के चुनाव में आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी इतने मजबूत हो चुके थे कि उन्हें करीब 99 हजार वोट मिले. जबकि उनसे हारने वाले कांग्रेस प्रत्याशी शहजादा अनवर को सिर्फ 45 हजार वोट मिले थे. पहली बार रामगढ़ में इतने बड़े अंतर से हार जीत हुई थी. हालाकि 2019 में तस्वीर बदल गई. भाजपा के सहयोग से चंद्रप्रकाश चौधरी गिरिडीह से लोकसभा का चुनाव जीत गये. लेकिन भाजपा से गठबंधन नहीं होने का खामियाजा आजसू को विधानसभा चुनाव में चुकाना पड़ा. तमाम कोशिशों के बाद भी चंद्रप्रकाश चौधरी अपनी पत्नी सुनीता चौधरी को रामगढ़ से नहीं जीता पाए. उनकी जगह कांग्रेस की ममता देवी ने ले ली. हालाकि इसबार के उपचुनाव में गठबंधन के प्रत्याशियों के बीच सीधी टक्कर है.

रांची/रामगढ़: झारखंड का रामगढ़ इन दिनों 'शोले' फिल्म वाले रामगढ़ की तरह चर्चित हो गया है. फर्क इतना भर है कि शोले वाले रामगढ़ में लड़ाई गब्बर सिंह और ठाकुर के बीच थी. जिसमें जय और बीरू दिव्यांग ठाकुर के बाजू बने थे. लेकिन यहां लड़ाई राजनीतिक है. कांग्रेस के जय और बीरू की भूमिका में झामुमो और राजद है तो आजसू के लिए दोनों किरदार अकेले भाजपा निभा रही है. क्योंकि इस सीट के जरिए सत्ता और विपक्ष की प्रतिष्ठा तो तय होगी ही साथ ही राज्य के भविष्य की राजनीति का भी रिफ्लेक्शन मिलने वाला है.

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क्यों आजसू की नाव पर सवार हुई भाजपा: जानकार कहते हैं कि इसके पीछे मजबूरी भी है और रणनीति भी. दुमका, मधुपुर, बेरमो और मांडर उपचुनावों में शिकस्त के बाद आजसू जैसी छोटी पार्टी के लिए फिल्डर बनना भाजपा की मजबूरी है. भाजपा ने 2019 का चुनाव अपने बूते लड़ा था. रामगढ़ के मैदान में लड़ाई आजसू और कांग्रेस प्रत्याशी के बीच थी. लेकिन भाजपा की एंट्री ने आजसू को उसके परंपरागत सीट से बेदखल कर दिया था. कांग्रेस की ममता देवी को 99,944 वोट, आजसू प्रत्याशी सुनीता चौधरी को 71,226 और भाजपा उम्मीदवार रणंजय कुमार उर्फ कुंटू बाबू को 31,874 वोट मिले थे. जाहिर है कि भाजपा ने प्रत्याशी नहीं दिया होता तो आजसू की जीत तय थी. इसका खामियाजा भाजपा को कई दूसरी सीटों पर भुगतना पड़ा था. भाजपा अब समझ चुकी है कि झारखंड के कुर्मी वोट बैंक पर पकड़ रखने वाली आजसू उसके लिए कितनी वर्थफुल है. राजनीति के जानकारों का कहना है कि भाजपा के पास आजसू को सहयोगी बनाए रखने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.

सरकार के फैसलों की होनी है परीक्षा: पिछले साल झामुमो, कांग्रेस और राजद गठबंधन वाली हेमंत सरकार ने कई ऐसे फैसले लिए जो यहां के लोगों की भावनाओं से जुड़े हैं. ओबीसी की आरक्षण सीमा में इजाफा और 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता से जुड़े बिल के विधानसभा से पास होने के बाद से सत्ताधारी दल फ्रंटफुट पर खेल रहे हैं. इस उपचुनाव के नतीजों से पता चलेगा कि सरकार के फैसले को जनता किस रूप में देख रही है. सत्ताधारी दल के मुखिया हेमंत सोरेन खतियानी जोहार यात्रा निकालकर बता चुके हैं कि दोनों विधेयक को अमली जामा पहनाने का काम केंद्र को करना है. हालांकि यह टेढ़ी खीर है. 1932 के खतियान वाले बिल पर राजभवन सवाल खड़े कर चुका है. दोनों बिल यहां की भावनाओं से जुड़े हैं.

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ईडी की कार्रवाई का असर: पिछले साल मई माह से मनरेगा घोटाला और अवैध खनन में हुए मनी लॉन्ड्रिंग मामलों को लेकर ईडी सक्रिय है. सीनियर आईएएस पूजा सिंघल और सीएम के विधायक प्रतिनिधि पंकज मिश्रा समेत प्रेम प्रकाश सरीखे लोग सलाखों के पीछे हैं. अवैध खनन और मनी लॉन्ड्रिंग और आय से अधिक संपत्ति मामले में साहिबगंज से डीसी समेत कांग्रेस के तीन विधायकों से पूछताछ चल रही है. पहली बार किसी राज्य के सीएम से पूछताछ हुई है. आम लोगों के बीच यह मुद्दा चर्चा में बना हुआ है. हालांकि सत्तापक्ष का कहना है कि अगर भ्रष्टाचार हुआ है तो एजेंसियां अपना काम करें. लेकिन यहां तो परेशान किया जा रहा है. अब सवाल है कि क्या भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रही कार्रवाई का असर रामगढ़ उपचुनाव पर दिख सकता है.

  • रामगढ़ की जनता ने हमेशा से एनडीए को अपना आशीर्वाद दिया है। इस उपचुनाव में जीत दर्ज कर एक बार फिर से एनडीए की सशक्त उपस्थिति यहां दर्ज होगी। रामगढ़ की जनता भी यहां की वस्तुस्थिति को समझ चुकी है कि यहां का विकास किसके जरिए हो सकता है।
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रामगढ़ में चुनावी जीत-हार का इतिहास: 15 नवंबर 2000 को राज्य बनने के महज दो माह बाद इसी रामगढ़ सीट के लिए उपचुनाव हुआ था. राज्य गठन के पहले सितंबर 2000 में ही रामगढ़ के विधायक भेड़ा सिंह चल बसे थे. तब बाबूलाल मरांडी को सीएम बनने के छह माह के भीतर विधानसभा की सदस्यता लेनी थी. यह अवसर रामगढ़ ने दिया. बाबूलाल मरांडी ने दिवंगत भेड़ा सिंह की पत्नी नादरा बेगम को 20 हजार वोट के अंतर से हराया था. 2005 में हुए पहले विधानसभा चुनाव के दौरान आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी ने सीपीआई की नादरा बेगम को 22 हजार से ज्यादा मतो से हराया था. 2009 के चुनाव में कांग्रेस के शहजादा अनवर को आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी ने 25 हजार से ज्यादा वोट के अंतर से शिकस्त दी थी. उस वक्त भाजपा ने अर्जुन राम को रामगढ़ में उतारा था. उन्हें कांग्रेस को मिले 36 हजार की तुलना में 30 हजार वोट मिले थे. तब झामुमो के प्रत्याशी रणंजय को महज साढ़े पांच हजार वोट मिले थे.

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2014 के चुनाव में आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी इतने मजबूत हो चुके थे कि उन्हें करीब 99 हजार वोट मिले. जबकि उनसे हारने वाले कांग्रेस प्रत्याशी शहजादा अनवर को सिर्फ 45 हजार वोट मिले थे. पहली बार रामगढ़ में इतने बड़े अंतर से हार जीत हुई थी. हालाकि 2019 में तस्वीर बदल गई. भाजपा के सहयोग से चंद्रप्रकाश चौधरी गिरिडीह से लोकसभा का चुनाव जीत गये. लेकिन भाजपा से गठबंधन नहीं होने का खामियाजा आजसू को विधानसभा चुनाव में चुकाना पड़ा. तमाम कोशिशों के बाद भी चंद्रप्रकाश चौधरी अपनी पत्नी सुनीता चौधरी को रामगढ़ से नहीं जीता पाए. उनकी जगह कांग्रेस की ममता देवी ने ले ली. हालाकि इसबार के उपचुनाव में गठबंधन के प्रत्याशियों के बीच सीधी टक्कर है.

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