रांची: झारखंड में नक्सलियो के शीर्ष नेतृव पर अभी भी बाहरी राज्यों के नक्सल कमांडरों का वर्चस्व है. पश्चिम बंगाल बिहार और छत्तीसगढ़ के नक्सली नेता झारखंड के नक्सल कैडरों पर हावी हैं. झारखंड के कुछ नक्सली कमांडरों को छोड़ दें तो अधिकांश कैडर और कमांडर की संगठन में कोई पूछ नहीं है. झारखंड के नक्सली कैडर भी अंदर ही अंदर बाहरी लोगों से खफा हैं. वहीं दूसरी तरफ उनकी कार्रवाई को लेकर ग्रामीणों का भी आक्रोश उबल रहा है.
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तीन राज्यों का है वर्चस्व: बाहरी राज्यों बिहार, छतीसगढ़, बंगाल के कई माओवादी वर्तमान में झारखंड में सक्रिय हैं. राज्य पुलिस के द्वारा दो दिन पहले जारी की नई इनाम की लिस्ट से भी इस बात की पुष्टि होती है कि झारखंड में बाहरी राज्यों के कमांडरों का वर्चस्व कायम है. घोषित 76 नक्सलियों में से बाहरी राज्यों के 21 नक्सली झारखंड में एक लाख से एक करोड़ के इनामी हैं. बिहार-झारखंड में संगठन की बड़ी जिम्मेदारी निभाने वाले प्रमोद मिश्र और छतीसगढ़-गढ़वा की सीमा पर बूढ़ापहाड़ में नक्सली संगठन को विस्तार देने वाला भिखारी उर्फ मेहताजी झारखंड में सक्रिय हो गए हैं. बंगाल का माओवादी थिंक टैंक रंजीत बोस भी चाईबासा के इलाके में लगातार सक्रिय रहा है.
कौन कौन है महत्वपूर्ण भूमिका में: पश्चिम बंगाल के मिदनापुर का असीम मंडल झारखंड में माओवादी संगठन का महत्वपूर्ण चेहरा है. प्रशांत बोस की गिरफ्तारी के बाद वह और ज्यादा एक्टिव हो चुका है. असीम मंडल के साथ छतीसगढ़ के नक्सलियों का दस्ता प्रोटेक्शन टीम के तौर पर हमेशा सजग रहता है. वहीं बीते कुछ साल में बंगाल के ही अर्जुन महतो जैसे नक्सलियों की सक्रियता कोल्हान के इलाके में बढ़ी है. चाईबासा के इलाके में बड़ी संख्या में छत्तीसगढ़ के उग्रवादियों का दस्ता कैंप कर रहा है.
वापस लौट आया टेक विश्वनाथ: माओवादियों का तकनीकी प्रमुख संतोष उर्फ टेक विश्वनाथ साल 2015 से झारखंड में सक्रिय था. विश्वनाथ ने ही बूढ़ापहाड़ की घेराबंदी लैंड माइंस से की थी, वहीं चाईबासा में भी कैडरों को बम बनाने की ट्रेनिंग उसने दी थी. सुधाकरण के तेलंगाना में सरेंडर करने के बाद विश्वनाथ अपने राज्य वापस लौट गया था, लेकिन अब सूचना मिली है कि टेक विश्वनाथ एक बार फिर से चाईबासा वापस आ चुका है.
बाहर के कौन-कौन नक्सली हैं सक्रिय, कइयों पर इनाम है घोषित: बड़े और कुख्यात नक्सलियों की लिस्ट में असीम मंडल का नाम है वह पश्चिमी मिदनापुर का रहने वाला है. उस पर एक करोड़ का इनाम है. इसके अलावा सैक सदस्य संदीप यादव और गौतम पासवान बिहार के गया के हैं. इनपर 25 लाख का इनाम है. जोनल कमिटी मेंबर पिंटू राणा जमुई, मुराद जी औरंगबाद, विकाय यादव गया के रहने वाले हैं. इन सभी पर 15 लाख का इनाम है. वहीं, अरविंद भूईंया, नितेश यादव, विवेक यादव गया के हैं, जोनल कमेटी मेंबर के तौर पर इनपर 10 लाख का इनाम है. इनके अलावा सीताराम रजवार, शिवपूजन यादव, सीता भूईंया बिहार के औरंगाबाद, पवन उर्फ लेंगरा, अमरजी यादव गया के हैं, ये सभी पांच लाख के इनामी हैं. रीजनल कमेटी मेंबर बेला सरकार उर्फ पंचमी पश्चिम बंगाल के नदिया जिले की है, इसपर 15 लाख का इनाम है. एक लाख का इनामी कैडर दारा यादव औरंगाबाद, कारूजी जी अरवल का है.
बाहरी कमांडरों को लेकर आक्रोश में ग्रामीण: दरअसल पिछले साल सुरक्षाबलों ने नक्सलियों के सबसे सुरक्षित ठिकाना बूढ़ा पहाड़ पर फतह हासिल कर लिया. नतीजा शीर्ष नक्सली वहां से भाग कर चाईबासा पहुंच गए. अब कहीं पुलिस नक्सलियों तक ना पहुंच जाए इसके लिए उन्होंने 10 किलोमीटर के एरिया में चारों तरफ लैंडमाइंस बिछा दिया है. नक्सलियों के द्वारा लगाए गए लैंड माइंस की वजह से पिछले तीन महीनों में चार ग्रामीण मौत की गाल में समा चुके हैं, जबकि 12 से ज्यादा जवान भी घायल हुए. पुलिस मुख्यालय के एक अधिकारी ने बताया कि नक्सलियों की इस करतूत की वजह से ग्रामीण खासे परेशान हैं. बाहरी नक्सल नेताओं को लेकर उनमें लगातार आक्रोश पैदा हो रहा है.
छत्तीसगढ़, बिहार और पश्चिम बंगाल के नक्सली नेताओं को बचाने के लिए चाईबासा के लोकल कैडर लैंड माइंस का घेरा बना रहे, लेकिन उसका शिकार ग्रामीण हो रहे हैं. दरअसल ग्रामीण यह चाहते हैं कि लोकल कैडर बाहरी राज्यों के सिर्फ नक्सलियों को यहां से बाहर जाने को कहें ताकि वे लोग सुगमता से जीवन जी सके.
रोजी रोजगार का साधन है जंगल: जानकारी के अनुसार अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए नक्सलियों ने लगभग 12 किलोमीटर के एरिया में हर तरफ आईडी बमों का जाल बिछा दिया है. नतीजा ग्रामीणों के सामने बड़ी मुश्किल खड़ी हुई है. जंगल के जरिए अपनी जीवीका चलाने वाले ग्रामीण काफी परेशान हैं. दरअसल, ग्रामीण अपनी रोज की जरूरतों के लिए जंगल में जाते हैं. इसी जंगल से उन्हें खाना बनाने के लिए जलावन की लकड़ी और जानवरों के लिए चारा मिलता है. लेकिन नक्सलियों के नए फरमान इनके लिए काफी मुश्किल भरा हो गया है. धीरे-धीरे ही सही लेकिन ग्रामीणों का यह आक्रोश उबल जरूर रहा है. जो उनके अंदर नक्सलियों के खिलाफ बगावत की चिंगारी को भड़का रहा है अगर यह बगावत हुई तब नक्सलियों के लिए कहीं भी जमीन नहीं मिल पाएगी.